श्री राम नवमी पर्व हिंदुओं का एक मुख्य त्योहार है। इस दिन भगवान श्रीराम का जन्मदिवस मनाया जाता है। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की पहली तिथि को प्रति वर्ष नए विक्रम संवत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को यह पर्व राम जन्मोत्सव ‘रामनवमी के नाम से मनाया जाता है। त्रेता युग में जन्म लेने वाले भगवान श्रीराम आज भी लोगों के मन-मस्तिष्क में उसी तरह श्रद्धा के पात्र हैं, जैसे शायद त्रेता युग में रहे होंगे। इसका कारण उनकी कथा-गाथा है, जो गोस्वामी तुलसीदास कृत ‘श्री रामचरित मानस में एवं महर्षि वाल्मीकि कृत ‘रामायण में लिखित है। आज भी लोग बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ मनोकामना पूर्ति के लिए या किन्हीं विशेष अवसरों पर इसका पाठ अपने घरों में रखते हैं और रामायण पाठ का अनुष्ठान करते हैं। इस ग्रंथ में छिपा हुआ अध्यात्म व अद्भुत ऊर्जा से अब भी मानव समुदाय लाभान्वित हो रहा है। इससे मिलने वाली प्रेरणाएं अगर मनुष्य अपने जीवन में अपना सके तो अपने संपूर्ण जीवन का कायाकल्प कर सकता है। श्री रामनवमी पर्व के माध्यम से श्रीराम के जीवन चरित्र व प्रेरणाओं को अपने जीवन में उतारने व धारण करने की सीख मिलती है।श्री रामचरित मानस में दिए हुए लीला-प्रसंगों की आदर्श प्रेरणाएं अब भी भटकी हुई मानव जाति को एक सही दिशा देने में पूर्ण सक्षम हैं। हमारे देश में राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियां रही हैं, जिनका स्थायी असर समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से लगातार चला आ रहा है। श्रीराम का संपूर्ण जीवन चरित्र अनुकरण करने योग्य है। श्रीरामचरित मानस में उनके चरित्र के अनेक रूप हमें देखने को मिलते हैं और उनका हर रूप मुख्य है। अपने संपूर्ण जीवन का प्रबंध उन्होंने इतनी कुशलता से किया है, जो हमें इस बात की प्रेरणा देता है कि एक आदर्श जीवन कैसे जिया जाए। उनके चरित्र से हम अपने गुरुजनों और माता-पिता का सम्मान कर उनकी आज्ञा का पालन करना, भाइयों को सच्चा प्रेम करना और कष्ट में अपने मित्रों की नि:स्सवार्थ सहायता करने का पाठ सीख सकते हैं। वे ऐसे आदर्श गुरु हैं जो अपनी प्रतिज्ञा और वचन पालन करने के लिए अपने प्राणों तक की परवाह नहीं करते, जो शरण में आने वाले को शरण देकर उसकी रक्षा का भार अपने ऊपर ले लेते हैं। वे सबसे प्रेम करते हैं, विनम्र स्वभाव के हैं, दूरदर्शी और बहुत संवेदनशील हैं। वे सत्य और धर्म पर दृढ़ रहते हुए नीति का पालन करने वाले हैं। श्री राम जी का जीवन चरित्र विविध वर्णी है, जिसको समझने पर मानस-पटल के अनेक आयाम खुलते चले जाते हैं। उन्हीं कुछ विशेष चरित्रों का यहां पर उल्लेख किया जा रहा है, जो सभी के लिए अनुकरणीय है। भगवान श्रीराम गुरु आज्ञा को सर्वोच्च मानने वाले हैं। वे रात्रि में गुरु के सोने का समय हो जाने पर उनके चरण दबाते हैं। उनके बार-बार अनुरोध करने के बाद वे शयन के लिए जाते हैं और उनके जागने से पहले जाग जाते हैं।

  • मुनिबर सयन कीन्हि तब जाई। लगे चरन चापन दोउ भाई॥
  • जिन्ह के चरन सरोरुह लागी। करत विविध जप जोग बिरागी॥
  • तेइ दोहु बंधु प्रेम जनु जीते। गुर पद कमल पलोटत प्रीते॥
  • बार-बार मुनि आग्या दीन्ही। रघुबर जाइ सयन तब कीन्ही॥
  • (मानस, बाल कांड-226/3-6)
  • उठे लखनु निसि बिगत सुनि अरून सिखा धुनिकान।

गुरते पहिले हिं जगत पति जागे रामु सुजान॥

(मानस बाल कांड-226)

सीता-स्वयंवर में जब सब धनुष उठाने का एक-एक करके प्रयत्न कर रहे थे, तब श्रीराम चुपचाप बैठे ही रहें। जब गुरु विश्वामित्र की आज्ञा हुई, तभी वे खड़े हुए और उन्हें प्रणाम करके धनुष उठाया।

