Life Lesson: संसारी और संन्यासी में यही फर्क है कि जो तन और धन की सुरक्षा में लगा है वह संसारी और जो मन और जीवन की सुरक्षा में लगा है वह संन्यासी। एक पत्नी अपने पति से पूछती है: अगर मैं मर गई तो? पति ने पत्नी के मुख पर हाथ रख दिया और […]
Author Archives: मुनिश्री तरुणसागरजी
बड़ी समस्याओं के छोटे-छोटे कारण: Life Lessons
Life Lessons: जब आप रमजान लिखते हैं तो राम से शुरुआत करते हैं और जब आप दिवाली लिखते हैं तो अली से समाप्त करते हैं। यों रमजान में बसेराम और दिवाली में छिपे अली हमें मुहब्बत से रहने का पैगाम देते हैं। Also read: बच्चों के लिए दिवाली गेम्स और एक्टिविटीज धर्म के दुश्मन नास्तिक […]
हर हाल में मस्त रहिए: Life Lesson Tips
Life Lesson Tips: नमक से कोई व्यंजन नहीं बनता लेकिन बिना नमक के भी कोई व्यंजन नहीं बनता। सब्जी और दाल के लिए भी नमक चाहिए। नमक न हो तो भोजन बेस्वाद है। जीवन में थोड़ा दुख न हो तो जीवन भी बेस्वाद है। जिंदा रहने के लिए भोजन जरूरी है। भोजन से भी ज्यादा […]
चिंता की चिता जला दो: Muni shri Thoughts
Muni shri : एक छोटा-सा वक्तव्य है। वक्तव्य भले ही छोटा सा है लेकिन उसमें जीवनभर की सीख है। वक्तव्य है ‘जो चला गया उसके लिए मत सोचो। जो नहीं मिला उसकी कामना मत करो और जो मिल गया उसे अपना मत मानो।Ó दुख अपनापन में है। अपना मानने में है। एक जैनाचार्य हुए आचार्य […]
विचारों को शुद्ध बनाओ
Tarun Sagar : जीवन को सहजता से जिओ। सुख-दुख जो भी मिले उसे स्वीकार करते चलो। क्या पता दुख ही वह द्वार हो, सुख जिसके पार हो। किसी दूसरे के सिर ठीकरा मत फोड़ो। वह तो निमित्त मात्र है, उपादान तो तुम्हारा अपना है सोचो ऐसा होना था, सो हो गया। हम श्रेष्ठï हैं क्योंकि […]
अहंकार त्यागो – मुनिश्री तरुणसागरजी
अकड़ व्यर्थ है। अहंकार का पीपल भक्त की इमारत को गिरा देता है। अहंकार का पौधा अगर जीवन में उग आये तो उसे तुरंत उखाड़ फेंको वरना कल वह तुम्हें उखाड़ फेंकेगा। सम्राट अशोक अपने रथ पर सवार होकर कहीं जा रहे थे। रास्ते में संत को आते देखा तो झट से रथ से उतरे […]
संतों से सार्थक प्रश्न पूछो – मुनिश्री तरुणसागरजी
दुनिया में जितने भी धर्मग्रन्थ हैं, उनका जन्म प्रश्नों से हुआ है। बस शर्त केवल इतनी है कि वे प्रश्न जिन्दा होने चाहिए। जीवंत होने चाहिए। ‘किं नु खलु आत्मने हितं।Ó शिष्य ने गुरु से पूछा: प्रभो! आत्मा का हित किसमें हैं? इसके लिए उत्तर में गुरु ने जो कहा, वह एक ग्रन्थ बन गया।
धर्म उधार नहीं, उदार है – मुनिश्री तरुणसागरजी
आपने अपने मकान को एयरकंडीशनर बना लिया। दुकान को एयकंडीशनर बना लिया। अपने दिमाग को भी एयरकंडीशनर बना लीजिए। अगर आपने अपने दिमाग को एयरकंडीशनर बना लिया तो सचमुच में जीवन ठंडा-ठंडा, कूल-कूल हो जायेगा।
सुख खोजने की कला – मुनिश्री तरुणसागरजी
मानव तन पाकर कुछ ऐसा कर जाओ कि तुम्हारा मनुष्य होना सार्थक हो जाये। खाना-पीना और सोना क्या यही जीवन है? यह जीवन नहीं है। यह तो सभी करते हैं। जीवन भोजन नहीं, भजन है। जीवन पदार्थ नहीं, परमार्थ है। जीवन स्वप्न नहीं, यथार्थ है।
