aadhunik raam mandir

प्रधानमंत्री राजीव गान्धी ने वर्ष 1989 में विश्व हिंदू परिषद को शिलान्यास की अनुमति दी। प्रारम्भ में केंद्र और राज्य सरकार विवादित स्थल के बाहर शिलान्यास पर सहमत हुई थीं। 9 नवम्बर, 1989 को विश्व हिंदू परिषद के नेताओं और साधुओं के एक समूह ने विवादित भूमि पर 7 घन फुट गड्ढे खोदकर आधारशिला रखी। इस शिलान्यास समारोह में तत्कालीन गृहमंत्री बूटा सिंह सम्मिलित हुए थे। सिंहद्वार यहां स्थापित किया गया था। बिहार के एक दलित नेता कामेश्वर चौपाल पत्थर बिछाने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे।

6 दिसम्बर, 1992 को विवादित बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ। सन् 2019 अयोध्या विवाद पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय लिया गया था कि विवादित भूमि को सरकार द्वारा गठित एक ट्रस्ट को सौंप दिया जाए।

वास्तुकार

राम मंदिर के लिए मूल डिजाइन सन् 1988 में अहमदाबाद के सोमपुरा परिवार द्वारा तैयार किया गया था। सोमपुर कम-से-कम 15 पीढ़ियों से दुनिया भर के 100 से अधिक मंदिरों के डिजाइन का हिस्सा रहा है। राम मंदिर के लिए एक नया डिजाइन, मूल डिज़ाइन से कुछ बदलावों के साथ, सन् 2020 में सोमपुरवासियों द्वारा तैयार किया गया था। यह मंदिर 235 फीट चौड़ा, 360 फीट लंबा और 161 फीट ऊंचा होगा। मंदिर के मुख्य वास्तुकार चंद्रकांत सोमपुरा है और इस कार्य में उनके वास्तुशास्त्री दो बेटे निखिल सोमपुरा और आशीष सोमपुरा सहयोग कर रहे थे। सोमपुरा परिवार ने राम मंदिर को ‘नागर’ शैली की वास्तुकला के बाद बनाया है, जो भारतीय मंदिर वास्तुकला के प्रकारों में से एक है। मंदिर परिसर में एक प्रार्थना कक्ष होगा। एक व्याख्यान कक्ष रामकथा कुंज, एक वैदिक पाठशाला, एक संत निवास और एक यति निवास अर्थात आगंतुकों के लिए छात्रावास। इसके अतिरिक्त संग्रहालय और अन्य सुविधाओं की पूर्ति हेतु अन्य भवन होंगे। यह मंदिर परिसर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मंदिर होगा।

निर्माण

श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने मार्च, 2020 में राम मंदिर के निर्माण का पहला चरण शुरू किया। कोविड महामारी और लॉकडाउन के कारण निर्माण कार्य कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया था। 25 मार्च, 2020 को भगवान राम की मूर्ति को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में एक अस्थायी स्थान पर ले जाया गया। लार्सन एंड टूब्रो मंदिर परियोजना के ठेकेदार हैं। केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान और मुंबई, गुवाहाटी और मद्रास भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान ने मिट्टी परीक्षण, कंक्रीट और डिजाइन जैसे क्षेत्रों में सहायता कर रहे हैं। ऐसा भी कहा गया है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सरयू की एक धारा की पहचान की, जो मंदिर के नीचे बहती है। राजस्थान से आए 600 हजार क्यूबिक फीट बलुआ पत्थर बंसी पर्वत पत्थरों से निर्माण कार्य पूरा किया जाएगा।

देश भर के अनेक धार्मिक स्थानों यथा मंदिरों, गुरुद्वारों और जैन मंदिरों से मिट्टी अयोध्या लाई गई। इनमें से पाकिस्तान में स्थित शारदा पीठ की मिट्टी भी शामिल है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कैरिबियन द्वीपों के मंदिरों ने इस अवसर को मनाने के लिए एक आभासी सेवा का आयोजन किया। टाइम्स स्क्वायर पर भगवान राम की छवि दिखाने गई। हनुमानगढ़ी के 7 किलोमीटर के दायरे के सभी 7000 मंदिरों में दीए प्रज्ज्वलित कर उत्सव का रूप दिया गया। अयोध्या में मुस्लिम भक्त जो भगवान राम को अपना पूर्वज मानते हैं, वह भी भूमि-पूजा के लिए तत्पर रहे। इस अवसर पर सभी धर्मों के आध्यात्मिक गुरुओं को भी आमंत्रित किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उसी स्थान पर भूमि पूजन किया, जहां राम लल्ला विश्राम करते थे।

