वो आठ सिक्के-गृहलक्ष्मी की कहानियां 
Wo Aath Sikke

Hindi Story: “फिर से सोच लीजिए रमलेश बाबू, बेटे की शादी की बात है। उसकी पढ़ाई लिखाई पर आपने इतना खर्च किया है और वो आपका इकलौता बेटा है। ये लोग बहुत गरीब हैं और आठवीं संतान है ये इनकी। शादी में कुछ नहीं दे पाएंगे। आपके और भाभी जी के सारे मनोरथ धरे के धरे रह जाएंगे।” 

धीरे से पंडित गंगाराम ने कहा था उनके कान में… जिन्हें अपने बेटे की कुंडली दिखवाई थी रमलेश ने और योगेश बाबू की बेटी राधा से उनके बेटे की शादी की बात आगे बढ़ाने के लिए कहा था।

“हमें बस संस्कारी बहु चाहिए जिसे हम अपनी बेटी की तरह रखेंगे। सिर्फ शादी के जोड़े में उसे लिवा लाएंगे, वो जोड़ा भी हम भिजवा देंगे। आप लोगों को बिल्कुल चिंता करने की जरूरत नहीं है। हमें लड़की और उसका परिवार पसंद आया और कुछ नहीं चाहिए। हमारा बेटा अच्छा खासा कमाता है और फिर मेरा वेतन भी अच्छा है। मैं दहेज मुक्त विवाह ही करवाऊंगा अपने बेटे का। मुझे सिर्फ योगेश बाबू आपकी लड़की चाहिए।”

“यह हमारी खुशकिस्मती है जो आप से हमारा रिश्ता जुड़ेगा,पर आप तो हमें शर्मिंदा कर रहें हैं। अपनी बेटी की शादी का जोड़ा तो हम बनवा ही सकते हैं बस कन्यादान के लिए सोने के सिक्के का इंतजाम करना मुश्किल होगा।”

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“कोई जरुरत नहीं है आपको सोना दान करने की आपकी बेटी ही सोना है। आप बस उसका हाथ मेरे बेटे के हाथ में दे दीजिए।”

योगेश बाबू अपनी बेटी राधा का रिश्ता रमलेश के बेटे गोपाल से तय करके अपनी बेटी की किस्मत पर नाज़ कर रहे थे।

” मेरी बेटी बहुत ही किस्मत वाली है जो खुद चलकर इतना अच्छा रिश्ता उसके लिए आया।”

 उन्हें अपनी बेटी के विवाह की चिंता  सता रही थी। अपनी सात बेटियों के विवाह में अपनी सारी जमीन और पत्नी के गहने बेच चुके थे। अब उनके पास ऐसा कुछ था ही नहीं जिसे बेचते, घर भी गिरवी पर था।

“क्या सोच रहे हैं जी? बेटी की शादी का खर्च हम कैसे उठाएंगे। बेटी का कन्यादान कैसे करेंगे। मेरे पास तो अब एक भी सोने चांदी का गहना बचा ही नहीं है।” 

घर आकर जब योगेश ने अपनी पत्नी को बताया तो उन्हें अपनी परंपरा के अनुसार बेटी के विवाह में सोने से कन्यादान की चिंता सताने लगी। अपने गले में काले मोती की माला को निहारने लगी थी वो। अपने इस मोतियों की माला में लगा सोने का वो लॉकेट भी तो उसने पिछले वर्ष ही अपनी सातवीं बेटी को शादी में दे दिया था।

” राधा की मां वो लोग ही सारा खर्च उठाने को तैयार हैं। बस लाल जोड़े का इंतजाम करना होगा। बहुत बड़ा घर  है शहर में उनका और बड़े लोग हैं रमलेश बाबू उनका दिल भी उतना ही बड़ा है। घमंड तो छूकर नहीं गया है।वो तो शादी का जोड़ा भी राधा के लिए खरीदने को तैयार हैं जिसे पहनकर वो शादी के मंडप पर बैठे पर मैंने ही मना कर दिया। इतना तो हमें करना ही होगा।”

“हां मैं खुद उसके लिए साड़ी तैयार करूंगी, कुछ पैसे जोड़ रखें हैं उनसे आज ही लाल साड़ी और गोटे किनारी ले आऊंगी पर गिन्नी कहां से लाएंगे। सोना खरीदने की हमारी औकात अब कहां है।”

“तूं वो सब चिंता छोड़ बस शादी की तैयारी शुरू कर।”

