Mahakali Mythology: हिंदू धर्म में देवी देवताओं में मां दुर्गा का विशेष स्थान है। मान्यता है कि दुर्गा माता की आराधना करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है। सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी देवताओं ने सृष्टि को बचाए रखने के लिए समय-समय पर कई अवतार लिए हैं। इसी प्रकार मां भगवती दुर्गा देवी ने भी दुष्टों का संहार करने के लिए अनेक अवतार लिए थे। नवरात्रि के 9 दिनों में दुर्गा माता के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है। जिसमें काली माता के स्वरूप का विशेष महत्व है। पौराणिक ग्रंथों में काली माता अवतार के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। तो आइए जानते हैं पंडित इंद्रमणि घनस्याल से दुर्गा मां के काली माता अवतार लेने के पीछे की पौराणिक कथा के बारे में।
इसलिए मां दुर्गा ने लिया था काली माता का अवतार

पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि एक दारुक नाम का असुर था। दारुक ने कई वर्षों तक तपस्या करके ब्रह्माजी को प्रसन्न किया था। ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर दारुक को मनचाहा वरदान दिया। ब्रह्माजी द्वारा वरदान मिलने पर दारुक देवों और ब्राह्मणों को प्रताड़ित करने लगा। उसके बाद दारुक ने सभी धार्मिक अनुष्ठान, हवन इत्यादि कार्य बंद करवा दिए और स्वर्ग पर भी अपना अधिकार जमा लिया। तब सभी देवता एकत्रित होकर ब्रह्मा और विष्णु जी के पास गए और दारुक के द्वारा किए गए कृत्यों के बारे में बताया। तब ब्रह्माजी ने देवताओं से कहा कि दारुक का अंत केवल एक स्त्री ही कर सकती है अर्थात दारुक एक स्त्री के हाथों ही पराजित हो सकता है। तब सभी देवता ब्रह्माजी और विष्णु के साथ स्त्री रूप में प्रकट हुए और दारुक से युद्ध करने के लिए गए। लेकिन दारुक ब्रह्माजी के द्वारा दिए गए वरदान के कारण अत्यंत बलशाली हो गया था।
इसलिए उसने सभी देवताओं को परास्त कर दिया। उसके बाद सभी देवता ब्रह्मा जी और विष्णु के साथ शिव जी के पास गए और असुर दारुक के बारे में शिवजी को बताया। महादेव ने पार्वती की तरफ इशारा किया, पार्वती ने अपने एक अंश को शिवजी के शरीर में अदृश्य तरीके से प्रवेश कराया। माता पार्वती का वह अंश भगवान शिव के गले में मौजूद विष से अपना आकार धारण करने लगा। भगवान शिव के गले में विष होने के कारण उस अंश ने काले रंग के वर्ण में परिवर्तित होना शुरु कर दिया।
भगवान शिव ने खोला तीसरा नेत्र

उसके बाद भगवान शिव ने उस अंश को अपने शरीर में महसूस करके अपना तीसरा नेत्र खोला। उनके नेत्र खोलने से एक काले वर्ण की स्त्री काली माता के रूप में प्रकट हुई। काली माता के माथे पर भी तीसरा नेत्र था। उनका रूप बहुत ही ज्यादा विकराल था। काली माता के कंठ में कराल विष का चिन्ह था। काली माता ने अनेक प्रकार के आभूषण धारण कर रखे थे। उनके हाथ में एक त्रिशूल भी था। काली माता के इस अवतार को देखकर सभी देवता डर कर भागने लगे। माना जाता है कि काली माता के हुंकार मात्र से ही दारुक और अन्य असुर जलकर भस्म हो गए थे।
भगवान शिव ने लिया बालक का रूप

काली माता के क्रोध की ज्वाला से संपूर्ण लोक अग्नि में भस्म होने लगा। पूरी सृष्टि को जलता देख भगवान शिव ने एक बालक का रूप धारण किया और भगवान शिव शमशान में जाकर बालक स्वरूप में रोने लगे। जब काली माता की दृष्टि भगवान शिव के बालस्वरूप पर पड़ी तो उनमें ममता और वात्सल्य का भाव जाग गया। काली माता ने उस बालक को अपने कलेजे से लगाया और उसे स्तनपान कराने लगी। तब शिव रूपी उस बालक ने दूध के साथ साथ काली माता के पूरे क्रोध को भी पी लिया था। माना जाता है कि माता के क्रोध से 8 मूर्तियां उत्पन्न हुई जिन्हें क्षेत्रपाल के नाम से जाना जाता है।
यह भी पढ़ें: जानिए घर की किस दिशा में घड़ी नहीं लगानी चाहिए: Vastu Tips for Wall clock
