वास्‍तु
 में श्रीयंत्र को बहुत ही शुभ माना जाता है। मान्‍यता है कि मां लक्ष्‍मी को श्रीयंत्र अतिप्रिय होता है। श्रीयंत्र को घर में स्‍थापित करने से समाज में आपका वर्चस्‍व बढ़ता है और आपके घर में धन और संपन्‍नता आती है। आजकल वास्‍तु के नियमों को मानने वाले इसे गुडलक चार्म के तौर पर भी देखते हैं। हिंदू तंत्र शास्त्रों में मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के अनेक उपाय और साधन बताए गए हैं। उनमें से सबसे सटीक, चमत्कारिक और तुरंत लाभ पहुंचाने वाला साधन है पारद। पारद को साक्षात भगवान शिव का बीज माना गया है। तंत्र ग्रंथों में श्रीयंत्र को मां लक्ष्मी का देह स्वरूप माना गया है और यह शिव बीज से बना होना अत्यंत ही लाभदायक होता है। अपने घर, प्रतिष्ठान, दुकान आदि में पारद का श्रीयंत्र रखने से वहां लक्ष्मी का स्थायी निवास हो जाता है। वहां कभी धन की कमी नहीं होती। 

 

श्रीयंत्र का पौराणिक महत्व

कहते हैं कि जहां श्रीयंत्र की स्थापना होती है, वहां मां लक्ष्मी आने के लिए विवश हो जाती हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार लक्ष्मी मां नाराज होकर बैकुंठ चली गईं। उनके बिना धरती पर त्राहि.त्राहि मच गई, तब देवगुरु बृहस्पति ने लक्ष्मीजी को आकर्षित करने के लिए श्रीयंत्र की स्थापना और पूजन का उपाय सुझाया। फिर मां लक्ष्मी को धरती पर आने के लिए विवश होना पड़ा।

 

श्रीयंत्र क्या है

किसी विशेष मंत्र या शक्ति को अगर रूप में ढाला जाए तो यंत्र का निर्माण होता है।

यंत्र में आकृति, रेखाओं और बिंदुओं का विशेष प्रयोग होता है।

एक भी रेखा, आकृति या बिंदु के गलत होने से अर्थ का अनर्थ हो सकता है।

यंत्र दो तरह के होते हैं, पहला रेखाओं और आकृतियों वाले और दूसरा अंकों वाले यंत्र।

अंकों वाले यंत्र की तुलना में आकृति वाले यन्त्र ज्यादा ताकतवर होते हैं।

 

श्रीयंत्र की सिद्धि

श्रीयंत्र की सिद्धि भगवान शंकराचार्य ने की थी।

दुनिया में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और ताकतवर यंत्र श्रीयंत्र माना जाता है।

हालांकि श्रीयंत्र को धन का प्रतीक मानते हैं लेकिन ये शक्ति और अपूर्व सिद्धि का भी प्रतीक है।

श्रीयंत्र के प्रयोग से सम्पन्नता, समृद्धि और एकाग्रता की प्राप्ति होती है।

श्रीयंत्र के सही प्रयोग से हर तरह की दरिद्रता दूर की जा सकती है।

श्रीयंत्र कई तरह का होता है। समतल, उभरा हुआ और पिरामिड की तरह का भी होता है।

हर तरह का श्रीयंत्र अलग अलग तरीके से लाभकारी होता है।

 

श्रीयंत्र के प्रयोग में बरतें ये सावधानियां 

श्रीयंत्र की आकृति दो प्रकार की होती है उर्ध्वमुखी और अधोमुखी। उर्ध्वमुखी का अर्थ है ऊपर की ओर और अधोमुखी का अर्थ है नीचे की ओर। भगवान शंकराचार्य ने उर्ध्वमुखी प्रतीक को सबसे ज्यादा मान्यता दी है।

श्रीयंत्र की स्थापना करने के पहले देख लें कि यंत्र बिल्कुल ठीक बना हो। दरअसल, गलत यंत्र की स्थापना करके आप कई तरह की मुश्किलों से घिर सकते हैं।

