Importance of Vote: रंगों का त्योहार तो हम मना ही चुके हैं, अब समय है अगले त्योहार की तैयारी का। सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार, यानी चुनाव। ये समय है अपने वोट की ताकत पहचानने और आज़माने की-
जिस समय आपकी उंगलियां इस पेज को पलट रही हैं, ठीक उसी समय एक बहुत बड़ी जि़म्मेदारी भी आपकी इन्हीं उंगलियों पर टिकी हुई होगी। वह जि़म्मेदारी है वोट देने, यानी मतदान करने की। दिलचस्प ये है कि चाहे हम इसे अधिकार समझकर पूरा करें या कर्तव्य, भारत भाग्य विधाता की हमारी भूमिका तो बन ही जाती है।
दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले इस देश में आज अगर कोई ये कहे कि ‘एक वोट से क्या $फर्क पड़ता है तो ज़ाहिर है, उसकी हद दर्जे की लापरवाही अपनी मिसाल आप होगी, लेकिन अ$फसोस भी तो इसी बात का है कि ऐसा सोचने वालों की कोई कमी नहीं है। चुनाव की चर्चा चाय से लेकर चैनल तक पर दिखती तो बड़े ज़ोरदार और गर्मागर्म ढंग से है। बहस ही बहस में लोग जाने कितनी पार्टियों और राजनीतिज्ञों की जन्मकुंडली बनाते-बिगाड़ते मिल जाते हैं। बेशक, इसमें कुछ $गलत नहीं है, क्योंकि हमारा लोकतंत्र हमें ये अधिकार देता है कि हम राजनेताओं को जवाबदेह बनाएं, लेकिन ये अधिकार सिर्फ़ उनके लिए ही है, जो वोट देकर $खुद अपनी जवाबदेही पर खरे उतरते हैं। जिनकी ज़बान पर ये जुमला रहता है कि वे इसलिए वोट नहीं देते, क्योंकि राजनीति भ्रष्ट हो चुकी है तो ऐसे लोगों का जागना बहुत ज़रूरी है।
ऐसा कहने वालों की भी कोई कमी नहीं, जो ये दावा करते हैं कि उन्हें राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है या वे उसे दूर से ही प्रणाम कर देते हैं। असल में जानते तो वे भी हैं कि चाहे वे चाहें या न चाहें, राजनीति तो सभी की जि़ंदगी की हर शै में शामिल है। आज घूम-फिरकर हर समस्या का समाधान भी राजनीति है और स्वयं समस्या भी राजनीति ही है। विकास चाहे हमारा हो या देश का, उसके लिए फैसले लेने होते हैं राजनेताओं को और किस राजनेता को स्वीकारना है और किसे नकारना, ये फैसला लेते हैं हम। फैसलों से भरी इसी घड़ी का नाम है- चुनाव।
अब यहां सोचने वाली बात ये है कि अपना देश, अपना शासन, अपना चुनाव, जैसी बातों के लिए कितना इतंज़ार करना पड़ा था, कितना अत्याचार सहन करना पड़ा था, कितनी कुर्बानियां देनी पड़ी थीं, वही मिल जाने के बाद हम उसके प्रति कितने उदासीन हो चुके हैं। कितने ही ऐसे लोग हैं, जिनके पास वोट न देने के हज़ार बहाने होते हैं। मेरे एक वोट देने, न देने से क्या $फर्क पड़ जाएगा। मुझे कुछ और ज़रूरी काम है। सारे नेता भ्रष्ट हैं, इसलिए वोट देना ही नहीं चाहिए। वोट देने के लिए बहुत लंबी लाइन में लगना पड़ता है। इस देश में कभी, कुछ नहीं बदलने वाला। एक दिन की छुट्टी को धूप में लगकर कौन बर्बाद करे, व$गैरह-वगैरह। कहा तो कुछ भी जा सकता है, लेकिन हम अपनी इस जवाबदेही से भाग नहीं सकते। अगर हम एक दिन थोड़ी सी तकली$फ सहकर वोट देने घर से बाहर नहीं निकल सकते तो फिर हम अपने लिए सालों की समस्याओं के बीज $खुद बो देते हैं। ज़ाहिर है, जिस देश में मतदान के ज़रिये सवाल पूछने का हक रखने वाले ही सुस्त हैं, वहां की सरकारें क्यों चुस्त हों। सत्ता का नशा तो वैसे भी अच्छे-अच्छों को सुलाने के लिए काफी होता है। उन्हें जगाने का काम करता है एक जागरूक मतदाता, लेकिन जब वही अपन ताकत से अंजान हो तो फिर नेताओं को दोष क्यों। उनकी भी हर लापरवाही रियायत की हकदार है। फिर जिस सरकार या व्यवस्था को आप पानी पी-पीकर कोसते रहते हैं, उसी को सालोसाल झेलने के लिए तैयार रहिए, क्योंकि उसमें बदलाव के लिए आपने अपनी लापरवाही को नहीं बदला।
पहले के अनेक उदाहरणों से ये बात साबित हुई है कि एक-एक वोट के महत्त्व को कमतर नहीं आंका जा सकता। केवल एक वोट की ताकत से सरकार बनती भी है और गिरती भी है। सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को भी हमारे सामने चुनाव के समय हाथ जोड़कर खड़े होना होता है। ये ताकत है आपकी उंगलियों पर टिकी वोट की ताकत। सो अगर इस चुनाव वाले दिन आपका इरादा वोट न देकर और कुछ भी करने का है तो अगली बार किसी भी समस्या के लिए, किसी और पर उंगली उठाने से पहले इस उंगली को अपनी तरफ ही मोड़ लीजिएगा।
