भारत के हर प्रदेश में राम मंदिर है। हर मंदिर में राम और सीता की प्रतिमा है। अनेक राम मंदिर प्राचीन है। उत्तर और दक्षिण भारत में राम मंदिर अधिक हैं। इससे स्पष्ट है कि राम भक्त सारे देश में फैले हुए हैं। विदेशों में भी राम भक्त एवं राम मंदिर हैं। जिनका उल्लेख पहले ही किया जा चुका है। प्राचीन और अर्वाचीन मंदिरों में एक विशेष अंतर उनकी वास्तु कला का है। आधुनिक मंदिर उतने कलात्मक नहीं है जितने प्राचीन मंदिर हैं। यहां हम कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के विषय में संक्षिप्त परिचय दे रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर : रघुनाथ मंदिर, जम्मू
हिमालय की गोद में बसा हुआ जम्मू-कश्मीर धरती पर स्वर्ग माना जाता है। जम्मू और कश्मीर सूबे के जम्मू शहर में स्थित राम को समर्पित मंदिर आकर्षक वास्तुकला का नमूना है। इस मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1835 ईस्वी में महाराजा गुलाब सिंह ने शुरू किया किया था लेकिन उनके जीवन काल में यह बनकर तैयार नहीं हुआ था। सन् 1860 ईस्वी में महाराजा रणवीरसिंह के काल में यह मंदिर बनकर तैयार हुआ। इस प्राचीन मंदिर को रघुनाथ मंदिर कहते हैं। यह तवी नदी के उत्तर में 1,150 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर उत्तर भारत का सबसे बड़ा और सबसे प्रमुख मंदिर है। मंदिर के परिसर में अनेक देवताओं की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर में एक शिलालेख है जो प्रवेश द्वार पर पर स्थित है, उसमें ब्राह्मिक लिपि द्वारा गुलाब सिंह और उनके भाई ध्यान सिंह को 1827 ईस्वी में एक महंत जगन्नाथ के सम्मान में मंदिर बनाने का श्रेय दिया जाता है। इस मंदिर में सात ऐतिहासिक धार्मिक स्थल मौजूद है अर्थात रघुनाथ मंदिर में सात मंदिर हैं। जिनमें से प्रत्येक का अपना शिखर है। यह भारत के सबसे बड़े मंदिर परिसरों में से एक है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मंदिर के तीन ओर आंतरिक दीवारों पर सोने की चादरें ढँकी हुई हैं। इसमें एक गैलरी भी है, जहां विभिन्न ‘लिंगम’ (भगवान शिव का लिंग रूप) और ‘शालिग्राम’ रखे गए हैं। रघुनाथ मंदिर में हिंदू पंथियन के लगभग सभी चित्र शामिल हैं, जो मंदिर वास्तुकला में एक असामान्य अवतार हैं। मंदिर के प्रवचन और अनुष्ठानों में सुबह और शाम की आरती दोनों शामिल हैं। मंदिर के भीतर की दीवारों पर तीन तरफ से सोने की परत चढ़ी हुई है। इसके अलावा मंदिर के चारों ओर कई मंदिर स्थित है जिनका सम्बन्ध रामायण काल के देवी-देवताओं से हैं। मंदिर की आंतरिक सूचियों में जम्मू स्कूल ऑफ पेंटिंग के चित्र हैं, जिनमें रामायण, महाभारत, भगवद्-गीता, और हिंदू महाकाव्यों के चित्र हैं, जिनमें गणेश, कृष्ण, शेषनाग विष्णु जैसे देवताओं को प्रदर्शित किया गया है। मंदिर के मुख्य तीर्थस्थल में भगवान राम की मूर्ति, जो डोगरा संप्रदाय के लोगों के पारिवारिक देवता है, गर्भगृह में बनी हुई है। इस मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें रामायण व महाभारत काल के कई चरित्रों की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। जो भगवान राम के जीवन काल को दर्शातीं हैं।
