Hindi Kahani: लखनऊ की जुलाई में कुछ ख़ास बात होती है।
इस बार मैं मायके लौटी तो बस पुरानी यादों को टटोलने—notebooks, कागज़, कुछ टूटी राखियाँ, और एक हल्की सी खुशबू। मैंने धीरे-धीरे एक पुरानी अलमारी खोली। किताबों, बिल्लियों, और चिट्ठियों से भरी वो अलमारी जैसे मेरे भीतर के किसी कोने को खोल रही थी।
वहीं एक पीली पड़ी डायरी मिली — “कक्षा १२ – १९९९”। पन्नों के बीच दबा था एक कागज़ — चुपचाप रखा हुआ, जैसे किसी दिल की बात जिसने कभी ज़ुबान नहीं पाई। उपर लिखा था — “प्रिय अमित”
मैं हँसी। चौंकी भी। पच्चीस साल बाद भी वो नाम दिल में ऐसा ही गूंजता है।
चिट्ठी कुछ यूँ थी:
प्रिय अमित,
आज जब तुम्हारा रिज़ल्ट देखकर तुमने मुझे वो “अलविदा वाली” मुस्कान दी।
मुझे नहीं पता हम फिर मिलेंगे या नहीं। लेकिन इतना जानती हूँ — इन दो सालों में, तुम्हारी चुप्पी भी बहुत कुछ कहती रही।
तुमने कभी कुछ कहा नहीं, और मैंने कभी कुछ माँगा नहीं।
पर मोहब्बत क्या हमेशा इज़हार की मोहताज होती है?
उस दोपहर के बाद, जब हम लाइब्रेरी में एक ही किताब पढ़ते थे, तुम्हारा चुप रहना भी मुझे पढ़ना आ गया था।
अगर कहीं किसी मोड़ पर तुम इस चिट्ठी को पढ़ रहे हो — तो जान लो, तुम्हारी एक मुस्कान ने मुझे मोहब्बत का मतलब सिखाया था।
– तुम्हारी,
कविता।
मैं चिट्ठी को फिर से मोड़कर उसी डायरी में रख देती हूँ।
मेरी बेटी अंदर आती है — “मम्मी, क्या ढूंढ रही हो?”
मैं मुस्कराती हूँ।
“कुछ नहीं बेटा… एक अधूरी सी कहानी… जो बस यादों में रह गई।”
कुछ प्रेम कहानियाँ अधूरी सही, पर वो हमें अधूरा नहीं छोड़तीं।
वो हमें सिखाती हैं — मुस्कराना, महसूस करना, और जीना… थोड़ा और गहराई से।
और यही तो असली प्रेम है — जो वक़्त के साथ और भी खूबसूरत हो जाता है।
