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प्रेम सृष्टि की वो अनमोल कृति है जिससे हर सुख का उदय होता है प्रेम वो अद्वितीय थाती है जो जीवन को सार्थक रूप प्रदान करती है। एक आदर्श प्रस्तुत करने का सौभाग्य देती है। 

शिव और गौरी 

शिव गौरी यानी अर्धनारीश्वर, जिन्होंने यह सिद्ध किया की पत्नी-पति दोनों एक आत्मा दो शरीर होते हैं। शिव और गौरी का संबंध जन्म-जन्मान्तर का है क्योंकि गौरी ही शिव की पूर्व पत्नी सती थी। सती दक्ष प्रजापति की पुत्री थी। शिव के साथ सती का विवाह करना दक्ष को पसंद नहीं था। सती ने पिता के विरुद्ध होकर शिव से विवाह किया। एक बार राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया इसमें सभी देवी-देवताओं के लिए आसन रखे गए परन्तु भगवान शिव को ना तो बुलाया और ना ही आसन रखा गया। सती पिता के बिना निमंत्रण के बाद भी यज्ञ में जा पहुंची। वहां जाकर उन्होंने पूरे यज्ञ स्थली का अवलोकन किया परन्तु कहीं भी उन्हें अपने पति शिव के लिए आसीन नहीं मिला। इस स्थिति को देख सती क्रोध से कांप उठीं और पति के अपमान का बदला लेने के लिए पिता के आयोजन को विफल करने हेतु विशाल दहकते हवन कुंड में कूद गईं। जब शिव को ये पता चला तो वह यक्षस्थली पर आये और उन्होंने राजा दक्ष का सर धड़ से अलग कर दिया, और सती के अधजले शरीर को कंधे पर डालकर घूमते रहे। जहां-जहां सती के जले अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ बन गए। यद्यपि सती का शरीर जल कर खत्म हो चुका था परन्तु उनकी आत्मा में अभी भी शिव का ही वास था।

शिव की उनके प्रति आसक्ति इतनी प्रबल थी कि उसी प्रेम के बल पर सती ने हिमालय राज की पुत्री गौरी के रूप में जन्म लिया। गौरी बचपन से ही शिव की भक्त थी। इस भक्ति की शक्ति ने ही शिव-गौरी का मिलन कराया।

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विष्णु और लक्ष्मी

भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी एक दूसरे के पूरक माने जाते हैं। कहते हैं इन दोनों की पूजा भी एक साथ ही फलदायी होती है। अगर माता लक्ष्मी की पूजा अकेले की जाये तो वो भी निष्फल रहती है क्योंकि माता लक्ष्मी तभी भक्त पर प्रसन्न होती हैं जबकी उनसे पहले उनके पति की अर्थात् विष्णु जी की आराधना की जाये। लक्ष्मी जी समुद्र मंथन में से निकली चौदह रत्नों में से एक हैं जिनका विवाह विष्णु जी के साथ सम्पन्न हुआ है। क्षीर सागर में श्री हरि विष्णु के चरण दबाती लक्ष्मी। पति-पत्नी के आदर्श रूप को प्रकट करती प्रतीत होती है। विष्णु जी के प्रत्येक अवतार में लक्ष्मी जी उनकी सहभागिनी बनकर ही अवतार लेती हैं।

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राम और सीता

मर्यादा पुरषोत्तम राम व सीता का प्रेम, त्याग और समर्पण से भरा है। ऋषि विश्वामित्र जब राम, लक्ष्मण को लेकर मिथिला पहुंचे तो वहां सुबह गुरु विश्वामित्र की पूजा के लिए राम वाटिका में पुष्प लेने पहुंचे, उसी वाटिका में सीता भी माता पार्वती की पूजा के लिए पुष्प चुनने आयी हुई थीं, तभी दोनों ने एक दूसरे को देखा और दोनों के मन में प्रेम का अंकुर फूटा। सीता जी ने माता गौरी से श्री राम को पति रूप में मांगा। और स्वयंवर में श्रीराम ने धनुष तोड़कर सीता का वरण किया था। राम सीता ने 14 वर्ष के वनवास को हंसते-हंसते एक साथ मिलकर पूरा किया। जिस तथ्य से इस बात को बल मिलता है कि सुख, दुख, धूप छांव आनंद, संकट जीवन में जो भी आये उसे पति-पत्नी को एक साथ मिलकर ही सहन करना चाहिए क्योंकि पति-पत्नी का सुख-दुख सांझा होता है।

लक्ष्मण और उर्मिला

लक्ष्मण उर्मिला का प्रेम अपने आप में एक अनूठी मिसाल है यद्यपि इसे इतिहास ने इतना महिमा मंडित नहीं किया है जितना की किया जाना चाहिए था। एक ओर जहां लक्ष्मण ने मात् प्रेम को निभाते हुए एक तपस्वी की भांति चौदह वर्ष वन में व्यतीत किये वहीं दूसरी तरफ लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला ने भी एक तपस्वनी की भांति 14 बरस विरह वेदना को सहते हुए पति का इंतजार किया।

मेघनाथ और सुलोचना

रावण पुत्र मेघनाथ जिसे इन्द्रजीत भी कहा जाता है की पत्नी थी नागलोक की कन्या सुलोचना। दोनों ने एक दूसरे के गुणों की ख्याति को सुनकर ही विवाह किया था। मेघनाथ की भांति सुलोचना भी बहुत बहादुर थी। वह युद्ध में भी पति को अपना सहयोग देती थी।

दोनों का प्रेम इतना ज्यादा प्रगाढ़ था कि पति की मृत्यु के बाद सुलोचना भी मेघनाथ की चिता के साथ जलकर सती हो गयी।

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कामदेव और रति

कामदेव रति का प्रेम भी जन्म जन्मान्तर का है। भगवान शिव की तपस्या भंग करने के कारण जब भगवान शिव ने कामदेव को जिंदा भस्म कर दिया तो रति ने पति के प्राणों को शिव से पुन: वापस देने की प्रार्थना की परन्तु जब क्रोधित शिव ने रति की बात नहीं मानी तो रति ने भगवान शिव को प्रसन्न कर अपने पति को जीवित कराने के लिए कठोर जप तप वर्षों तक किया तब भगवान शिव ने कहा कि ‘मैं कामदेव को तो जीवित नहीं कर सकता परन्तु कामदेव को दोबारा जन्म दे सकता हूं।’ तब कामदेव ने वर्षों बाद श्रीकृष्ण के पुत्र प्रदुम्म के रूप में पुन: जन्म लिया और रति ने एक राजा के घर। फिर दोनों का मिलन हुआ।

मनु और इडा 

प्रथम पुरुष मनु व प्रथम नारी इडा का प्रेम भी अटूट है। दोनों ने धरती पर ना जाने कितने जन्म पति-पत्नी के रूप में लिए और हर जन्म को भव्य गरिमा प्रदान करते हुए मानव जाति के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया। राजा दशरथ-कौशल्या, वासुदेव-देवकी, रामकृष्ण परमहंस, माता भगवती उन्हीं के अवतारों में से हैं।

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