इस मंदिर का रामनवमी का त्यौहार दर्शनीय होता है। जो भगवान राम के जन्मोत्सव पर मनाया जाता है। रघुनाथ मंदिर बाहर से पांच कलश के रूप में नजर आता है। मंदिर के गर्भ गृह में राम-सीता व लक्ष्मण की प्रतिमाएं स्थापित हैं।
रघुनाथ मंदिर पर वर्ष 2002 में मार्च और नवम्बर के महीने में मंदिर में दो आतंकवादी हमले हुए थे। जिसमें पहला हमला आतंकवादी संगठन द्वारा हुआ था और दूसरा लश्कर-ए-तैयबा के हमलावरों द्वारा किया गया था। हमले में आतंकवादियों ने ग्रेनेड पर गोलीबारी भी की थी। इस घटना में 13 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी और 40 श्रद्धालु घायल हो गए थे। जिसके बाद मंदिर को बंद कर दिया था। परंतु 2003 में मंदिर को दौबरा खोल दिया गया।
हिमाचल प्रदेश : राम मंदिर, मणिकर्ण एवं कुल्लू
रामलला की जन्मभूमि अयोध्या और देवभूमि कुल्लू का 370 साल पुराना अटूट रिश्ता है। रघुनाथपुर में रघुनाथ की स्थापना 1660 में की गई। रघुनाथ जी मंदिर में सन् 1651 ई में कुल्लू के राजा द्वारा राम की मूर्ति स्थापित की गई थी। दस साल तक रघुनाथ को मकराहड़ और धार्मिक स्थली मणिकर्ण में रखा गया।
भगवान राम की मूर्ति को अयोध्या से मणिकर्ण में लाया गया। इसके बाद कुल्लू लाया गया था। मणिकर्ण में भगवान राम का प्राचीन मंदिर है। कुल्लू से पहले मणिकर्ण में दशहरा मनाया गया था। यहां पर दशहरा के दौरान भगवान रामचंद्र को रथ में बिठाकर रथयात्रा निकाली जाती है। धार्मिक नगरी मणिकर्ण में दो प्रसिद्ध मंदिर हैं। पहला राम मंदिर और दूसरा हिडिंबा मंदिर।
एक लोक प्रचलित है इस क्षेत्र में। कहते हैं कि एक दिन राजा को एक दरबारी ने सूचना दी कि मड़ोली या टिप्परी के ब्राह्मण दुर्गादत्त के पास सुच्चे मोती हैं। जब राजा ने मोती मांगे तो राजा के भय से दुर्गादत्त ने खुद को अग्नि में जलाकर समाप्त कर दिया। उसके पास मोती नहीं थे। इससे राजा को रोग लग गया। ब्रह्म हत्या के निवारण को राजा जगत सिंह के राजगुरु तारानाथ ने सिद्धगुरु कृष्णदास पथहारी से मिलने को कहा। पथहारी बाबा ने सुझाव दिया कि अगर अयोध्या से त्रेतानाथ मंदिर में अश्वमेध यज्ञ के समय की निर्मित राम-सीता की मूर्तियों को कुल्लू में स्थापित किया जाए तो राजा रोग मुक्त हो सकता है। पथहारी बाबा ने यह काम अपने शिष्य दामोदर दास को दिया। सन् 1650 ईस्वी में तत्कालीन कुल्लू के राजा जगत सिंह के आदेश पर भगवान रघुनाथ, सीता और हनुमान की मूर्तियां अयोध्या से दामोदर दास नामक व्यक्ति लाया था। मूर्ति लाने के बाद राजा ने रघुनाथ के चरण धोकर पानी पिया। इससे राजा का रोग खत्म हो गया। कहते हैं कि इसके बाद राजा ने अपना सारा राजपाठ भगवान रघुनाथ को सौंप दिया और भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार बन गए। राजा जगत सिंह ने अपनी राजधानी को नग्गर से स्थानांतरित कर सुल्तानपुर में बसा लिया था।
उत्तराखंड : श्रीराम दरबार मंदिर हरिद्वार
