Life Lessons: जब आप रमजान लिखते हैं तो राम से शुरुआत करते हैं और जब आप दिवाली लिखते हैं तो अली से समाप्त करते हैं। यों रमजान में बसेराम और दिवाली में छिपे अली हमें मुहब्बत से रहने का पैगाम देते हैं।
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धर्म के दुश्मन नास्तिक नहीं बल्कि तथाकथित धर्म के ठेकेदार हैं। ईश्वर को जितना बदनाम इन तथाकथित
ठेकेदारों ने किया है, उतना नास्तिकों ने नहीं। वैसे भी हीरे के दुश्मन कंकर-पत्थर कहां होते हैं? नकली हीरे होते हैं। यह सच है कि आज खजाने को चोरों से नहीं, पहरेदारों से खतरा है, देश को दुश्मनों से नहीं, गद्दारों से खतरा है और धर्म को दुश्मनों से नहीं, ठेकेदारों से खतरा है। वे लोग जो धर्म की आड़ में अपना उल्लू सीधा
करते हैं, धर्म के असली दुश्मन हैं। शाश्वत् धर्म यही है कि यदि संत-मुनि तुम्हारे घर-नगर आ रहे हैं तो उनकी अगवानी करो, उनका स्वागत और अभिनंदन करो। यदि संत-मुनि तुम्हारे घर-नगर में ठहरते हैं तो
उनके प्रवास की समुचित व्यवस्था करो और यदि संत-मुनि तुम्हारे नगर से विहार कर रहे हैं तो उन्हें रोको मत,
सहज व प्रसन्न-मन से विदा करो क्योंकि वे तुम्हारे ही किसी भाई के कल्याण और मुक्ति के लिए जा रहे हैं।
सद्गुरु एक दीप है। दीप का काम दीयों की बाती को प्रज्वलित करना, उन्हें जगाना और आगे बढ़ जाना है। बीड़ी और सिगरेट तो केवल मानव के लिए जहर हैं लेकिन शराब तो पूरी मानवता के लिए जहर है। नदी, तालाब और समुद्रों में डूबकर अब तक जितने लोग नहीं मरे होंगे उससे भी कहीं अधिक लोग शराब के छोटे
से ह्रश्वयाले में डूबकर मर चुके हैं। इस अंगूर की बेटी ने पता नहीं कितनी मां के बेटों का बेड़ा-गर्क कर रखा है। दुनिया में अगर शराब नाम की चीज न होती तो दुनिया का नक्शा ही कुछ और होता। इस नशे ने व्यक्ति,
परिवार, समाज, देश और दुनिया की दशा और दिशा दोनों बिगाड़ रखी है। शराब पिएं तो यह सोचकर पिएं कि अब मैं आत्महत्या कर रहा हूं। आलू-बड़ा, मिर्ची-बड़ा, दही-बड़ा के अलावा आज एक और बड़ा का नाम समाज में आया है और वह है- मैं बड़ा।

गृहस्थ कहता है-मैं बड़ा। साधु कहता है- मैं बड़ा। मेरा कहना है कि न गृहस्थ बड़ा है और न साधु बड़ा है बल्कि जो इस ‘मैं बड़ाÓ के लफड़े से दूर खड़ा है, वह बड़ा है। गृहस्थ
और साधु दोनों अधूरे हैं क्योंकि दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। 23 घंटे गृहस्थ को साधु की जरूरत पड़ती है तो 1 घंटे साधु को भी (आहार के समय) गृहस्थ की जरूरत पड़ती है। श्रावक और मुनि धर्म-रथ के दो पहिएं हैं और कोई भी रथ एक पहिए से नहीं चलता। हिन्दू और मुसलमान इस देश की दो आंखें हैं और ये दोनों कौमें खूब ह्रश्वयार और मुहब्बत के साथ सदियों से कंधे से कंधा और कदम से कदम मिलाकर रहती आ रही हैं। साम्प्रदायिकता इस देश के मिजाज में नहीं है। और हो भी कैसे? जरा गौर फरमाईए कि जब आप रमजान
लिखते हैं तो राम से शुरुआत करते हैं और जब आप दिवाली लिखते हैं तो अली से समाप्त करते हैं। यों
रमजान में बसे राम और दिवाली में छिपे अली हमें मुहब्बत से रहने का पैगाम देते हैं। अगर राम के भक्त और रहीम के बंदे थोड़ी अक्ल से काम लें तो यह मुल्क स्वर्ग से भी सुंदर है। श्मशान गांव के बाहर नहीं बल्कि शहर के बीच चौराहे पर होना चाहिए। श्मशान उस जगह होना चाहिए जहां से आदमी दिन में दस बार गुजरता है ताकि जब-जब वह वहां से गुजरे तो वहां जलती लाशों और अध-जले मुर्दों को देखकर उसे भी अपनी मृत्यु का
ख्याल आ जावे। और अगर ऐसा हुआ तो दुनिया के 80 फीसदी पाप और अपराध स्वत: खत्म हो जायेंगे। आज का आदमी भूल गया है कि कल उसे मर जाना है। तुम कहते जरूर हो कि एक दिन सभी को मर जाना है।
पर उन मरने वालों में तुम अपने को कहां गिनते हो?