राम मंदिर निर्माण सामग्री

राम मंदिर के भूमि पूजन के अवसर पर सभी पवित्र नदियों के जल के साथ-साथ लगभग 8000 पवित्र स्थलों का जल एवं मिट्टी को अयोध्या लाया गया। श्री बद्रीनाथ धाम, श्री रंगनाथस्वामी मंदिर, तमिलनाडु, श्री महाकालेश्वर मंदिर, के अतिरिक्त छत्रपति शिवाजी महाराज के रायगढ़ दुर्ग, चंद्रशेखर आजाद एवं बिरसा मुंडा आदि की जन्मभूमि की मिट्टी भी अयोध्या लाई गई है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण कार्य अपने चरम पर है। इसमें मुख्य बात यह है कि दिल्ली के 11 पवित्र स्थलों की मिट्टी मंदिर की नींव में डाली गई है। दिल्ली के सिद्ध पीठ कालका जी मंदिर, पांडव कालीन दुर्ग के पार्श्व में भैरव मंदिर, गुरुद्वारा शीशगंज, गौरीशंकर मंदिर, चांदनी चौक, श्री दिगंबर जैन मंदिर, चांदनी चौक, हनुमान मंदिर कनॉट प्लेस, प्राचीन काली माता मंदिर बंग्ला साहिब, श्री लक्ष्मीनारायण बिरला मन्दिर, भगवान वाल्मीकि मंदिर, मंदिर मार्ग, और बद्री भगत झंडेवालान मंदिर करोलबाग आदि।

मंदिर में कुल 17,000 ग्रेनाइट पत्थरों का इस्तेमाल किया जाएगा। जिनमें से प्रत्येक का वजन करीब 2 टन है। मंदिर के आधार के निर्माण के लिए 4 लाख घन फीट गुलाबी पत्थर मिर्जापुर से मंगवाए गए हैं। शिखर के लिए राजस्थान के बंसी पहाड़पुर से 1 लाख घन फीट संगमरमर का उपयोग हुआ है। इन पर नक्काशी की गई है। मंदिर के निर्माण में 21 लाख क्यूबिक फीट ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर और संगमरमर का उपयोग किया जा रहा है। गुलाबी और लाल बंसी पहाड़पुर बलुआ पत्थर राजस्थान के भरतपुर जिले की बयाना तहसील में पाया जाता है।

मंदिर की नींव 50 फीट गहरी और पूरी तरह से पत्थर, सीमेंट और दूसरी सामग्री की बनी हुई है। मंदिर निर्माण में स्टील या लोहे का कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया गया है। नींव के लिए पहले एक 50 फीट गहरा, 400 फीट लंबा और 300 फीट चौड़ा गड्ढा खोदा गया जिसे फ्लाइ एश (राख) और छोटे पत्थरों सहित अन्य निर्माण सामग्री और ठोस सीमेंट की परतों से भरा गया है।

कुल 162 स्तंभ तैयार हैं और इन स्तंभों पर केरल और राजस्थान के कारीगर मिलकर 4,500 से अधिक मूर्तियां बना रहे हैं। यह मूर्तियां भक्तों को त्रेता युग की एक झलक देंगी।

राम मंदिर का ढांचा संगमरमर से बना है। दरवाजे महाराष्ट्र से लाई गई सागौन की लकड़ी से बनाए गए हैं। इन दरवाजों पर नक्काशी का काम चल रहा है। मंदिर को न केवल भव्य बनाया जा रहा है बल्कि एक हजार साल तक मंदिर को किसी मरम्मत की जरूरत नहीं पड़ेगी। मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि 6.5 रिक्टर पैमाने जैसी उच्ची तीव्रता वाले भूकंप भी इसे हिला नहीं पाएंगे।

परियोजना निदेशक विनोद कुमार मेहता के अनुसार – “जहां पिलर की मोटाई को बढ़ाया है वहीं दीवारों में भी भारी पत्थरों का इस्तेमाल किया है. इसके साथ ही नींव को मजबूत बनाने के लिए उसमें भी भारी पत्थरों को ही लगाया गया है. कुल मिलाकर इमारत को नीचे से ऊपर तक इतना मजबूत तैयार किया गया है कि बड़े झटके भी इसे किसी तरह की क्षति नहीं पहुंचा सकते हैं।”

मंदिर का फर्श सफेद मकराना मार्बल का होगा। यह पत्थर राजस्थान से मंगवाया गया है। नेपाल के काली गंडकी जलप्रपात से दो बड़े शालिग्राम पत्थर अयोध्या लाए गए हैं। शालिग्राम शिला से निर्मित राम मंदिर में मूर्तियां लगाई जाएंगी। लोक मान्यता है कि यह चट्टानें भगवान विष्णु का ही रूप हैं। नया मंदिर 360 फीट लंबा, 235 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊंचा होगा। मंदिर पुराने शहर की किसी भी इमारत से तीन गुना ऊंचा होगा। राम मंदिर के लिए 2,100 किलो का घंटा एटा से आ रहा है। घंटे की कीमत 21 लाख रुपए होगी और यह घंटा 6 फीट लंबी और 5 फीट चौड़ा होगा। पुस्तक तैयार करते समय तक लगभग 400 किलो चांदी की ईंटें दान में आ चुकी हैं।