यह राम मंदिर उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में हरकी पौड़ी से 4 किलोमीटर की दूरी में सप्तसरोवर रोड पर स्थित है। इस मंदिर में कुछ अनोखे तरीके के कांच का प्रयोग किया गया है। कांच से बना यह राम मंदिर अपनी भव्यता को दर्शाता है। श्री राम दरबार मंदिर एक शीशमहल मंदिर है। राम सेतु के निर्माण में प्रयुक्त किया गया एक पत्थर भी है। जो 21 किलो 800 ग्राम का हैं।
उत्तर प्रदेश : कनक भवन, अयोध्या
कनक भवन के विषय में मान्यता है कि यह भगवान श्रीराम और देवी सीता का भवन है जिसे माता कौशल्या ने देवी सीता को मुंह दिखाई में दिया था।
वर्तमान कनक भवन का निर्माण ओरछा के राजा सवाई महेन्द्र प्रताप सिंह की धर्मपत्नी महारानी वृषभानु कुंवरि ने करवाया है। इन्होंने प्राचीन मूर्तियों के साथ सन् 1891 ईस्वी में मंदिर में दो नए राम सीता के विग्रह की भी स्थापना भी करवाई है। प्राचीन विग्रह के विषय में मान्यता है कि भगवान राम और देवी सीता के देहत्याग के बाद उनके पुत्र कुश ने उनकी मूर्ति बनवाकर स्थापित की थी।
कनक भवन को लेकर एक कथा यह भी है कि अयोध्या नगरी के पराभव के बाद यह भवन जीर्ण हो गया था। कृष्ण अवतार के समय जरासंध वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण जब यहां आए तो उन्होंने मंदिर का फिर से निर्माण करवाया और मूर्तियों को स्थापित करवाया।
बिहार : हरिहरनाथ मंदिर, सोनपुर
भगवान विष्णु को समर्पित हरिहरनाथ मंदिर का निर्माण भगवान राम ने त्रेता युग में करवाया था। माना जाता है कि श्रीराम ने यह मंदिर तब बनवाया था, जब वे सीता स्वयंवर में जा रहे थे।
सारण और वैशाली जिले की सीमा पर गंगा और गंडक नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर का निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया। वर्तमान में जो मंदिर है, उसका जीर्णोद्धार तत्कालीन राजा राम नारायण ने करवाया था।
दरभंगा राम मंदिर
प्राचीन काल और मध्य काल में राजा-महाराजाओं, सामंतों, जमींदारों और धनपतियों द्वारा अपनी आस्था और श्रद्धा का दर्शाने के लिए मंदिरों के निर्माण करवाने की परंपरा रही है। इसी परंपरा का एक उदाहरण है बिहार के दरभंगा में स्थित राम मंदिर।
रामेश्वर सिंह ने अपने शासनकाल 1898–1929 में एक मंदिर अयोध्या में बने राम मंदिर जैसा एक राम मंदिर का निर्माण करवाया गया था। यह मंदिर संभवतः विवादित बाबरी मस्जिद राम मंदिर का समनिदर्श है।
नरगोना परिसर के अंदर इस विशालकाय मंदिर में काले पत्थर से निर्मित रामलला की मूर्ति के साथ सीता की मूर्ति स्थापित की गई। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यह मंदिर अयोध्या के राम मंदिर से मिलता-जुलता है। साथ में गर्भ गृह में रामलला के गुरु के साथ हनुमान लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न सभी के प्रतिमाएं मौजूद है। वहीं गर्भ गृह के बाहर एक और शिव पार्वती तो दूसरी और राधा कृष्ण की प्रतिमा स्थापित है।
