Significance of Janeu: हिंदू धर्म में जनेऊ संस्कार का खास महत्व है। 16 संस्कारों में से एक माने जाने वाले जनेऊ संस्कार को यज्ञोपवीत संस्कार कहकर भी पुकारा जाता हैं। पुराने समय में जब शिष्य गुरूकुल जाते थे, तो उस वक्त गुरुकुल में दीक्षा लेने के पहले जनेऊ धारण करना जरूरी माना जाता था। 3 सूत्रों के बनकर तैयार होने वाले जनेऊ को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक कहा जाता है। जनेऊ का विवाह के दौरान भी खास महत्व हैं। ऐसी मान्यता है कि जब तक जनेऊ धारण नहीं किया जाता है, तब तक विवाह पूरा नहीं होता है । इसके अलावा घर में होने वाले कोई भी अनुष्ठान के लिए पूजा, पाठ, यज्ञ आदि करने से पहले भी जनेऊ धारण करना चाहिए। जनेऊ को धारण करने की प्रथा सम्पूर्ण भारत में प्रचलित है। इसे यज्ञसूत्र, व्रतबंध, ब्रह्मसूत्र, उपनयन समेत भिन्न-भिन्न प्रकार के नामों से पुकारा जाता है। जहां तेलुगु में इसे जंध्यम कहते हैं, तो वहीं तमिल में पोनल कहा जाता है। उधर, कन्नड़ में जनिवारा कहकर पुकारते हैं। दरअसल, जनेऊ को किसी व्यक्ति के जीवन में चरण परिवर्तन का सूचक माना जाता है।
खंडित होने पर बदल दें
अगर आपका जनेऊ किसी प्रकार से खंडित हो गया है और वो बार बार टूटने लगा है, तो उसे बार-बार ज़ोड़ने की बजाय बदल देना ही उचित है। इसके अलावा जनेऊ का हर छह महीने में बदल देना अनिवार्य है।
जनेऊ को नहीं किया जाता तन से अलग
अगर आप जनेऊ धारण कर चुके हैं, तो इसे एक बार पहनने के बाद उतारा नहीं जाता है। यदि आप नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं , इसे कंठ में घुमाते हुए ही धो लिया जाता है।

इसकी पवित्रता भंग न हो
यदि आप यज्ञोपवीत को धारण कर चुके हैं, तो इस बात का अवश्य ख्याल रखें कि किसी भी प्रकार से इसकी पवित्रता भंग न हो। इस पवित्र धागे को मल मूत्र के त्याग के दौरान दाएं कान के ऊपर बांध लेना चाहिए और उसके बाद स्वच्छ हाथों से ही उसे छूना चाहिए। इसके अलावा अगर आप यज्ञोपवीत को धोना चाहते हैं, तो इसे शरीर से अलग किए बिना ही साफ करें।
सूतक के बाद जनेऊ को बदले
अगर घर में शिशु का जन्म हुआ है तो इससे घर में सूतक लग जाता है और यदि कुल में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो पातक काल लग जाता हैं । ऐसी अवस्था में सूतक और पातक काल खत्म होने के एकदम बाद जातक को जनेऊ जरूर बदलना चाहिए।
नियमों का पालन करने में सक्षम
यूं तो बचपन में ही जनेऊ संस्कार संपन्न हो जाता है। मगर कुछ जगहों पर विवाह से पहले जनेऊ पहनाया जाता है। प्राचीन काल में 12 वर्ष की आयु में विद्या आरंभ होती थी और उसी वक्त बालक का मुंडन, पवित्र जल से स्नान व जनेऊ धारण कराया जाता था, जिसे यज्ञोपवीत कहते है। आज भी कई जगहों पर इसी परंपरा को निभाया जा रहा है। यज्ञोपवीत के लिए इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जब आप पूर्ण रूप से नियमों का पालन करने में सक्षम हों तभी इसे धारण करें।
जनेऊ को कैसे धारण करें
जनेऊ को बाएं कंधे के ऊपर और दाईं भुजा के नीचे पहना जाता है। यह बाएं कंधे के ऊपर रहना चाहिए। दरअसल, जनेऊ को तीन सूत्रों से मिलकर बनाया गया है और इसे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक भी माना जाता है। इसके अलावा इसे सत्व, रज और तम से भी जोड़कर देखा जाता है। जनेऊ को हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है और इसकी शुद्धता को बनाए रखने के लिए इसके नियमों का पालन करना चाहिए।
