Radhakrishna Story: सनातन धर्म में कृष्ण भक्ति में डूबे रहने वाले अनेकों भक्त हैं जो राधा रानी के नाम का जाप करते रहते हैं।धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से राधे राधे का जाप करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और श्रीकृष्ण के बैकुंठ धाम गौलोक में स्थान प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, राधा और श्रीकृष्ण एक ही आत्मा के दो रूप थे। श्री कृष्ण और राधा रानी एक दूसरे के बिना अधूरे माने जाते हैं। इसीलिए आज भी श्रीकृष्ण से जुड़े प्रत्येक कार्य में राधा रानी का नाम सबसे पहले लिया जाता है।
राधा रानी को अनेकों नामों से जाना जाता है, जैसे वृषभानुकुमारी, बरसाने की रानी और किशोरी जी। शास्त्रों के अनुसार, राधा रानी धरती लोक पर हमेशा किशोरी रूप में ही रही। शास्त्रों में उल्लेखित कथाओं के अनुसार, राधा रानी को ऋषि अष्टवक्र से आजीवन किशोरी बने रहने का वरदान मिला था। आज इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे कि ऋषि अष्टवक्र कौन थे और उन्होंने राधा रानी को किशोरी बने रहने का वरदान क्यों दिया।
पिता से मिला आठ अंगों से टेढ़े होने का श्राप

पंडित इंद्रमणि घनस्याल के अनुसार, पौराणिक कथाओं में यह वर्णन मिलता है कि द्वापर युग में वेदों और शास्त्रों के महान ज्ञाता ऋषि कहोड़ और माता सुजाता के पुत्र का नाम ऋषि अष्टवक्र था। ऋषि अष्टवक्र अपनी माता के गर्भ में ही अपने पिता ऋषि कहोड़ द्वारा शास्त्रों और वेदों का ज्ञान सुनते थे, लेकिन उन्हें शास्त्रों का ज्ञान सही नही लगता था। इसलिए ऋषि अष्टवक्र ने अपनी माता के गर्भ के अंदर से ही अपने पिता से कहा कि शास्त्रों में ज्ञान नहीं है, ज्ञान तो हमारी अंतरात्मा में होता है।
हम सभी सत्य को बाहर खोजते हैं जबकि सत्य तो हमारे अंदर है। शास्त्र तो केवल शब्दों और वाक्यों का समूह है। अपने ही पुत्र से शास्त्र विरोधी बात सुनने पर ऋषि कहोड़ को बहुत क्रोध आया और उन्होंने गर्भ में पल रही अपनी ही संतान को श्राप दिया कि जो अभी तक अजन्मा है, जिसने अपनी माता के गर्भ से मेरे शास्त्र ज्ञान को चुनौती दी है, जन्म के बाद उसका शरीर आठ अंगों से टेढ़ा होगा। इसी श्राप के कारण ऋषि अष्टवक्र आठ अंगों से टेढ़े थे।
राधा रानी को दिया आजीवन किशोरी रहने का वरदान

ऋषि अष्टवक्र के आठ टेढ़े अंगों के कारण लोग उन्हें देखकर कर उनका मजाक बनाया करते थे और उनपर हंसते थे। क्रोध में आकर ऋषि अष्टवक्र लोगों को श्राप दे दिया करते थे। एक बार ऋषि अष्टवक्र बरसाना आए थे तब सभी बरसनावासी उनके दर्शन करने पहुंचे। जिनमें से कई बरसनावासी ऋषि अष्टवक्र के टेढ़े अंगों को देखकर हंसने लगे। ऋषि अष्टवक्र उन सभी को पत्थर में बदल जाने का श्राप दे दिया। जब राधा रानी ऋषि अष्टवक्र के दर्शन के लिए पहुंची तो राधा रानी ऋषि अष्टवक्र को देखकर मंद मंद मुस्कुराने लगी। ऋषि अष्टवक्र अपने क्रोध में आकर राधा रानी को श्राप देने ही वाले थे कि श्रीकृष्ण ने ऋषि अष्टवक्र से अनुरोध किया कि वह एक बार राधा रानी से मुस्कुराने की वजह तो जाने।
तब राधा रानी ने ऋषि अष्टवक्र से कहा कि वह ऋषि अष्टवक्र के टेढ़े अंगों को देखकर नही मुस्कुराई बल्कि आनंद की अनुभूति के कारण मुस्कुरा रही थी क्योंकि उन्हें तो ऋषि अष्टवक्र को देखकर श्रीकृष्ण की छवि और परमात्मा के दर्शन जैसी अनुभूति हुई। इसलिए प्रेम और सम्मान में ऋषि अष्टवक्र को देखकर राधा रानी मुस्कुरा रही थी। इतना सुनकर ऋषि अष्टवक्र बहुत प्रसन्न हुए और राधा रानी को आजीवन किशोरी बने रहने का वरदान दिया। साथ ही अन्य गांव वालों को भी श्राप मुक्त कर दिया। इसी कारण राधा रानी को ‘किशोरी जी’ कहकर संबोधित किया जाता है।
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