मंदिर में एक काले पत्थर से निर्मित राम की प्रतिमा के साथ सीता की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर को बनाने वाले कर्मचारियों के गुरु की प्रतिमा भी राम सीता के साथ स्थापित की गई है।
आज यह खंडहर हो गया है। मैथिल ब्राह्मण जमींदार खण्डवाल कुल से थे। जिसके संस्थापक महेश ठाकुर का शाण्डिल्य गोत्र था। उन्होंने 16वीं शताब्दी के शुरुआत में अपने साम्राज्य की स्थापना की थी। दरभंगा के इस राज परिवार के द्वारा बनाया गया यह मंदिर उपेक्षा के कारण खंडहर में तब्दील हो गया है।
महाराष्ट्र : सीताहरण ‘सर्वतीर्थ’, नासिक
जटायु वध की स्मृति में वर्तमान महाराष्ट्र के नासिक जिला के इगतपुरी से लगभग 56 किलोमीटर दूर ताकेड गांव में ‘सर्वतीर्थ’ नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है। ऐसा माना जाता है कि जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई थी। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। राम ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।
पंचवटी तीर्थ, नासिक
उस काल में पंचवटी जनस्थान या दंडक वन के अंतर्गत आता था। पंचवटी या नासिक से गोदावरी का उद्गम स्थान त्र्यंबकेश्वर लगभग 20 मील अर्थात लगभग 32 किलोमीटर दूर है। वर्तमान में पंचवटी भारत के महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे स्थित विख्यात धार्मिक तीर्थ स्थान है।
अगस्त्य मुनि ने श्रीराम को अग्नि शाला में बनाए गए शस्त्र भेंट किए। नासिक में श्रीराम पंचवटी में रहे और गोदावरी के तट पर स्नान-ध्यान किया। नासिक में गोदावरी के तट पर 5 वृक्षों का स्थान पंचवटी कहा जाता है। ये 5 वृक्ष थे – पीपल, बरगद, आंवला, बेल तथा अशोक वट। यहीं पर सीता माता की गुफा के पास 5 प्राचीन वृक्ष हैं जिन्हें पंचवट के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि इन वृक्षों को राम-सीमा और लक्ष्मण ने अपने हाथों से लगाया था।
यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। यहां पर मारीच वध स्थल का स्मारक भी अस्तित्व में है। नासिक क्षेत्र स्मारकों से भरा पड़ा है, जैसे कि सीता सरोवर, राम कुंड, त्र्यम्बकेश्वर आदि। यहां श्रीराम का बनाया हुआ एक मंदिर खंडहर रूप में विद्यमान है। मारीच का वध पंचवटी के निकट ही मृगव्याध ईश्वर में हुआ था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहारी वर्णन मिलता है।
दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम कई नदियों, तालाबों, पर्वतों और वनों को पार करने के पश्चात नासिक में अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। मुनि का आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में था। त्रेतायुग में लक्ष्मण व सीता सहित श्रीरामजी ने वनवास का कुछ समय यहां बिताया।
काला राम मंदिर, नासिक
