क्‍या होती है प्राण प्रतिष्ठा, जानें कैसे होती है ये संपन्‍न: Pran Pratishtha
Pran Pratishtha

Pran Pratishtha: 22 जनवरी का दिन हम सब भारतीयों के लिए किसी दिवाली से कम नहीं होगा। जहां अयोध्‍या में नव निर्मित राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्‍ठा होने जा रही है, वहीं पूरे देश में हवन-पूजन की तैयारियां की जा रही हैं।  प्राण प्रतिष्‍णा की धूम देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है।  कई विदेशी मंदिरों में उस दिन पूजा और हवन किए जाएंगे। हिंदू धर्म में प्राण प्रतिष्‍णा का विशेष महत्‍व है। इसे एक भव्‍य समारोह की तरह मनाया जाता है। आखिर प्राण प्रतिष्‍ठा क्‍या है और इसे कैसे संपन्‍न किया जाता है चलिए जानते हैं इसके बारे में।

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क्‍या है प्राण प्रतिष्‍ठा का अर्थ

Pran Pratishtha
What is the meaning of Pran Pratistha?

प्राण प्रतिष्‍ठा का हिंदू धर्म में विशेष महत्‍व है। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘जीवन शक्ति की स्‍थापना’ यानी पूजा-अर्चना द्वारा किसी  देवी या देवता की मूर्ति में जीवन शक्ति का संचार करना। प्राण प्रतिष्‍ठा के बाद मूर्ति में देवी-देवताओं का वास माना जाता है और उसमें हमारी प्रार्थना स्‍वीकार करने की शक्ति आ जाती है। प्राण प्रतिष्‍ठा की प्रक्रिया को अनुष्‍ठान, मंत्रों के जाप, हवन, यज्ञ, भजन और श्‍लोंको द्वारा संपन्‍न किया जाता है। प्राण प्रतिष्‍ठा के बाद ही  मूर्ति की आंखें पहली खोली जाती हैं। आपको बता दें कि प्राण प्रतिष्‍ठा का उल्‍लेख पुराणों में भी किया गया है।

प्राण प्रतिष्‍ठा क्‍यों की जाती है

सामान्‍यतौर पर प्राण प्रतिष्‍ठा किसी नई मूर्ति और मंदिर के अभिषेक के दौरान की जाती है। मंदिरों के अलावा ये पूजा घर में भी मूर्ति स्‍थापना के समय की जा सकती है। आपको बता दें कि किसी मौजूदा मूर्ति के क्षतिग्रस्‍त होने पर भी प्राण प्रतिष्‍ठा की जा सकती है। इस अनुष्‍ठान को संपन्‍न करने के लिए आमतौर पर उचित मुहूर्त और स्‍थान का चयन किया जाना चाहिए।

क्‍या है प्राण प्रतिष्‍ठा का महत्‍व

importance of Pran Pratistha?
What is the importance of Pran Pratistha?

प्राण प्रतिष्‍ठा एक धार्मिक अनुष्‍ठान है। इसके माध्‍यम से किसी निर्जीव मूर्ति में भगवान के अंश को विराजमार किया जाता है। मूर्ति में प्राण डालने के लिए वेदों और पुराणों के अनुसार कई अनुष्‍ठान किए जाते हैं। प्रत्‍येक अनुष्‍ठान का अपना एक अलग महत्‍व होता है। प्राण प्रतिष्‍ठा में अपनाए जाने वाले अनुष्‍ठानों की संख्‍या कार्यक्रम की भव्‍यता पर निर्भर करती है। वेदों में इसका विस्‍तार से वर्णन किया गया है। मस्‍त्‍य पुराण, वामन पुराण, नारद पुराण जैसे विभिन्‍न पुराणों में भी प्राण प्रतिष्‍ठा का वर्णन किया गया है।

हिंदू धर्म में प्राण प्रतिष्‍ठा का विशेष महत्‍व है। इस अनुष्‍ठान के जरिये देवाताओं से आग्रह किया जाता है कि वह अपना एक अंश मूर्ति में डालकर उसे जीवंत बना दें। यह अनुष्‍ठान दैवीय शक्ति और उनके भौतिक प्रतिनिधित्‍व के बीच सीधा संबंध स्‍थापित करता है। ऐसा माना जाता है कि प्राण प्रतिष्‍ठा से मूर्ति में दैवीय शक्ति की उपस्थिति को आमंत्रित किया जाता है।  

क्‍या है प्राण प्रतिष्‍ठा के रीति-रिवाज

प्राण प्रतिष्‍ठा समारोह में सिद्ध पुजारियों द्वारा आयोजित अनुष्‍ठानों की एक विशाल श्रृंखला शामिल होती है। ये कार्यक्रम मंदिर की साफ-सफाई से प्रारंभ होती है। साथ ही वैदिक मंत्रों का जाप और देवताओं का आहा्वन किया जाता है। पूजा में फूल, दूध, फल और प्रसाद को प्राथमिकता दी जाती है। देवताओं के आव्‍ह्न के बाद भक्‍तों में प्रसाद वितरण किया जाता है।