भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय महीना सावन शुरू हो चुका है। कहा जाता है कि सावन में किया गया शिव पूजन व्रत और उपवास बहुत फलदायी होता है। आइये ले चलते है आपको भगवान शिव की ससुराल। जिसे ‘कनखल’ के नाम से जाना जाता है। यहां विराजित है शिव का दक्षेश्वर रुप। भगवान शिव का घर कैलाश है जबकि कनखल उनकी ससुराल। कहा जाता है कि यहां शिव को सावन में वह भी सोमवार के दिन जलाभिषेक करने से शिव भक्तों से जल्द ही प्रसन्न हो जाते है।
सावन भर ससुराल में ही रहते हैं शिव
यह भी माना जाता है कि शिव सावन के पूरे महीने अपने ससुराल कनखल में ही निवास करते हैं और यही से सृष्टि का संचालन और लोगों का कल्याण करते हैं। सावन के महीने का शिव भक्तों को भी इंतजार रहता है। लोग सुबह-सुबह ही निकल पड़ते हैं शिव मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए। माना जाता है कि शिव भोले है और जो कोई भी सच्चे मन से उनकी पूजा करता है वह उसकी मन चाही मुरादें पूरी करते है।
यहां इस रूप में विराजमान हैं शिव
हरिद्वार स्थित हरि की पौड़ी से दक्षिण दिशा में लगभग तीन मील दूर स्थित कनखल और यहां का दक्ष प्रजापति का दक्षेश्वर शिव मन्दिर। यह सभी शक्ति पीठों के बनने का कारण है दुनिया के सभी मंदिरों में शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं लेकिन यही एक ऐसा मंदिर है जहाँ पर शिव राजा दक्ष के कटे हुए धड़ के रूप में स्थित हैं।

सती ने किया था यहां देह त्याग
पौराणिक उपाख्यान के अनुसार ब्रह्मा के मानस पुत्र प्रजापति दक्ष ने सती के साथ शिव का विवाह कर दिया तो एक सभा में जब दक्ष पहुंचे तो सभी देवगण वहां सम्मान में खड़े हो गए वहीं भोलेनाथ अपने आसन पर बैठे रहे। तभी से दक्ष के मन में शिव के प्रति द्वेष रहने लगा। एक बार दक्ष ने अपनी राजधानी कनखल में महायज्ञ का आयोजन किया, सभी देवताओं को यज्ञ में आमंत्रित किया लेकिन शिव को न्योता नहीं भेजा। सती (पार्वती) ने आकाश मार्ग से देवताओं को अपने विमानों में बैठकर जाते देखा तो शिव से इसके बारे में जानकारी ली। शिव ने बता दिया कि उनके पिता ने यज्ञ आयोजित किया है, जिसमें द्वेष वश उन्हें नहीं बुलाया गया है। सती शिव के मना करने पर भी यज्ञ में भाग लेने के लिए कनखल पहुंच गई। यज्ञ में निरादर होने के कारण सती ने अपनी देह को यज्ञ कुंड में भस्म कर दिया। शिव को पता चला तो वीरभद्र को भेज कर यज्ञ विध्वंस करा दिया। शिवगणों ने दक्ष का सिर काट डाला। शिव सती का देह लेकर ब्रह्मांड में तांडव करने लगे। देवता शिव को शांत करने के लिए स्तुति गान करने लगे। वहीं विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती की देह को खंड-खंड कर दिया, जहां- जहां सती का जो अंग गिरा वहीं शक्तिपीठ की स्थापना हो गई। किसी प्रकार शिव शांत हुए तो दक्ष यज्ञ पूर्ण करने का उपाय तलाशा गया। शिव ने बकरे का सिर लगाकर दक्ष की शल्य क्रिया कर यज्ञ को सम्पन्न कराया। दक्ष ने क्षमा याचना कर वरदान मांगा कि शिव इसी स्थान पर दक्षेश्वर नाम से विराजमान हों। शिव ने वरदान दिया कि सावन मास में वह कनखल में दक्षेश्वर नाम से विराजमान रहेंगे तथा भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करेंगे। तभी से कनखल स्थित दक्ष घाट पर स्नान कर दक्षेश्वर महादेव का जलाभिषेक करने की परम्परा चली आ रही है।
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