कलाराम मंदिर भी भारत का एक खूबसूरत राम मंदिर है। यह मंदिर महाराष्ट्र के नासिक नगर के पंचवटी क्षेत्र में स्थित है। कालाराम का शाब्दिक अर्थ है ‘काला राम’ और मंदिर को यह नाम भगवान राम की 2 फीट ऊंची काली मूर्ति के कारण पड़ा है। मंदिर में देवी सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां भी स्थापित हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान राम को चौदह वर्ष के वनवास पर भेजा गया था। दसवें वर्ष के बाद, वह सीता और लक्ष्मण के साथ पंचवटी में गोदावरी नदी के किनारे रहने के लिए आए थे। इस मंदिर का निर्माण सरदार रंगारू ओधेकर ने किया था, जिन्होंने सपना देखा था कि राम की एक काली मूर्ति गोदावरी नदी में है जिसे उन्होंने अगले दिन नदी से निकालकर कालाराम मंदिर में स्थापित किया था।
मध्यप्रदेश : राम वन तीर्थ, सतना
मध्यप्रदेश के सतना में है रामवन। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में नर्मदा व महानदी नदियों के किनारे 10 वर्षों तक राम ने अनेक ऋषि आश्रमों का भ्रमण किया था। पन्ना, रायपुर, बस्तर और जगदलपुर में अनेक स्मारक विद्यमान हैं। यथा – मांडव्य आश्रम, श्रृंगी आश्रम, राम-लक्ष्मण मंदिर आदि।
राजा राम मंदिर, ओरछा
श्रीराम राजा सरकार का महत्व अयोध्या के बाद ओरछा में दिखाई देता है। यहां लोग राम को अपना राजा मानते है। यहां पर राम हर धर्म के राजा हैं। इस मंदिर को ओरछा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भारत में यह एकमात्र मंदिर है जहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है और वह भी एक महल में।
एक दिन मधुकर शाह और कुंवर गणेश बातें कर रहे थे और बातों-बातों में दोनों अपने अपने ईष्ट देव को लेकर झगड़ा करने लगे और महाराजा मधुकर शाह ने महारानी से बोल दिया कि यदि वो एक सच्ची राम भक्त है, तो जाएं अयोध्या और रामजी को यहां ओरछा ले आएं। अब महारानी जी ने भी यह बात मान ली और बोली की या तो अब मैं अपने ईष्ट प्रभु राम को अयोध्या से ओरछा लाऊंगी या फिर अयोध्या में ही अपने प्राण त्याग दूंगी।
महारानी कुंवर गणेश ने अयोध्या और सरयू नदी के किनारे राम जी की पूजा शुरू की। सात दिन हो चुके थे। अनेक विद्वानों का मत है 21 दिन पूजा की तब तक महारानी को श्रीराम ने दर्शन नहीं दिए। अब महारानी हताश होकर अपने प्राण त्यागने का निर्णय लेती है और सरयू में छलांग लगा देती है। तभी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एक बालक के रूप में वहां आ जाते हैं। कुछ लोगों का कहना हैं की सरयू में जब महारानी से छलांग लगार्इं थीं तो जलधारा में ही भगवान राम महारानी की गोद में बैठ गए थे।
अब महारानी बालक रूप में आये श्रीराम से ओरछा चलने का निवेदन करती हैं। राम मान भी जाते हैं लेकिन तीन शर्तो के साथ अब महारानी कुंवर गणेश भगवान राम से उनकी शर्तें पूछती हैं। ये थीं शर्तें :-
पहली शर्त : जहां हम जा रहे हैं, वहां के सिर्फ हम ही राजा होंगे कोई दूसरा नहीं।
दूसरी शर्त : अयोध्या से ओरछा तक आपके साथ हम पैदल जाएंगे वह भी पुण्य नक्षत्र में।
तीसरी शर्त : यदि हम कहीं पर भी बैठ गए तो वहां से उठेंगे नहीं।
