विश्व साहित्य में राम कथा का उल्लेख मिलना एक गौरवशाली विषय है। इसके कारणों पर हमने पिछले अध्याय में विस्तार से चर्चा की लेकिन दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में शिलाओं पर रामायण के रेखाचित्रों का प्राप्त होना भी कम गौरवशाली नहीं है। दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक स्थलों पर शिलाचित्रों में रामकथा के साक्ष्य मिले हैं। अनेक देशों में शिलाचित्र श्रृंखलाओं में रामचरित का वर्णन हुआ है। उनमें जवा के प्रम्बनान तथा पनातरान, कंपूचित्रा के अंकारेवाट और थाईलैंड के जेतुवन विहार के नाम उल्लेखनीय हैं।
जावा के शैलचित्र : प्रम्वनान पुरावशेष
जावा द्वीप इंडोनेशिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला द्वीप है। प्राचीन काल में इसका नाम यव द्वीप था और इसका वर्णन भारत के ग्रन्थों में बहुत आता है। यहां लगभग 2000 वर्ष तक हिन्दू सभ्यता का प्रभुत्व रहा। आज भी यहां हिन्दुओं की बस्तियां अनेक स्थानों पर पाई जाती हैं। विशेषकर पूर्व जावा में मजापहित साम्राज्य के वंशज टेंगर लोग रहते हैं जो अब भी हिन्दू हैं।
इंडोनेशिया के पुरातत्व विभाग ने सन् 1919 ईस्वी में प्रम्बनान मंदिर परिसर स्थित विशाल शिवालय के पुनर्निमाण का कार्य पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति से आरंभ किया। इस कार्य में अनेक यूरोपीय विद्वानों ने सक्रिय रुप से सहयोग किया। सन् 1953 ईस्वी में यह कार्य पूर्ण हुआ। इसे वास्तव में पुरातत्त्व अभियंत्रण का चमत्कार ही कहा जा सकता है। इसके अंदर रामायण शिलाचित्रों को यथास्थान स्थापित कर दिया गया है। जर्मन विद्वान विलेन स्टूरहाइम ने इन रामायण शिलाचित्रों का अध्ययन किया है।

जावा का प्रम्वनान पुरावशेष चंडी सेवू विख्यात है। इसे चंड़ी लाराजोंगरांग भी कहा जाता है। इस परिसर में 235 मंदिर के भग्नावशेष पाए गए हैं। इसके वर्गाकार आंगन में तीन मंदिर हैं। इसके बीच में शिव मंदिर है। शिव मंदिर के उत्तर में ब्रह्मा तथा दक्षिण में विष्णु मंदिर हैं। शिव और ब्रह्मा मंदिर में राम कथा और विष्णु मंदिर में कृष्ण लीला के शिलाचित्र अंकित हैं। इतिहासकारों के अनुसार चंडी लाराजोंगरंग के मंदिरों का निर्माण दक्ष नामक राजकुमार ने नौवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में करवाया था। प्रम्बनान के शिव मंदिर में रामकथा के 42 और ब्रह्मा मंदिर में 30 शिलाचित्र हैं। 72 शिलाचित्रों में यहां संपूर्ण राम कथा रुपायित हुई है। प्रम्बनान के शिलाचित्रों में उत्कीर्ण अनेक प्रसंग राम कथा से मेल नहीं खाते हैं। इनमें सीता द्वारा जटायु को अंगूठी देना, सेतु निर्माण के समय मछलियों द्वारा पत्थरों को निगलना, रावण के दरबार में अंगद का कान काटा जाना आदि प्रसंग वाल्मीकि रामायण में नहीं हैं।

प्रम्बनान के मंदिरों को सन् 1549 ईस्वी के आस-पास मेरापी ज्वालामुखी के विस्फोट में काफी क्षति पहुँची। वह सदियों तक ज्वालामुखी के लावा के नीचे दबे रहे। योग्यकार्टा के पुरातत्व विभाग द्वारा सन् 1885 ईस्वी में उसकी खुदाई शुरु हुई। लगभग तीन सौ वर्ष पूर्व यहां के निवासी मुसलमान बने। अपने धर्म की चिंता किए बिना यहां के स्थानीय निवासी पुरातत्व विभाग द्वारा खोजे गए मंदिर में धूप-दीप लेकर पूजा अर्चना करने दौड़ पड़े। इस घटना का चश्मदीद गवाह फ्रांसीसी यात्री जूल ने हाजियों को भी हिंदू मंदिर में पूजा करते देखा था।

