ऐसे  माहौल में मुझ जैसी आधुनिक महिला भी थोड़ी धार्मिक हो ही गई। मैने भी व्रत रखने की ठानी। पर मैं जो दिन मंे चार-पाँच बार खाए बिना नहीं रहती, उसके लिए ऐसे व्रत थोड़े मुश्किल थे।

 मैंने तय किया कि ‘ई फास्ट’ रख लेती हँू। खाना-पीना भी होता रहेगा और मेरा मकसद भी सध जाएगा। रात को ही घर पे मैने ऐलान कर दिया कि कल मेरा ई फास्ट है। दिन भी रविवार था सो किसी अर्जेन्ट काॅल सा मैसेज की परेशानी भी नहीं थी। हमेशा की तरह मोबाइल, लैपटाॅप, कम्प्यूटर चार्ज पे रात मैने नहीं लगाए। अगले पूरे दिन उनसे काम जो नही था।

    रविवार की सुबह सूरज सिर पे चढ़ आया। नींद ही नहीं खुली मोबाईल मंे अलार्म जो न बजा था। खैर रूटीन तो खराब हो ही गया था सो जैसे-जैसे नित्यकर्म किए।
    वाश रूम में भी समय बमुश्किल कटा। कहाँ तो सुबह-सुबह ही सारी सहेलियों की गतिविधियों से परिचित हो कर, किससे किसकी बुराई करनी है, प्लान हो जाता था, कौन कहाँ गया, किसने क्या खाया, क्या पहना, कितना मेकअप करवाया पता चल जाता था। कहाँ मैं ऐसे घर में बैठी थी जैसे काला पानी की सज़ा दे दी गई हो।

    चाय-नाश्ते में भी आज मन ही नहीं लगा। रह-रह के चाय के साथ किट्टी पार्टी की लेड़ीज के सुबह-सुबह आने वाले चरपरे काल्स याद आ रहे थे। अब प्रधानमंत्री क्या कर रहे है, यह जान कर भला मैं क्या करूँगी, सरोकार तो अपनी फ्रेडंेंस से ही रखना होता है ना।

    घरवाले सुबह से ही मेरा लटका मंँुह देख रहे थे। उनकी मंद मंद मुस्कुराहट मेरे दिल को छलनी कर रही थी। मोबाइल, कम्प्यूटर, लैपटाॅप मेरे ही कहने से आलमारी में बंद कर दिए गए थे। अपने प्यारे आईफोन, एडूराॅइड फोन को सामने न पा मेरा मन लग नहीं रहा था।

    बार-बार ख्यालों में उसकी घंटी घनघना उठती। ऐसा लग रहा था किसी और के फोन पे मेरा अर्जेन्ट मैसेज आ जाएं और मुझे अपना मोबाइल चालू करना ही पड़े, पर कमबख्त ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। रविवार था, आॅफिस होता तो चुपचाप मोबाइल यूज कर लिया होता पर घर पे तो कोई न कोई देख ही लेता।

    दिन भर खाना बनाने, बर्तन मांजने, कपड़े धोने में खुद को मसरूफ रखा पर कमबख्त दिल तो जैसे दीवाना ही हो गया। उसे तो न जाने क्यों बस मोबाइल ही चाहिए था। हाथ पैर ठण्डे़ से पड़ गए, बदन में जैसे जान नहीं रही, कुछ भी करने की चुस्ती-फुर्ती ही नहीं बची।

    लग रहा था मैं दीन-दुनिया से बेदखल कर दी गई हँू। टी.वी. पर आ रहे बिग बाॅस के प्रति भागियों से मेरी सहानुभूति काफी बढ़ चली थी।
    रविवार को घर के सारे काम करने के बाद भी समय काटे नहीं कट रहा था। रह रह के ऐसा प्रतीत हो रहा था। समस्त वाट्सएप गु्रपों पर मेरी अनुपस्थिति में मेरे खिलाफ साजिश चल रही थी, अगली किट्टी में आज के ही सारे विडियो और मैसेज डिस्कस हुए तो मैं पिछड़ जाऊँगी, यही भय सता रहा था। प्रेमी-प्रेमिका जब एक-दूसरे की आदत बन जाते हैं तो कैसे दूरी खाने को दौड़ती है, आज पता चल रहा था। विरह के सारे फिल्मी गाने मुझ पे और मेरे मोबाइल पे शत-प्रतिशत सटीक बैठ रहे थे, मानो हम दोनो के लिए ही लिखे गए हों।

    खून के आँसू पीते हुए दोपहर गुजरी। चूंकि इलैक्ट्रिकल गैजटस नहीं छूने थे, घरवालों ने टी0वी0 भी नही चलाने दी। कितनी प्रार्थना की ईश्वर से कि लैंडलाइन पर ही किसी सहेली का फोन आ जाए। मुहल्ले के, शहर के हाल-चाल पता चल जाएँ, पर किसी को मेरे दुःख दर्द से क्या! सब अपने में ही मसरूफ थीं।

    ई. फास्ट रखा था दिल के सुकून के लिए, तनाव मुक्त होने के लिए पर यह क्या मेरा तो बी.पी. ही हाई हो गया था, सिर में दर्द था और बुखार के सभी लक्षण। गोली दवाई काम ही नहीं कर रही थी। हाथ और कान मानों सुन्न हो गए थे, सुबह से ज्यादा काम में जो नहीं आ पाए थे। आँखें भी पथरायी सी थी।

     शाम होते होते जब शरीर अकड़ने लगा तो डाॅक्टर को बुलवाया गया। सारी जाँचे नार्मल होने पर भी जब उन्हें कुछ पता नहीं चला तो वे जाने के लिए उठे। कहने लगे ‘‘मोबाइल पे बात करता हूँ‘‘ एक ठंड़ी साँस ले के मैेने जब उन्हे अपने ई-फास्ट के बारे में बताया तो उनकी आँखो में चमक आ गई।

    ‘मैं समझ गया मर्ज क्या है तुरन्त मोबाइल आॅन करो‘ उन्होंने आदेश दिया। ‘पर डाॅक्टर साहब सुबह से शाम तक मैने सक्सेज फुली फास्ट रख लिया अब क्यो तुड़वा रहें हैं ?’  मै पूछ बैठी।
    ‘रात को तबियत ज्यादा बिगड़ सकती है घरवालों को सोने नही दोगी क्या’। उनकी आवाज में जवाब कम चेतावनी ज्यादा थी। घरवाले पहले से ही मेरी गुमसुम, अनमने रहने से आतकिंत थे परन्तु फोन उठा लाए। वाई फाई आॅन कर दिया गया।

    लगातार बजते मैसेज की धुन ने मुझ पर चमत्कार सा किया। हाथ पैरो में जान आ गई आँखों में चमक। दिल फिर से धड़कने लगा। कोई बरसांे का बिछुड़ा हुआ मिलता है तो कैसा लगता है आज पता चला था।
    मोबाइल आॅन करते ही सबसे पहले ग्रुप आॅन किए सभी पे मैसेज थे। कैसा रहा ई फास्ट?

   कमबख्तो को पता नही किस ने बता दिया था पर फिर से अगुलियाँ मैसेज टाईप करने मे व्यस्त हो गई। जैसे खोयी जवानी लौट आई हो, सारी ऊर्जा मुझी में समायी हो। दिल तेजी से धड़क रहा था।
    दिमाग सोच में था कि ई फास्ट कब तक का डिक्लेयर करूँ, आधे दिन तक का या पौने दिन का आखिर यह न्यूज भी तो सभी ग्रुप्पो में वायरल करनी थी।