chitthi aayi hai author views
chitthi aayi hai author views

Author Views: माना कि मैं आपका एक पुरुष पाठक हूं पर हर महीने गृहलक्ष्मी पढ़कर ऐसा महसूस करता हूं जैसे कोई अपने दोस्त या महिला मित्र के साथ बातें कर रहा हूं। इस पत्रिका में छपी कहानियां, लेख और अनुभव सिर्फ शब्द नहीं होते, बल्कि हर स्त्री के दिल की धड़कन होते हैं। आज की स्त्री घर की चारदीवारी से निकलकर समाज के हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही है, फिर भी उसे रोज किसी न किसी रूप में चुनौती का सामना करना पड़ता है-कभी खुद को साबित करने की, कभी अपने अस्तित्व को स्वीकार करवाने की, ऐसे में गृहलक्ष्मी जैसी पत्रिका उसे न सिर्फ पढ़ने का सुख देती है, बल्कि आत्मविश्वास भी देती है। आपकी पत्रिका एक इंद्रधनुष के समान है जिसमें विविध रंग हैं जो मुक्त आकाश में प्रकीर्णित हो रहे हैं। आपकी पत्रिका महिलाओं को उनके संकोच के व्यूह से बाहर आने में मदद कर रही है और आत्मविश्वास प्रदान कर रही है। पत्रिका की प्रशंसा में और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है पर इसके साथ ही मेरी एक छोटी-सी इच्छा भी है कि आने वाले अंकों में आप ‘मध्यम आयु की स्त्रियों’ पर विशेषांक प्रकाशित करें- जो न तो युवा कहलाती हैं, न वृद्ध, लेकिन जिनका जीवन अनुभव और संवेदना से भरा होता है। उनके संघर्ष, उनकी मुस्कान और उनकी नई शुरुआतों की कहानियां भी उतनी ही प्रेरक हैं।

  • नीरज कुमार मिश्रा

गृहलक्ष्मी पाठकों के हाथ लग गया अलादीन का चिराग, स्वागत करती है हमारा देश-विदेश की खबरों के साथ। सीख कर इससे, स्वादिष्ट व्यंजन बनाए सवेरे और सांझ, घरेलू नुस्खों से अपनी
सुंदरता को भी लगाएं चार-चांद। प्रतियोगिताओं में इनाम जीतने का यह देती सुअवसर, ‘जब मैं छोटा बच्चा था’ कोना भी हंसाता हमें अक्सर। समस्याओं से जूझती गृहणियों के हर सवाल का जवाब, गृहलक्ष्मी पढ़ कर हम भी पा लेते गृहलक्ष्मी का खिताब।

  • अंजू उदिता
  • मोहाली, (पंजाब)

हर लड़की जब ससुराल में कदम रखती है तो उसकी एक ही ख्वाहिश होती है कि ससुराल वालों का वो मन जीत ले और मेरे पति ने मुझे पहली रात पर गृहलक्ष्मी दी थी और बोले कि उनकी बहन भी पढ़ती है गृहलक्ष्मी, और मैं जब से गृहलक्ष्मी पढ़ रही हू तभी से मुझे ऐसी आंखें मिलीं जिनसे मुझे गृहलक्ष्मी के माध्यम से जीवन जीने की ललक हुई। मुझे गृहलक्ष्मी में छपी कहानियों से, लेखों से अच्छा-खासा मटीरियरल मिलता है पढ़ने को। व्यंग्य तो मैं जरूर पढ़ती हूं। इस बार ‘दशहरे पर
व्यंग्य’ में आधुनिक रावण को पेश किया गया था। व्यंग्य के बाद आते हैं व्यंजन, फेस्टिव मौका हो तो व्यंजन का जिक्र होता ही है। गृहलक्ष्मी की रसोई से क्विक स्नैक्स रेसिपीज देखी और फॉलो किया।
‘हम किसी से कम नहीं’ में ‘अद्भुत महिलाओं के प्रेरक सफर’ में सभी महिलाओं के विषय में पढ़ा, सभी अपने-अपने क्षेत्र में प्रेरणाप्रद हैं। हमें भी इनसे बहुत हौसला मिलता है। मैं भी गरीब महिलाओं की जिस तरह से भी हो सकता है उन्हें रोजगार दिलवाने में मदद करती हूं, जिसके लिए मुझे ‘व्हील स्मार्ट’ श्रीमती अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं एडीटर महोदय को व पूरे गृहलक्ष्मी परिवार को देती हूं, जिनकी लगन से पत्रिका ने अपना स्तर बना रखा है।

  • कविता गुप्ता
    प्रयागराज (उ.प्र.)
andar ka prakaash jarooree
andar ka prakaash jarooree

गृहलक्ष्मी का दिवाली स्पेशल अक्टूबर 2025 अंक खूबसूरत लगा। दिवाली दीयों का त्यौहार है। बाहर के साथ भीतर के दीया का ज्यादा महत्त्व है। घर, आंगन, ऑफिस, अलमारी की सफाई हम सब करते हैं लेकिन एक दीया प्रेम, संवेदना, करुणा, दया का अंतर्मन में जलाने से पूरा माहौल सकारात्मक हो जाता है। ईर्ष्या, द्वेष, उलाहना, कटुता, स्वार्थ रूपी अंधकार को मिटाकर ही हम असली दिवाली मना सकते हैं। जिनके अपने दूर हैं, जो अकेले हैं, अशक्त हैं पराजित हैं, उनके चेहरे पर मुस्कराहट लाना ही सच्ची दिवाली है। हर घर में दीपक जले, हर चेहरे पर हंसी रहे तभी दिवाली की खूबसूरती रहेगी। वास्तव में दीपावली का पर्व मानवीय मन में बैठे हताशा, निराशा, अंधकार, कुंठा के कुहासे को दूर कर जीवन को प्रकाश, ऊर्जा, उत्साह से भर लेने का पर्व है। चंद पंक्तियां दीपावली पर-
आओ भीतर दीप जलाएं, अंदर बाहर प्रकाश फैलाएं। घर-घर उजियारा आए, सुख समृद्धि संपदा फैलाएं।

माया रानी श्रीवास्तव
मिर्जापुर (उ.प्र.)

भले ही आज का दौर मैगजिन का नहीं है फिर भी गृहलक्ष्मी मैगजीन घरों तक पहुंच बनाए हुए है। इसका कारण मुझे लगता है इस मैगजीन ने समय के साथ खुद की लेखनी में बदलाव किया है। जहां मैं खुद गृहलक्ष्मी को पढ़ती हूं वहीं कहीं न कहीं मेरी बेटी में भी इसको पढ़ने की उत्सुकता
रहती हैं।

  • प्रेरणा
    इंदौर (म.प्र.)

नीरज कुमार मिश्रा (उ.प्र.)