पुस्तक तैयार करते समय 21 लाख क्यूबिक फीट ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर और संगमरमर प्रयोग में लाया जा चुका है। राम मंदिर के भूतल पर 80% से अधिक निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। मंदिर इतना मजबूत बनाया जा रहा है कि एक हजार साल तक मंदिर को न तो किसी मरम्मत की जरूरत पड़ेगी और न ही इसमें किसी तरह का कोई वास्तुशिल्प का दोष उत्पन्न होगा। मंदिर का निर्माण कार्य इस तकनीकी से किया जा रहा है कि 6.5 रिक्टर पैमाने जैसी उच्ची तीव्रता वाले भूकंप भी इसे हिला नहीं पाएंगे।

एक ओर जहां खंबों की मोटाई को बढ़ाया है वहीं दीवारों में भी भारी पत्थरों का इस्तेमाल किया है। इसके साथ ही नींव को मजबूत बनाने के लिए उसमें भी भारी पत्थरों को ही लगाया गया है। राम मंदिर का निर्माण राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के पिंक स्टोन पत्थरों से किया जा रहा है। मंदिर के सभी फर्श को सफेद मकराना मार्बल से निर्मित किया गया है।

परकोटा अत्यंत भव्य होगा। मंदिर का परकोटा आयताकार होगा। मंदिर के परिसर के बाहर राजस्थान के ही पत्थरों से 800 मीटर परिधि में लगभग एक किलोमीटर भव्य परकोटे का निर्माण किया जाएगा। जिसके चारों कोनों पर पंचदेव के मंदिर होंगे।

शालिग्राम पत्थर

पौराणिक मान्यता है कि शालिग्राम पत्थर भगवान विष्णु की तरह दिखता है। यह जीवाश्म पत्थर हैं जिन्हें पवित्र माना जाता है। पत्थर एक अम्मोनीट का जीवाश्म है, जो एक प्रकार का मोलस्क है जो लाखों साल पहले रहता था। यह हिमालय की नदियों में पाया जाता है, जिसे हिंदू पौराणिक कथाएं पवित्र कहती हैं।

भगवान राम भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं। जिन्होंने दुनिया को बनाया और सुरक्षित रखा। पौराणिक कथाओं में उल्लेख मिलता है कि भगवान विष्णु के सबसे समर्पित अनुयायियों में से एक, वृंदा ने विष्णु एक श्राप दिया। जिससे विष्णु पत्थर में परिवर्तित हो गए। ऐसी मान्यता है कि वृंदा भगवान शिव की तीसरी आंख से निकलने वाली ज्वाला से पैदा हुई थी। वृंदा शक्तिशाली राक्षस राजा जालंधर की पत्नी थी। वह शक्तिशाली भी क्योंकि ब्रह्मा ने उसे उपहार दिए थे। जालंधर तब तक अपराजेय था जब तक उसकी पत्नी ने उसे धोखा नहीं दिया।

चट्टानें गंडकी नदी के तट पर हैं। नेपाल में काली गंडकी नामक एक जलप्रपात है। यह दामोदर कुंड से शुरू होता है, जो गणेश्वर धाम गंडकी से लगभग 85 किलोमीटर उत्तर में है। यह स्थान समुद्र तल से 6,000 फीट ऊपर है। इन्हें करोड़ों साल पुराना माना जाता है। अयोध्या में मंदिर निर्माण हेतु दो चट्टानें नेपाल के मस्तंग जिले में सालिग्राम या मुक्तिनाथ अर्थात मोक्ष का स्थान के पास गंडकी नदी से आईं हैं। इन पत्थरों की आयु 60 मिलियन वर्ष मानी जाती है। सीता की प्रतिमा शालिग्राम पत्थर से निर्मित की जाएगी।

मंदिर का शिलान्यास

अयोध्या राम मंदिर का पहला शिलान्यास सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद, 5 अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। अयोध्या मंदिर का क्षेत्रफल 54,700 वर्ग फुट है, जो लगभग 2.7 एकड़ है। राम मंदिर परिसर कुल मिलाकर लगभग 70 एकड़ में फैला होगा और एक बार में लगभग दस लाख उपासकों को समायोजित करने में सक्षम होगा। राम जन्मभूमि परिसर को बनाने में 1000 करोड़ रुपए खर्च होंगे। हर महीने जनता से करीब 1 करोड़ रुपए मिलते हैं। जून 2022 तक जनता ने ट्रस्ट को 3,400 करोड़ रुपए दान के रूप में दिए थे। अतिरिक्त धन अयोध्या के निर्माण में लगाया जाएगा।