Maa Kali Katha: भगवान शिव और माता पार्वती को सृष्टि का जन्मदाता कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सृष्टि के सभी जीवों की उत्पति शिव शक्ति से हुई है। हिंदू धर्म के देवी देवताओं के साथ साथ उनके अन्य रूपों की व्याख्या भी शास्त्रों में मिलती है। पौराणिक काल से ही माता पार्वती को नारीशक्ति का प्रतीक माना जाता रहा है। मां दुर्गा और उनके नौ अवतार भी माता पार्वती के ही अंश है। धरती पर धर्म और न्याय की रक्षा के लिए माता पार्वती ने अनेकों रूप लिए थे। सृष्टि के हित के लिए मां पार्वती ने देवी काली बनकर रक्तबीज नाम के राक्षस का अंत किया। आइए जानते है कि माता पार्वती को देवी काली के रूप में प्रकट होने की आवश्यकता क्यों पड़ी, और भगवान शिव ने देवी काली के क्रोध को कैसे शांत किया।
शिव जी मिला था रक्तबीज को वरदान

पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि शास्त्रों में यह उल्लेख मिलता है कि रक्तबीज शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था। रक्तबीज ने कठोर तपस्या कर के भगवान शिव को प्रसन्न किया और भगवान शिव से यह वरदान प्राप्त किया कि उसके रक्त की एक बूंद भी अगर धरती पर गिरी तो उसी के समान बलशाली राक्षस का जन्म होगा। शिव जी से वरदान पाकर रक्तबीज ने पूरी सृष्टि में नरसंहार शुरू कर दिया। धरती लोक पर मनुष्यों और ऋषि मुनियों पर अत्याचार करने लगा। ऋषि मुनियों ने देवताओं से अपनी रक्षा की प्रार्थना की।
ऋषि मुनियों की रक्षा के लिए देवताओं ने रक्तबीज से युद्ध किया, लेकिन जब भी देवता रक्तबीज पर वार करते, धरती पर रक्त बीज के खून की गिरने वाली हर बूंद से हजारों अन्य रक्तबीज जैसे ही राक्षस उत्पन्न हो जाते। जिसके कारण देवतागण भी रक्तबीज को हरा नहीं पाए। रक्तबीज ने देवताओं को हराकर स्वर्ण पर भी अपना अधिकार कर लिया।
इसके बाद देवतागण भगवान शिव के पास गए और उनसे सहायता मांगी। देवताओं की ऐसी स्थिति देख कर माता पार्वती बहुत अधिक क्रोधित हुई और उनके क्रोध से देवी काली का जन्म हुआ। देवी काली के मुख पर आग के समान तेज था और उनकी जीभ खून के समान लाल थी। क्रोधित देवी काली ने रक्तबीज के साथ युद्ध किया। देवी काली ने अपनी जीभ को इतना बड़ा कर लिया की रक्त बीज के खून की सभी बूंदे देवी काली की जीभ पर गिरने लगी। जिसके कारण रक्त बीज के खून से जन्मे राक्षस भी देवी काली के मुख में समाने लगे। अंत में, देवी काली ने रक्तबीज राक्षस का भी वध कर दिया।
शिव जी ने किया देवी काली के क्रोध को शांत

रक्तबीज का वध करने के बाद भी देवी काली का क्रोध शांत नहीं हुआ। देवता भी देवी काली के क्रोध से भयभीत होने लगे। ऐसे में भगवान शिव, देवी काली के मार्ग में लेट गए। देवी काली ने बिना देखे क्रोध में ही भगवान शिव के ऊपर पैर रख दिया। पैर रखते ही देवी काली को ज्ञात हुआ कि उनके चरणों में भगवान शिव लेटे हुए हैं। अपनी इस भूल का आभास होते ही देवी काली का क्रोध शांत हो गया।