माता-पिता के बातचीत के ये तरीके बच्चे को पहुंचाते हैं नुकसान: Child and Parents Communication
Communication Between Child and Parents

Child and Parents Communication: बच्चे की देखरेख करते हुए माता-पिता भी काफी कुछ सीखते हैं। भले ही आप अपने बच्चे को कितना भी प्यार करते हों या फिर आपने उसे सारी सुख-सुविधाएं देने की कोशिश की हों, लेकिन अगर आप कम्युनिकेशन के दौरान गलतियां करते हैं तो इससे बच्चे पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। कम्युनिकेशन स्किल्स किसी भी रिश्ते को बेहतर बनाने में एक ब्रिज की तरह काम करते हैं। अगर ब्रिज कमजोर होता है तो ऐसे में रिश्ते अधर में ही रह जाते हैं। इसलिए, हमेशा यह सलाह दी जाती है कि माता-पिता अपने कम्युनिकेशन स्किल्स पर लगातार काम करते रहें।

आप भले ही कितने अच्छे या मॉडर्न पैरेंट हों, लेकिन अगर आप कुछ कम्युनिकेशन मिसटेक्स करते हैं तो इसका हर्जाना बच्चे को भुगतना पड़ सकता है। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको कुछ ऐसी ही कम्युनिकेशन मिसटेक्स के बारे में बता रहे हैं, जिसे अक्सर हम कर बैठते हैं-

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यह एक बेहद ही कॉमन कम्युनिकेशन मिसटेक्स है, जिसे अधिकतर पेरेंट्स बार-बार दोहराते हैं। अमूमन पेरेंट्स अपनी बात तो बच्चे से कह देते हैं, लेकिन अगर बच्चा कुछ कहना चाहता है तो उसकी सुनते ही नहीं है। कई बार हम अपने काम में बिजी हो जाते हैं या फिर उसे डांटकर चुप करा देते हैं। ऐसा करने से बच्चे को अपने ही घर में काफी अकेला महसूस होने लगता है। ऐसे में बच्चा घर से बाहर ऐसे लोग ढूंढने लगता है, जो उनकी बात सुनते और समझते हों।

Judgemental
Judgemental

कई बार पेरेंट्स जब बच्चे के साथ कम्युनिकेट करते हैं तो वे बहुत अधिक जजमेंटल हो जाते हैं। मसलन, वे बच्चे की आदतों व हरकतों को लेकर जजमेंटल कमेंट करते हैं। मसलन, आज तुम बहुत अधिक शरारत कर रहे हो या फिर ऐसे बच्चे की तरह व्यवहार करना बंद करो! ये कुछ ऐसी लाइन्स हैं, जिसे अधिकतर पेरेंट्स बोलते ही हैं। लेकिन आपकी इस तरह की टिप्पणियों से बच्चा आलोचना महसूस करेगा। ऐसे में वह प्रोटेक्टिव हो जाते हैं और इससे बहस शुरू हो जाती है। इतना ही नहीं, कभी-कभी बच्चा यह भी सोचता है कि पेरेंट्स उसके बारे में गलत ही सोचते हैं। ऐसे में वह और भी ज्यादा गलत हरकतें करना शुरू कर देता है।

एक पैरेंट के रूप में आपको कभी भी अपने बच्चे से या फिर बच्चे के सामने झूठ नहीं बोलना चाहिए। यह देखा जाता है कि जब कभी बच्चा जिद करता है तो पेरेंट्स उसे शांत करने के लिए झूठा वादा कर देते हैं और बाद में मुकर जाते हैं। जिससे बच्चे को काफी बुरा लगता है। इतना ही नहीं, इस तरह आप बच्चे के सामने एक गलत उदाहरण भी पेश कर रहे हैं। इससे बच्चे को लगने लगता है कि किसी भी मुश्किल स्थिति से बाहर निकलने के लिए झूठ बोलना सही है। धीरे-धीरे बच्चा हर छोटी-छोटी बात पर झूठ बोलना शुरू कर देता है।

Blaming
Blaming

आपने अपने आसपास ऐसे बहुत से पेरेंट्स को देखा होगा, जो हर वक्त बच्चे को किसी ना किसी बात के लिए दोष ही देते रहते हैं। मसलन-तुम मुझे बहुत गुस्सा दिला रहे हो!, ष्अगर आपने पहली बार ही सुना होता तो मुझे चिल्लाना नहीं पड़ता!, मैं तुम्हारे इस व्यवहार से बहुत थक गया हूं। यह कुछ ऐसी लाइन्स हैं जो अधिकतर पेरेंट्स अपने बच्चे को बोलते हैं। लेकिन जब आप बच्चे को ब्लेम करते रहते हैं तो इससे बच्चे में भी नेगेटिविटी बढ़ने लगती है। वे अक्सर अपने पेरेंट्स से वह बॉन्डिंग नहीं बना पाते हैं, जो वास्तव में उनके बीच होनी चाहिए।  लगातार बच्चे को ब्लेम करने से उसके मन में अपने पेरेंट्स को लेकर एक नेगेटिव इमेज बनती है। इतना ही नहीं, कई बार बच्चे अपने पैरेंट्स से उल्टा बोलना भी शुरू कर देते हैं।

कई बार जब पेरेंट्स अपने बच्चे को कुछ समझाना चाहते हैं तो वे वास्तव में उन्हें एक लंबा लेक्चर देते हैं। जिसमें वे कई बातों को एक साथ शामिल करते हैं। आप यकीनन बच्चे को कुछ अच्छा समझाना चाह रहे हैं, लेकिन आपको यह भी जानना चाहिए कि बच्चा अभी इतना मैच्योर नहीं है कि वह आपकी गहराई से समझाई गई बात का अर्थ समझ सके। इसलिए, आपको घुमा-फिराकर बात करने से बचना चाहिए। बेहतर होगा कि आप उससे एक बार में एक ही विषय पर बात करें। अगर आप उसे सीधे तौर पर अपनी बात नहीं  समझा सकते हैं तो ऐसे में आप उसे एक कहानी के जरिए अपनी बात सिखा सकते हैं।

Anger Issue
Anger Issue

यह एक बहुत बड़ी कम्युनिकेशन मिसटेक है, जिससे हर पैरेंट को बचना चाहिए। हो सकता है कि आप तनावग्रस्त, थके हुए या फिर गुस्से में हों। उस समय आपको बच्चों से बिल्कुल भी बात नहीं करनी चाहिए। दरअसल, उस समय आप अपना आपा खो चुके होते हैं, ऐसे में आप बच्चे से इफेक्टिव कम्युनिकेशन नहीं कर पाते हैं। इतना ही नहीं, इस दौरान जब आप बच्चे से कुछ भी बात करते हैं तो आप बहुत अधिक गुस्से में बोलते हैं, जिससे बच्चे के बालमन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए कुछ समय तक प्रतीक्षा करें जब तक आप शांत न हो जाएं, और फिर आप अपने बच्चों के साथ बात करें। यदि बहुत जरूरी न हो तो अपने बच्चों को कुछ समय बाद में आपसे बात करने के लिए कहें।