महारानी कुंवर गणेश ने श्रीराम की तीनो शर्तें मान ली। श्रीराम एक मूर्ति के रूप में महारानी की गोद में बैठ गए और महारानी पैदल ही ओरछा की तरफ चल दी। 8 महीने 28 दिन में वो ओरछा आ गई थी। यहां यह भी कहा जाता है महारनी के ओरछा पहुचने से पहले महाराजा मधुकर शाह को सपना आया था कि महारानी भगवान राम को लेकर आ रही है। तो मधुकर शाह ने भगवान राम के लिए मन्दिर बनवाना शुरू कर दिया जिसे चतुर्भुज मन्दिर कहते हैं। इस चतुर्भुज मन्दिर का निर्माण पूर्ण हो पाता, उससे पहले ही महारानी कुंवर गणेश जी श्रीराम को लेकर ओरछा आ गई और श्रीराम को अपने महल की रसोई घर में थोड़े समय के लिए स्थापित कर दिया। जब चतुर्भुज मंदिर बन गया तब उस मूर्ति को रसोई घर से उठाकर, इसे चतुर्भुज मंदिर में स्थापित किया जाना था, लेकिन श्रीराम की वह मूर्ति वहां से उठी ही नहीं। इसी को सभी ने भगवान राम का चमत्कार माना और उसी महल को मंदिर बना दिया इसी महलनुमा मंदिर में आज आपको श्री राम राजा दर्शन देते हैं, इस मंदिर को ही श्री राम राजा मन्दिर कहा जाता है।
चित्रकूट का राम मंदिर
चित्रकूट में राम अनुसूया के आश्रम में कई महीनों तक रहे थे। चित्रकूट में ऐसे कई स्थल हैं। जो राम, लक्ष्मण और सीता के जीवन से जुड़े हुए हैं। यह पवित्र स्थल हिन्दुओं के लिए अयोध्या से कम नहीं है। यहां पर रामघाट, जानकी कुंड, हनुमानधारा, गुप्त गोदावरी आदि ऐसे कई स्थल हैं।
आंध्रप्रदेश : श्रीराम मंदिर, रामतीर्थ, नेल्लीमारला मंडल
रामतीर्थम उन स्थानों में से एक है जिसे भगवान श्रीराम के साथ पारंपरिक संबंध द्वारा पवित्र बनाया गया है। ठोस चट्टान की पहाड़ियों की एक श्रृंखला के आधार पर मंदिर और गाँव, जिस पर पानी के कुछ बारहमासी झरने हैं और विभिन्न स्थान एक तरह से राम के नाम से जुड़े हैं। इस मंदिर में चांदी के कवच में भगवान रामचंद्र स्वामी, सीता और लक्ष्मण की सुंदर मूर्तियां देखी जा सकती हैं। मंदिर के समीप एक सुंदर सरोवर है। इसकी शांति के लिए इस मंदिर के दर्शन करने पड़ते हैं। यहां श्री रामनवमी और वैकुंठ एकादशी के त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। हर साल वैकुंठ एकादशी के दौरान रामतीर्थम गिरिप्रदर्शन का आयोजन किया जाएगा। आप कई कछुओं को विष्णु नमः के साथ उनकी पीठ पर मंदिर में घूमते हुए देख सकते हैं। पेड्डा जीयर द्वारा स्थापित एक राम स्तम्भम भी है। बोडी कोंडा में कोडंडा राम मंदिर में श्रीराम की मूर्ति कुछ अज्ञात लोगों द्वारा नष्ट कर दी गई। 29 दिसंबर, 2020 को स्थानीय लोगों ने पाया कि राम की मूर्ति का सिर काट दिया गया था।
जैन धर्मावलंबियों का यहाँ निवासस्थान था। उनके अवशेषों में मुख्य रूप से प्राकृतिक गुफाएँ हैं। जिनमें स्लैब की मूर्तियाँ स्थापित हैं और कुछ छोटे खंडित ईंट मंदिर हैं। यह इस दिशा में उन कुछ जगहों में से एक है जहां जैन मौजूद हैं। यहां दफन अवशेषों की एकमात्र सूचना पुस्तक सिवेल्स लिस्ट्स में है। जहां एक पहाड़ी पर टूटी ईंटों और कटे पत्थरों के बड़े ढेर का उल्लेख है। जिस तक पहुंचना मुश्किल है। यह अब तक अज्ञात था कि यह अवशेष बौद्ध थे। जैन प्राकृतिक गुफाओं, रॉक कला, चित्रों और पहाड़ी के दक्षिण पश्चिम की ओर एक खंडित जैन ईंट मंदिर से बना है।