रात भर योगेश अपनी टूटी हुई खपरैल की छत को निहारता रहा। गरीब के घर की बेटियों की किस्मत ऊपर वाला अच्छा ही लिखकर भेजता है। भगवान की दया से सभी बेटियों की शादी अच्छे घर में हो गई बस सबसे छोटी बेटी राधा की चिंता भी दूर कर दी। वंश बढ़ाने के लिए बेटे की लालसा में एक के बाद एक आठ बेटियां योगेश के आंगन की रौनक बढ़ाने लगी। बेटियों की शादी का दहेज सोचकर ही डर जाया करता था। जैसे-तैसे सात बेटियों का विवाह तो करवा दिया अब सबसे छोटी बेटी राधा का कन्यादान बांकी था।

खाली हाथ कैसे दान दूंगा उसे। सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी प्रथा चली आ रही थी बेटी का हाथ जमाई के हाथ में देते समय उसके हाथ में गिन्नी यानी सोने का सिक्का देने की। 

उनकी नजर मंदिर में रखे गुल्लक पर पड़ी जिसमें वो कभी कभार एक दो रुपए का सिक्का डाल देता था। मन ही मन हिसाब लगाया पांच सौ रुपए से ज्यादा तो हो ही गए होंगे। वो बिस्तर से उठा और गुल्लक तोड़ कर पैसे गिनने लगा। पांच सौ एक रुपए थे पूरे। इन पैसों से एक चांदी का सिक्का ही खरीद लेगा यही सोचकर पैसों को सिरहाने में रख सो गया।

अगले दिन जब उठा तो विचार किया कि ये पैसों की थैली ही दे देगा। 

रमलेश शहर में रहते थे । गांव किसी काम से आए थे वहीं राधा को अपने किसी रिश्तेदार के घर शादी में काम करवाते और गीत गाते देख पहली ही नजर में अपने बेटे के लिए पसंद कर लिया था। राधा के संस्कार और उसका रंग रूप उसकी सुरीली आवाज ने मोहित कर दिया था रहलेश को। तभी उन्होंने मन में निश्चय कर लिया था कि राधा को अपने घर की बहू बनाने का। जिस घर में उसके कदम पड़ेंगे वो घर स्वर्ग समान हो जाएगा। उनके बेटे गोपाल को भी राधा बहुत पसंद आई थी। 

हफ्ते भर बाद ही शादी का मुहूर्त निकला। बहुत ही कम लोगों को बरात में लाए थे रमलेश बाबू। जितने मुंह उतनी बातें और बस कमियां ही तो निकालतें हैं लोग एक दूसरे की। कोई कहता..

” गांव की लड़की ही पसंद आई रमलेश बाबू आपको अपने बेटे के लिए। एक पैसा इसके बाप के पास नहीं है शादी में खर्च करने के लिए और आपके बेटू के लिए तो शहर में भी एक से बढ़कर एक रिश्ता आएगा। काहे गांव देहात की लड़की को अपने घर की बहू बना रहे हैं।”

तो कोई कहता…

“समाज सेवा का ठेका ले के बैठे हैं।”

रमलेश बाबू एक कान से सुनते उनकी बातें और बिना किसी प्रतिक्रिया के उनकी किसी बात पर ध्यान ही नहीं देते।

शादी का पूरा खर्च उन्होंने ही उठाया। 

जब कन्यादान का समय आया तो योगेश बाबू ने वो पांच सौ एक सिक्कों से कन्या दान करना चाहा तो रमलेश जी ने उनमें से सिर्फ आठ सिक्के ही रखे। 

“आपकी आठवीं संतान मेरे घर की पहली बहू है हमें सिर्फ आपकी बेटी चाहिए आप बाकी सिक्कों को रख लीजिए।” 

“लोग क्या कहेंगे। सोने के सिक्के का तो इंतजाम नहीं कर पाया पर ये पांच सौ एक तो रख लीजिए।”

अपनी पगड़ी उतारते हुए योगेश जी बोले।

बड़े प्यार से रमलेश ने उनके सिर पर पगड़ी पहनाई और उन आठ सिक्कों को अपने माथे से लगा लिया।

“कहने दीजिए लोगों को मुझे फर्क नहीं पड़ता। मैं अनमोल खजाना आपके घर की लक्ष्मी अपने घर ले जा रहा हूं।”

खुशी के आंसू लुढ़क आए थे योगेश की आंखों में।

बेटी का कन्यादान संपन्न हुआ उन आठ सिक्कों से बाकी के सारे सिक्के पंडित गंगाराम जी को थमाते हुए रमलेश बोले “दान दक्षिणा की चिंता मत कीजिएगा” और अपनी तरफ से भी उन्होंने पैसों की गड्डी पंडित जी के हाथ में थमा दी।

उन आठ सिक्कों को लाल कपड़े में बांध कर अपनी जेब में ऐसे रखा जैसे कोई बहुत बड़ा खजाना उनके हाथों लग गया हो। 

राधा को बहु बनाकर लाए और अपनी बेटी की तरह मानने लगे। राधा भी अपने सास ससुर की सेवा बड़े मन से करती हुई अपनी किस्मत पर नाज़ करती।