श्रीयंत्र का चित्र आप काम करने के स्थान पर, पढ़ने के स्थान पर और पूजा के स्थान पर लगा सकते हैं।

जहां भी श्रीयंत्र की स्थापना करें, वहां सात्विकता रखें और नियमित मंत्र जाप करें

 

श्री यंत्र के लाभ 

रामचरितमानस में इस बात का उल्लेख किया गया है कि देवी लक्ष्मी का श्री यंत्र महान और सर्वाधिक फल प्रदान करने वाला है। श्री यंत्र की यदि राज विधि और विधान के साथ पूजा की जाए तो इससे आर्थिक संकट दूर होता है। 

ऐसा भी कहा गया है कि मंदिर और तिजोरी में यदि आप श्री यंत्र रखती हैं तो उस पर प्रतिदिन कमलगट्टे की माला चढ़ाने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं। 

अगर आपको देवी लक्ष्मी को आकर्षित करना है तो आप केवल श्री यंत्र के सहारे ही उन्हें आकर्षित और खुश कर सकती हैं।  

अगर आपके घर में कोई बहुत समय से बीमार है तो आपको श्री यंत्र की पूजा करनी चाहिए। इससे रोग का नाश होगा।

 

श्रीयंत्र का निर्माण

इस महाचक्र को शास्त्रोक्त तरीके से गणितीय विधाओं का समावेश कर बनाया गया है। श्रीयंत्र के मध्य में बिंदु है। बाहर भूपुऱ, भूपुर के चारों तरफ चार द्वार और कुल दस प्रकार के अवयय हैं, जो निम्नानुसार हैं. बिंदु, त्रिकोण, अष्टकोण, अंतर्दशार, वहिर्दशार, चतुर्दशार, अष्टदल कमल, षोडषदल कमल, तीन वृत्त, तीन भूपुर। इसमें चार उर्ध्व मुख त्रिकोण हैं, जिसे श्री कंठ या शिव त्रिकोण कहते हैं। पांच अधोमुख त्रिकोण होते हैं, जिन्हें शिव युवती या शक्ति त्रिकोण कहते हैं।

नवचक्रों से बने इस यंत्र में चार शिव चक्र, पांच शक्ति चक्र होते हैं। इस प्रकार इस यंत्र में 43 त्रिकोणए 28 मर्म स्थानए 24 संधियां बनती हैं। तीन रेखा के मिलन स्थल को मर्म और दो रेखाओं के मिलन स्थल को संधि कहा जाता है। इसके चारों ओर जो 43 त्रिकोण बनते हैं वे योग मार्ग के अनुसार यम 10ए नियम 10ए आसन 8ए प्रत्याहार 5ए धारणा 5ए प्राणायाम 3ए ध्यान 2 के स्वरूप हैं।

 

दुर्गा सप्तशती में कहा गया है

ष्आराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गदाष्

आराधना किए जाने पर आदिशक्ति मनुष्यों को सुखए भोगए स्वर्गए अपवर्ग देने वाली होती है। उपासना सिद्ध होने पर सभी प्रकार की श्श्रीश् अर्थात चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति हो सकती है। इसलिए इस यंत्र को श्श्रीयंत्रश् कहा जाता हैं। इस यंत्र की अधिष्ठात्री देवी त्रिपुर सुंदरी हैं। इसे शास्त्रों में विद्याए महाविद्याए परम विद्या के नाम से जाना जाता है।

 

 

कैसे करें स्थापना

वैसे तो पारा स्वयंसिद्ध होता है। इसे अष्टसंस्कार करके ही मूर्ति के आकार में ढाला जाता है] लेकिन फिर भी इसकी शुद्धता आवश्यक है।

पारद श्रीयंत्र को स्थापित करने का सबसे शुभ दिन दीपावली होता है। इसके अलावा इसे होलीए नवरात्रि, शिवरात्रि, ग्रहण काल में भी स्थापित किया जा सकता है। ये दिन दूर हों तो किसी भी शुक्ल पक्ष के शुक्रवार के दिन स्थापित किया जा सकता है।

 

 

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