रामतीर्थम में पूर्व और पश्चिम के समानांतर पहाड़ियों की तीन पंक्तियाँ हैं और प्रत्येक एक संकीर्ण घाटी द्वारा एक दूसरे से अलग होती है। दक्षिणी भाग को बोधिकोंडा के रूप में जाना जाता है और उस पर राम से जुड़े स्थान हैं।
घानीकोंडा की गुफाएं
उत्तरी पहाड़ी दुर्गाकोंडा है, इसलिए उस देवी की एक छवि से नाम दिया गया है जो अपने पश्चिमी आधार पर एक प्राकृतिक गुफा में स्थित है। इस गुफा के सामने तथा इसके ऊपर की चट्टान पर कुछ टीले हैं। इनमें बौद्ध और जैन दोनों अवशेष हैं।
गुरबक्तकोंडा
केंद्रीय पहाड़ी को गुरुबक्तकोंडा (गुरुभक्तुलकोंडा) के रूप में जाना जाता है और यह इसके उत्तरी हिस्से में ऊंचा है जहां बर्बाद बौद्ध मठ खड़ा है। रामचंद्र स्वामी का प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर यहां देखा जा सकता है। जैन प्राकृतिक गुफाओं, रॉक कला, चित्रों और पहाड़ी के दक्षिण पश्चिम की ओर एक खंडित जैन ईंट मंदिर से बना है।
श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर, भद्राचलम
यह मंदिर आंध्रप्रदेश के खम्मण जिले के भद्राचलम शहर में स्थित है। भद्राचलम वनवासी बहुल क्षेत्र है। राम वनवासियों के पूज्य हैं। लोककथाओं के अनुसार राम जब सीता को खोज रहे थे, तब गोदावरी नदी को पार कर इस स्थान पर रुके थे। मंदिर गोदावरी नदी के किनारे ठीक उसी जगह पर बनाया गया है, जहां से राम ने नदी को पार किया था। इस शहर को दक्षिण की अयोध्या के नाम से भी जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि भद्राचलम से कुछ किलोमीटर दूर एक स्थान पर श्रीराम एक पर्णकुटी बनाकर रहे थे। आज इस स्थान को पर्णशाला कहा जाता है। यहीं पर कुछ ऐसे शिलाखंड भी हैं। जिनके बारे में यह विश्वास किया जाता है कि सीता जी ने वनवास के दौरान यहां वस्त्र सुखाए थे। स्थानीय किंवदंती के अनुसार यहीं से रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन रामायण के अनुसार वह स्थान पंचवटी था। ऐसी मान्यता है कि अपने भक्त भद्र को आशीर्वाद देने के लिए खुद भगवान राम स्वर्ग से उतरकर नीचे आए थे। भगवान राम ने भद्र को आश्वासन दिया था कि वे इसी जगह पर अपने श्रद्धालुओं के बीच मौजूद रहेंगे। तभी से इस जगह का नाम भद्राचलम पड़ गया।
मध्यकाल में राम भक्त कंचली गोपन्ना नामक एक तहसीलदार ने यहां स्थित बांस से बने प्राचीन मंदिर के स्थान पर पत्थरों का भव्य मंदिर बनवाया। मंदिर बनवाने के कारण उनके सभी रामदास कहने लगे। कबीर रामदास के आध्यात्मिक गुरु थे और उन्होंने रामदास को ‘रामानंदी संप्रदाय’ की दीक्षा दी थी। यह मंदिर दक्षिण की अयोध्या’ के नाम से प्रसिद्ध है।
कर्नाटक : श्री तिरु नारायण स्वामी मंदिर, मेलकोट
कर्नाटक मेलकोट के मांड्या जिला तहसील पांडवपुरा का एक छोटा-सा कस्बा है। यह कस्बा कावेरी नदी के तट पर बसा है। इस स्थान को तिरुनारायणपुरम भी कहते हैं। यह एक छोटी-सी पहाड़ी है। जिसे यदुगिरी कहते हैं। इस यदुगिरी पहाड़ी पर दो मंदिर स्थित है। एक मंदिर भगवान नृसिंह का जो पहाड़ी के रास्ते में पहले पड़ता है और दूसरा चेलुवा नारायण का मंदिर जो पहाड़ी के सबसे उपर स्थित है। यह स्थान मैसूर से 51 किलोमीटर और बेंगलुरु से 133 किलोमीटर किलोमीटर दूर है।
