गीता में ज़िंदगी का सार छुपा हुआ है.इस में जीवन से जुड़ी हर समस्या का समाधान है अज्ञात भय या असुरक्षा की भावना होने पर श्रीमद् भागवत गीता ज्योति का काम करती है.जब कौरवों और पांडवों का युद्ध शुरू होने जा रहा था तो अर्जुन के विषाद को दूर करने के लिए श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया ,किसी भी संकल्प को पूरा करने के लिए मन को स्थिर और अचल होना आवश्यक है.उद्देश्य प्राप्ति के लिए हमें निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए.मन को बार बार अन्य बिंदुओं से हटाकर अपने लक्ष्य पर केंद्रित करने की प्रक्रिया को दोहराते रहना चाहिए-अगर-विगत की चिंता से मुक्त होकर,कर्म पथ पर आगे बढ़ते रहना चाहिए.घटनाएँ प्रकृति के घटनाक्रम की कड़ी है और वे समय अनुसार घटती रहती हैं.अनावश्यक चिंताओं में उलझना जीवन के अमूल्य समय को नष्ट करना है.इसलिए तनाव राहत होकर अपना कर्म करते रहना चाहिए. गीता के दूसरे अध्याय और इक्कीसवें श्लोक में उन्होंने अर्जुन को समझाया-
१-वर्तमान का आनंद लो–डिप्रेशन को कैसे पहचानें,अतीत और भविष्य की चिंता करने के बजाय,वर्तमान का आनंद लो.क्योंकि जो होना है वो तो होकर ही रहेगा.जो होता है,अच्छा ही होता है.
२-आत्मभाव में रहना ही मुक्ति है–पद प्रतिष्ठा,धर्म,स्त्री या पुरुष हम नहीं हैं और न यह शरीर हम हैं.अग्नि,जल,वायु,पृथ्वी और आकाश से बना शरीर,इसी में मिल जाएगा,लेकिन आत्मा स्थिर है,ये,न कभी न मरती है,न उसका जन्म होता है.आत्मभाव में रहना ही मुक्ति है.
३-परिवर्तन संसार का नियम है–इसलिए सुख-दुःख,लाभ हानि,जय पराजय,मान अपमान आदि में भेदों में एक भाव में स्थित रहकर हम जीवन का आनंद ले सकते हैं.
४-क्रोध शत्रु है–क्रोध से भ्रम पैदा होता है.और भ्रम से बुद्धि विचलित होती है,इससे स्मृति का नाश होता है और इस प्रकार व्यक्ति का पतन होने लगता है.क्रोध,कामवासना और भय हमारे शत्रु हैं.
५-ईश्वर के प्रति समर्पण–ख़ुद को ईश्वर के लिए समर्पित कर दो,फिर वो हमारी रक्षा करेंगे और हम,दुःख,भय,चिंता,शोक और बंधन से मुक्त हो जाएंगे.
६- नज़रिए को शुद्ध रखें–हमें अपने देखने के नजरिए को शुद्ध करना होगा.ज्ञान व कर्म को एक रूप में देखने से ,हमारा नजरिया बदल जाएगा.
७-मन को शांत रखें– अशांत मन को शांत रखने के लिए अभ्यास और वैराग्य को पक्का करना नितांत आवश्यक है,अन्यथा अनियंत्रित मन हमारा,शत्रु बन जाएगा.
८-कर्म से पहले विचार करें–कोई भी कर्म करने से पहले ज़रूर सोचना चाहिए,कि उसका फल भी हमें ही भोगना होगा.
९-अपना काम करें–कोई और काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि हम अपना ही काम करें,भले ही वो अपूर्ण क्यों न हो.
१०-समता का भाव रखें–सभी के प्रति समता का भाव,सभी कर्मों में कुशलता और दुःख रूपी संसार से वियोग का नाम योग है
श्री कृष्ण ने अर्जुन को पूरा ज्ञान देने के बावजूद यह स्वतंत्रता भी दी थी कि वह स्वविवेक से निर्णय ले और कार्य करें.उन्होंने ,पराश्रित नहीं,स्व आश्रित होने का आह्वान कर व्यक्ति को स्वावलंबी व आत्मनिर्भर बनने का संदेश दिया है.
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