सुनि गुरु वचन चरन सिरुनावा। हरषु विषादु न कुछ उर आवा॥ठाढ़े भए उठि सहज सुभाएं। ठवनिजुबा मृगराजू लजाएं॥

(मानस बालकांड- 254/7-8)

श्रीराम भगवान माता-पिता की आज्ञा का कर्तव्य की तरह पालन करने वाले थे। उनके संबंध में बालकांड में कहा गया है-

प्रात:काल उठि कै रघुनाथा।मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥

(मानस बालकांड-205/7)

माता कैकेई से जब श्रीराम अपने चौदह वर्ष के वन गमन की बात और भरत के राज्याभिषेक के दो वचन सुनते हैं, जिन्हें माता कैकेई ने वरदान स्वरूप राजा दशरथ से मांगा था, तो वे मुस्कुरा कर कोमल वचन कहते हैं।

मुनिगन मिलनु बिसेषि बन सहबि भांति हित मोरातेहि महं पितु आयसु बहुरि संमत जननी तोरा॥

(मानस अयोध्या कांड-41)

अर्थात्- वन में विशेष रूप से मुनियों से मिलाप होगा, जिसमें मेरा सभी प्रकार से कल्याण है। उसमें भी फिर पिताजी की आज्ञा और हे जननी! तुम्हारी सम्मति है। जब श्रीराम माता कैकेई से अपने चौदह वर्ष के वनवास और भरत के राज्याभिषेक की बात सुनते हैं तो भरत के संदर्भ में कहते हैं।

भरतु प्रानप्रिय पावहिं राजू।बिधि सब बिधि मोहि सनमुख आजू॥

(मानस अयोध्या कांड-42/1)

अर्थात्- प्राण प्रिय भरत राज्य पावेंगे-(इन सभी बातों को देखकर यह ज्ञात होता है कि) अब विधाता सब प्रकार से मेरे अनुरूप है। वनवास प्रवास के दौरान जब भरत रामजी से मिलने चित्रकूट आते हैं और लक्ष्मण जी को उनके बारे में गलतफहमी हो जाती है, तब रामजी लक्ष्मण से भरत के गुणों की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि ‘मच्छर की फूंक से चाहे सुमेरू पर्वत उड़ जाए लेकिन हे भाई! भरत को राजमद कभी नहीं हो सकता। हे लक्ष्मण मैं तुम्हारी शपथ और पिताजी की सौगंध खाकर कहता हूं कि भरत के समान पवित्र और उत्तम भाई संसार में नहीं है।

श्रीराम सबको यथा योग्य सम्मान देने वाले और शरणागत की सब प्रकार से रक्षा करने वाले हैं। वे सबको प्रेम करने वाले तथा प्रेम के वश में रहने वाले हैं। वे अपनी प्रतिज्ञा ऌपर अमल पालन करने वाले और अपने दिए गए वचन का पालन करने वाले हैं। श्रीराम दूसरों को उनके कार्य के लिए श्रेय देकर उनका उपकार मानते थे। वे धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने वाले अधिक संवेदनशील और भावुक भी थे। वे विनम्रता की प्रतिमूॢत और अहंकार शून्य व्यक्ति थे। वे दूसरों के अच्छे गुणों को धारण करने वाले, दूसरों को प्रोत्साहन देने वाले और सच्चे समाजवादी, हंसमुख और विनोदशील प्रवृत्ति के थे। वे सबकी सलाह से कार्य करने वाले कूटनीतिज्ञ, दूरदर्शी, परम विज्ञानी, दानवीर थे। चित्रकूट में राम के संबंध में उनके कुलगुरु वशिष्ठ जी कहते हैं-

नीति प्रीति परमारथु स्वारथु।को उन राम सम जान जथा रथु॥

नीति, प्रीति, परमार्थ और स्वार्थ कोई भी राम के सिवा यथा विधि नहीं जानता है। तुलसी दास जी कहते हैं कि राम शब्द सुख-शांति के धाम का बोधक है। राम की प्राप्ति से ही सच्चे सुख और शांति की प्राप्ति होती है। जो अपनी इच्छा को प्रभु श्रीराम की इच्छा के समाहित कर लेता है, उसे लोक परलोक के सुख प्राप्त हो जाते हैं और वह असीम राम यानी प्रभु में समा जाता है। इस तरह श्रीराम का संपूर्ण जीवन समस्त मानव जाति के लिए एक आदर्श है। सभी को उनके जीवन से मर्यादा, नीति पालन, प्रतिज्ञा पालन व जीवन जीने की कला की सीख मिलती है। अत: इस श्री रामनवमी पर्व पर उनके जीवन प्रसंगों का स्मरण करते हुए उनके सहगुणों को अपने जीवन में धारण करने का संकल्प लेना चाहिए, ताकि हम सभी अपने जीवन को सन्मार्ग की दिशा में ले जा सकें।

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