Overview: सूर्य के वरदान से असुर बना उनका पुत्र
सूर्य देव ने असुर दंभोद्भव को तपस्या से प्रसन्न होकर अगले जन्म में पुत्र बनने का वरदान दिया, जो महाभारत में कर्ण के रूप में जन्म।
Surya Dev and Karna Mythological Story: हिंद धर्म के शास्त्र और पुराणों में देवता और असुरों के बीच हुए संवाद और वरदानों की कई कहानियां और रहस्यों के बारे में वर्णन किया गया है। ये कथाएं केवल धर्म की गहराई नहीं बतातीं, बल्कि यह भी समझाती हैं कि कर्म और नियति किस प्रकार एक दूसरे से जुड़े हैं। ऐसी ही एक दुर्लभ कथा है उस असुर की, जिसे स्वयं सूर्य देव ने अपने पुत्र रूप में जन्म लेने का वरदान दिया था। यह कथा केवल शक्ति या तपस्या की नहीं, बल्कि भक्ति, प्रतिज्ञा और नियति के गहरे संबंध के बारे में बताती है, जिसके बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं। यह कथा एक असुर से जुड़ी है, जिसे सूर्य देव ने अपने महान पुत्र बनने का वरदान दिया था। आइए जानते हैं आखिर कौन था वह असुर, जो बना भगवान सूर्य का पुत्र।
सूर्य देव के मानस पुत्र थे कर्ण

महाभारत के योद्धा कर्ण को सूर्य का मानस पुत्र कहा जाता है। कर्ण की वीरता, दानवीरता और धर्म के प्रति आस्था से जुड़ी अनेकों कथा-कहानियों से कई लोग परिचित होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि, कर्ण सूर्य देव के ही पुत्र थे और कर्ण से ही सूर्य उपासना की शुरुआत मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कर्ण की माता कुंती ने सूर्य देव के मंत्र के जप से कर्ण को जन्म दिया था। कुंती को यह वरदान ऋषि दुर्वासा से मिला था कि वो किसी भी देवता का आह्वान कर पुत्र प्राप्त कर सकती थी। कुंती ने जिज्ञासावश सूर्य देव का आह्वान किया और उसी से सूर्य के तेज से कर्ण का जन्म हुआ। जन्म से ही कर्ण के कानों में कवच और कुंडल थे, जो उन्हें अजेय बनाते थे।
जब कर्ण का जन्म हुए तब कुंती अविवाहित थी। इस अवस्था में कर्ण को जन्म देने के कारण उस पर सामाजिक दबाव और भय था, जिस कारण कुंती ने कर्ण को एक टोकरी में रख कर नदी में प्रवाहित कर दिया था। नदी में बहता यह नवजात शिशु राधा और अधिरथ नामक दंपति को प्राप्त हुआ और उन्होंने ही कर्ण का लालन-पालन किया। कर्ण के व्यक्तित्व में सूर्य की दिव्यता झलकती थी। इसका कारण यह था कि, कर्ण का जन्म ही सूर्य के आशीर्वाद से हुआ था। लेकिन कर्ण का पूर्वजन्म भी सूर्य देव से जुड़ा हुआ था, आइये जानते हैं इसके बारे में।
जब सूर्य ने एक असुर को दिया पुत्र बनने का वरदान

पौराणिक कथा में ऐसा कहा जाता है कि, कर्ण पूर्वजन्म में एक असुर था, जिसका नाम दंभोद्भवा था। उस असुर को सूर्य देव ने उसे एक हजार कवच और दिव्य कुंडल दिए थे, जोकि उसे असाधारण सुरक्षा प्रदान करते थे। लेकिन असुर ने इन वरदानों को गलत इस्तेमाल किया और स्वयं को अजेय-अमर समझकर अत्याचारी बन गया। तब नर-नारायण ने एक-एक कर उसके 999 कवच को नष्ट कर दिया। बचे हुए एक कवच को लेकर असुर दंभोद्भवा सूर्य लोक में छिप गया और सूर्य की उपासना करने लगा। उसकी तप और भक्ति देखकर सूर्य ने उसे अगले जन्म में अपना पुत्र बनने का वरदान दिया। अगले जन्म में दंभोद्भवा नामक इसी असुर का जन्म कर्ण ने रूप में हुआ।
