Vikram or Betaal Story in Hindi : एक बार फिर वीर राजा विक्रम, हाथ में तलवार लिए पेड़ के पास जा पहुंचा। उसने पेड़ से लटकते शव को नीचे उतारा व कंधे पर लादकर चुपचाप चल दिया। तभी बेताल बोला :- “विक्रम! मैं तुझे एक कहानी सुनाता हूं। तुझे आखिर में एक सवाल का जवाब देना होगा। अगर तूने जवाब न दिया तो मैं तेरे सिर के हजारों टुकड़े कर दूंगा।”
यह कह कर बेताल कहानी सुनाने लगा।
बहुत समय पहले की बात है, उज्जैन नगरी में वसुधर नामक ब्राह्मण रहता था। उसके चार पुत्र थे। वे चारों बेहद आलसी थे और प्रायः जुए जैसी बुरी आदतों में अपना समय गंवाते। वे वेद-उपनिषद आदि का ज्ञान नहीं पाना चाहते थे। वसुधर प्रायः पुत्रों के भविष्य के बारे में सोचकर चिंतित रहता।
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एक दिन उसने पुत्रों को बुलाकर कहा :- “बच्चों! तुम्हें अहसास होना चाहिए कि जो लोग विद्या व अनुशासन को अपने जीवन में महत्त्व नहीं देते, उन्हें अपनी वृद्धावस्था में पछताना पड़ता है। जुआ खेलने वालों को समाज में कभी आदर-मान नहीं मिलता।”
अतः उसने सलाह दी :- “इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, तुम्हें ज्ञान प्राप्त करना चाहिए ताकि तुम भविष्य में सम्मानपूर्वक जी सको।
चारों पुत्रों ने पिता की सलाह ध्यान से सुनी व उस पर अमल करने के लिए मान गए। उन्होंने तय किया कि वे विद्या प्राप्ति के लिए जाएंगे।
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शीघ्र ही, वे दूसरे नगर के लिए निकल पड़े। वहां उन्होंने जादू की कला सीखी तथा वर्षों तक उसका अभ्यास किया। फिर उन्होंने अपने घर लौटने का मन बनाया।
वापसी पर लौटते समय, मार्ग में घना वन पड़ा। उन्हें वहां एक वृक्ष के नीचे मृत शेर की हड्डियों का ढेर दिखाई दिया। वे उसे देखकर उत्तेजित हुए व उस पर अपनी विद्या आजमाने का फैसला किया।
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उनमें से एक ने सारी हड्डियां जोड़कर अस्थिपंजर बना दिया। दूसरे भाई ने अपने जादू से हड्डियों पर मांस की परतें चढ़ा दीं। तीसरे भाई ने शेर की खाल चढ़ा दीं। अंत में चौथे भाई ने कुछ मंत्र पढ़ कर शेर में प्राण डाल दिए।
ज्यों ही शेर उठा, उसने चारों भाईयों पर झपट्टा मारा व उन्हें एक-एक कर खा गया। चारों भाइयों में से कोई जीवित नहीं बच सका।
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बेताल ने कहानी समाप्त कर राजा से पूछा :- “बता विक्रम! चारों भाईयों में से सबसे बड़ा मूर्ख कौन था?”
राजा विक्रम ने उत्तर दिया :- “बेताल! मेरे हिसाब से तो शेर में जान डालने वाला भाई सबसे बड़ा मूर्ख था। कोई महामूर्ख ही सोचे-समझे बिना इतना खतरनाक कार्य कर सकता है। किसी भी मनुष्य को कार्य करने से पहले उस पर विचार कर लेना चाहिए।”
ज्यों ही विक्रम ने अपना उत्तर समाप्त किया। बेताल उसे देख कर व्यंग्य भरी हंसी हंसा और पेड़ की तरफ उड़ चला।
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