yatharth ko dekho
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एक शिल्पी था। वह चट्टानों से पत्थर तोड़ता, उन्हें तराशता और इमारत में लगाए जाने योग्य बनाता। उसकी चारों ओर प्रशंसा थी पर वह इस काम से ऊब गया था अतः उसे छोड़कर नौकरी करने निकला। नौकरी देने वाले ज्यादा तर व्यापारी थे। किसी भी व्यापारी ने उसे नौकरी न दी तो उसने सोचा कि व्यापार बहुत बड़ी चीज होती है। उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि उसे व्यापारी बना दे।

ईश्वर कदाचित फुरसत में थे इसलिए उसकी पुकार शीघ्र सुन ली। शिल्पी व्यापारी बन गया। एक दिन उस क्षेत्र में मंत्री जी आए। उसने देखा कि सभी व्यापारी मंत्री के पीछे लगे हर तरह की सेवा कर रहे हैं। उसने सोचा मंत्री व्यापारी से बड़ा होता है। ईश्वर से फिर प्रार्थना की कि उसे वह मंत्री बना दें। ईश्वर ने तथास्तु कहा और वह मंत्री बन गया। तभी चुनाव के दिन आ गए। उसे मंत्री के रूप में बहुत दौरे करने पड़े। गर्मी का मौसम था, तेज धूप पड़ रही थी। वह धूप में बिलबिला उठा।

चमड़ी काली पड़ गई। उसे लगा सूर्य ही सर्वाेपरि है। ईश्वर से प्रार्थना करते ही वह सूर्य बन गया। गर्मी के बाद बरसात का मौसम आया तो आसमान में मेघ छा गए जिससे सूरज ढक गया। अब उसने ईश्वर से कहा कि उसे बादल बना दे क्योंकि उसमें सूरज को ढकने की शक्ति है। सूरज से वह बादल बना।

तभी तेज हवाएं चलने लगी जिससे बादल छिन्न-भिन्न होने लगे। उसने सोचा पवन अति शक्तिशाली है। इच्छा करते ही वह पवन बन गया। जब वह अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के लिए प्रचंड रूप धारण करता तो बड़े-बड़े वृक्षों और खम्बों को धराशायी कर देता परंतु चट्टानों का कुछ न कर पाता, वह चट्टान बन गया। तभी उसने देखा कि उसका साथी शिल्पी छेनी और हथौड़ा उठाए उसे काटने चला आ रहा है।

तब उसे बोध हुआ कि इच्छा और यथार्थ में अंतर करना सीखना चाहिए तभी जीवन सफल होता है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)