प्रम्बनान के शिलाचित्रों के चार सौ वर्ष बाद पूर्वी जावा में पनातरान के शिला शिल्प में पुन: राम कथा की अभिव्यक्ति हुई है। यह चंडी पनातरान ब्लीटार जिला में केतुल पर्वत के पास दक्षिण-पश्चिम की तलहटी में स्थित है। यहां वृत्ताकार दीवार से घिरा एक शिव मंदिर है। इस मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण कार्य मजपहित वंश के राजकुमार हयमबुरुक की माता जयविष्णुवर्धनी के राजत्व काल में 1347 ईस्वी में पूरा हुआ था। किंतु अनेक इतिहासकारों और विद्वानों का मत है कि इसका आरंभ किसी पूर्ववर्ती सम्राट ने ही किया था।
चंडी पनातरान में राम कथा के 106 शिलाचित्र हैं। इनमें मुख्य रूप से हनुमान के पराक्रम को प्रदर्शित किया गया है। ऐसा माना जाता है कि प्रम्बनान के शिलाचित्र हिंदू-जावा शैली में उत्कीर्ण है। जबकि पनातरान का शिलाशिल्प पूरी तरह जावा शैली है। इनमें चित्रित वस्राभूषण तथा अस्त्र-शस्त्र के साथ पात्रों की आकृतियों पर भी जावा शैली का प्रभाव है।
कंपूचिया के शैलचित्र
कंपूचिया स्थित अंकोरवाट मंदिर का निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (1112-53 ईस्वी) के राजत्व काल में हुआ था। इस मंदिर के गलियारे में तत्कालीन सम्राट के बल-वैमन का साथ स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश तथा रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र हैं। यहां के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की श्रृंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गयी आराधना से आरंभ होती है।

उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। बालकांड की इन दो प्रमुख घटनाओं की प्रस्तुति के बाद विराध एवं कबंध वध का चित्रण हुआ है। अगले शिलाचित्र में राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके उपरांत सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य है। फिर, वालि और सुग्रीव के द्वेंद्व युद्ध का चित्रण हुआ है।

परवर्ती शिलाचित्रों में अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य हैं। अंकोरवाट के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा यद्यपि अत्यधिक विरल और संक्षिप्त है, तथापि यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी प्रस्तुति आदिकाव्य की कथा के अनुरुप हुई है।
थाईलैंड के शैलचित्र
थाईलैंड की हिंदू मूर्तियाँ पूरे देश में देखी जा सकती हैं। कुछ उल्लेखनीय मूर्तियाँ हैं। जो लोकप्रिय आकर्षण हैं। सुवर्णभूमि हवाई अड्डे और बैंकॉक के ग्रैंड पैलेस में हिंदू भगवानों की आकर्षक मूर्तियाँ हैं। जिन्हें याक के नाम से भी जाना जाता है।

बैंकॉक में इरावन श्राइन में ब्रह्मा की एक छोटी, सुनहरी मूर्ति है। राम कथा के शिलाचित्रों में थाईलैंड का भी महत्वपूर्ण स्थान है। थाईलैंड की राजधानी बैंकाक के राजभवन परिसर के दक्षिणी किनारे पर वाट-पो या जेतुवन विहार है। इसके दीक्षा कक्ष में संगमरमर के 152 शिलापटों पर राम कथा के चित्र उत्तीर्ण हैं।

जे एम कैडेट की पुस्तक ‘रामकियेन’ में उनके चित्र हैं। इस ग्रंथ में उन शिलाचित्रों को नौ खंडों में विभाजित कर उनका विश्लेषण किया गया है – 1.सीता-हरण, 2.हनुमान की लंका यात्रा, 3.लंका दहन, 4.विभीषण निष्कासन, 5.छद्म सीता प्रकरण, 6.सेतु निर्माण, 7.लंका सर्वेक्षण, 8.कुंभकर्ण तथा इंद्रजीत वध, और 9.अंतिम युद्ध।

दक्षिण-पूर्व एशिया के रामायण शिलाचित्रों का चलन नौंवी शताब्दी से प्रारंभ होता है जबकि भारत में वैष्णव और शैव विचारों की प्रवृत्ति मध्यकाल में विकसित होती दृष्टिगोचर होती है।
भारत में शैलचित्र
जिले के गोटीटोला-चारामा-कांकेर मार्ग पर ग्राम लखनपुरी से आठ किलोमीटर दूर गोटीटोला के मधुवन पारा के नजदीक सीताराम गुड़ा नामक स्थान पर कई पौराणिक शैल चित्र मिले हैं, जिनमें राम कथा के दृश्य विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये शैल चित्र सफेद रंग से अंकित किए गए हैं।
यहां सीताराम गुढ़ा पर पौराणिक शैलाश्रय प्राप्त हुआ है। जिसके चित्रों में रामकथा से सम्बंधित चित्रों का भी अंकन है। इसके आलावा और अन्य जगह जहाँ शैल चित्र प्राप्त हुए है। जो की क्लुगांव, कान्हागांव, इसके अतिरिक्त बस्तर जिले में केशकाल लिंगदारीहा सरगुजा जिले में सितलेखनी, ओढ़गी कुदरगढ़ आदि अनेक स्थानों पर शैलाश्रय शैलचित्र प्राप्त हुए है।
