Overview: जीवन और मृत्यु दोनों से जुड़ा है बांस
हिंदू परंपरा में बांस को जलाना अशुभ माना जाता है क्योंकि यह 'वंश' यानी परिवार का प्रतीक है। इसे जलाने से पितृ दोष लगने की मान्यता है, साथ ही यह पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है। भगवान कृष्ण की बांसुरी से इसका पवित्र संबंध भी इसे पूजनीय बनाता है।
Bamboo in Hinduism: भारतीय संस्कृति में हर पेड़-पौधे का अपना विशेष महत्व होता है। हमारी परंपराओं में वृक्ष केवल पर्यावरण का हिस्सा नहीं, बल्कि आस्था, जीवन और समृद्धि का प्रतीक भी माने जाते हैं। इन्हीं में से एक है बांस (वंश) जो जितना साधारण दिखता है, उतना ही गहरा अर्थ अपने भीतर समेटे है। हिंदू धर्म में बांस को जलाना वर्जित माना गया है। आइए जानते हैं इसके पीछे छिपे धार्मिक, पौराणिक और वैज्ञानिक कारणों को।
बांस: वंश और समृद्धि का प्रतीक
संस्कृत में बांस को ‘वंश’ कहा गया है, जिसका अर्थ है परिवार या कुल। ऐसा माना जाता है कि बांस जलाना अपने ही वंश को नष्ट करने के समान है। इसलिए धार्मिक अनुष्ठानों, शादी या गृहप्रवेश जैसे शुभ कार्यों में बांस का उपयोग सजावट और मंडप बनाने में तो किया जाता है, लेकिन कभी इसे आग में नहीं जलाया जाता।
बांस को दीर्घायु, समृद्धि और उन्नति का प्रतीक माना जाता है क्योंकि यह पेड़ पूरे साल हरा-भरा रहता है और कभी सूखता नहीं। यही कारण है कि इसे जलाना अपनी खुशहाली को नष्ट करने के बराबर समझा जाता है।
पौराणिक मान्यताएं और धर्मशास्त्रों का उल्लेख
पुराणों और धर्मग्रंथों में बांस के प्रति विशेष सम्मान का उल्लेख मिलता है। गरुड़ पुराण और स्कंद पुराण में कहा गया है कि बांस जलाने से पितृ दोष लगता है यानी पूर्वजों की आत्माओं को कष्ट होता है। यह भी मान्यता है कि बांस का धुआं पितृलोक तक पहुंचता है और वहां अशांति फैलाता है। इसलिए इसे जलाना पाप माना गया है।
यहां तक कि दाह संस्कार में भी, शव को जिस बांस की चचरी पर श्मशान तक ले जाया जाता है, उसे जलाया नहीं जाता बल्कि नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसका अर्थ है बांस का उपयोग केवल अंतिम जगह तक पहुंचाने तक सीमित है, अग्नि को अर्पित करने के लिए नहीं।
भगवान कृष्ण और बांसुरी का पवित्र संबंध
धार्मिक दृष्टि से बांस भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ा है। उनकी बांसुरी, जो प्रेम और भक्ति का प्रतीक है, इसी बांस से बनी होती है। इसलिए इसे जलाना अपमानजनक और अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि जिस घर में बांसुरी की मधुर ध्वनि गूंजती है, वहां सकारात्मक ऊर्जा और सौभाग्य का वास होता है।
जीवन और मृत्यु दोनों से जुड़ा है बांस
हिंदू धर्म में बांस मानव जीवन के हर चरण से जुड़ा होता है। जन्म से लेकर विवाह और मृत्यु तक, हर संस्कार में बांस का किसी न किसी रूप में उपयोग किया जाता है। जन्मोत्सव में सजावट, विवाह में मंडप, और मृत्यु के बाद चचरी इन सभी में बांस का प्रयोग होता है। इसलिए इसे जलाना जीवन चक्र की पवित्रता को नष्ट करने जैसा माना गया है।
वैज्ञानिक कारण भी हैं महत्वपूर्ण
धार्मिक मान्यताओं के अलावा, बांस को नहीं जलाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। बांस के अंदर खोखलापन और गांठों में हवा भरी होती है। जब इसे जलाया जाता है, तो यह तेज आवाज के साथ फटता है, जिससे आसपास आग फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
इसके अलावा, बांस में क्रोमियम, कैडमियम, सीसा जैसी भारी धातुएं होती हैं। जब ये जलती हैं, तो इनके धुएं से हानिकारक गैसें और कैंसरकारक यौगिक निकलते हैं। इस धुएं को सांस में लेना स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदायक होता है। यही वजह है कि हमारे पूर्वजों ने पर्यावरण और स्वास्थ्य की रक्षा के लिए इसे जलाने से मना किया।
बांस: आस्था और पर्यावरण का प्रतीक
बांस केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी बेहद उपयोगी है। यह वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर ऑक्सीजन देता है और मिट्टी को क्षरण से बचाता है। इसीलिए बांस को जलाने की परंपरा न सिर्फ धार्मिक, बल्कि प्रकृति-संरक्षण का प्रतीक भी है।