केरल : रामभद्रस्वामी मंदिर, तिरूविलवामाला, त्रिसूर
रामभद्रस्वामी मंदिर केरल के त्रिसूर शहर का विश्वप्रसिद्ध है। दूर-दूर से लोग इस मंदिर की भव्यता देखने आते हैं। त्रिसूर के 47 किलोमीटर दूर स्थित थिरुविल्वमाला है।
थिरुवंगड श्रीराम स्वामी मंदिर, कण्णूर,
केरल के कण्णूर जिले में स्थित थालास्सेरी में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया एक प्रसिद्ध किला है। यहां से कुछ दूर ही प्रसिद्ध राम मंदिर है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 2,000 वर्ष पूर्व हुआ था। इससे पहले इस स्थान पर परशुराम ने एक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया था। इस स्थान का संबंध अगस्त्य मुनि से भी है। कन्नूर केरल के उत्तरी सिरे में स्थित एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत तटवर्ती नगर है।
त्रिप्रायर श्रीराम मंदिर : त्रिप्रयार शहर
केरल में त्रिप्रायर नदी तट पर अवस्थित है श्रीराम मंदिर। यह कोडुन्गल्लुर नगर का प्रमुख मंदिर है। त्रिप्रयार एक नंबूदरी गांव अर्थात उपग्राम था। त्रिप्रयार मंदिर केरल के दो महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्रों, गुरुवायुर और कोडुंगल्लूर के बीच स्थित है। मंदिर त्रिशूर से लगभग 22 किलोमीटर दूर है। मान्यता यह है कि मंदिर में राम का रूप रावण को मारने के बाद पूरी प्रकृति की रक्षा करने वाला है। एक मान्यता यह भी है कि मंदिर में मूर्ति रूप महाविष्णु का है जो रामायण में राक्षस खर के सामने प्रकट हुए थे और उन्हें मोक्ष दिया था।
ऐसा माना जाता है कि त्रिप्रयार मंदिर की मूर्तियां मछुआरों को समुद्र में मिली थी। मछुआरों को राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की चार मूर्तियां मिलीं। मछुआरों ने वखायिल कैमल को मूर्ति दी। जो अयिरूर कोविलकम के मंत्री थे।
यह मंदिर भगवान श्री राम को समर्पित है। यहां मूर्ति चतुर भुज धारी विष्णु का रूप है। राम दानव पर विजेता के रूप में दिखाया गया है। कहा जाता है कि ब्रह्मा और शिवजी के अंश भी इस मूर्ती में शामिल है जिसके हिसाब से यह विग्रह एक त्रिमूर्ती माना जाता है।
तमिलनाडु : रामास्वामी मंदिर
रामास्वामी मंदिर भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में स्थित है। यह भारत के सबसे खूबसूरत राम मंदिरों में से एक है। इस मंदिर पर शानदार नक्काशी महाकाव्य रामायण के समय में हुई सभी प्रसिद्ध घटनाओं को दर्शाती है। इस मंदिर की आकर्षक संरचना को देखने के लिए इस मंदिर में दर्शन करने के लिए जरूर जाए। रामास्वामी मंदिर को दक्षिण भारत का अयोध्या कहा जाता है। यह एकमात्र मंदिर है जहाँ आप भरत और शत्रुघ्न के साथ राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियाँ देख सकते हैं। मंदिर परिसर में, तीन अन्य मंदिर भी हैं, जिनके नाम अलवर सन्नथी, श्रीनिवास सन्नथी, और गोपालन सन्नथी हैं, जिन्हें आपको अवश्य देखना चाहिए।
