Vikram or Betaal Story in Hindi : एक बार फिर से वीर राजा विक्रम हाथ में तलवार लिए वृक्ष के पास जा पहुंचा। उसने पेड़ से उतारे शव को कंधे पर लादा व शमशान भूमि की ओर चल दिया। बेताल ने कहा:- ‘‘विक्रम मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। तुम्हें अंत में मेरे प्रश्न का उत्तर देना होगा। अगर मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो मैं तुम्हारे सिर के हजारों टुकड़े कर दूंगा।’’
- और बेताल कहानी सुनाने लगा।
किसी नगर में कृष्णदत्त नामक ब्राह्मण रहता था। उसका हरिदत्त नाम का पुत्र था। वह भी अपने पिता की तरह ही विद्वान था। जब उसकी विवाह योग्य आयु हुई, तो पिता अद्भुत वधू तलाशने लगे।
दुर्भाग्यवश, पुत्र का विवाह करने से पूर्व ही कृष्णदत्त चल बसे। पिता की मृत्यु के बाद, परिवार का सारा उत्तरदायित्व हरिदत्त के कंधों पर आ गया। उसने बड़ी कुशलता से सब कुछ संभाल लिया।

एक दिन वह पास के नगर में, किसी विवाह में शामिल होने के लिए गया। वहां उसे एक युवती मिली हरिदत्त को उससे प्रेम हो गया। उस युवती का नाम लीलावती था। वह भी उसे चाहने लगी। जल्दी ही बड़ों के आशीर्वाद से दोनों का विवाह हो गया। वे दोनों खुशी-खुशी रहने लगे।
एक दिन हरीदत्त अपनी पत्नी के साथ ताजे पानी के सरोवर में स्नान कर रहा था। अचानक उसकी पत्नी का पांव फिसला और वह गहरे पानी में डूबने लगी। हरिदत्त उसे बचा नहीं सका। पत्नी के गम में वह पागल-सा हो गया। उसने लोगों से बातचीत करना छोड़ दिया। वह फटेहाल कपड़ों में मारा-मारा फिरता। उसकी दाढ़ी भी बढ़ गई। वह अक्सर सड़कों पर लीलावती को पुकारता घूमता रहता।

एक दिन वह सड़क पर भटक रहा था, तो उसके पिता के मित्र वासुदेव ने उसे पहचान लिया व घर ले आए। वासुदेव की पत्नी ने खीर बनाई थी। उसने हरिदत्त को खीर दे दी। हरिदत्त खीर खाने के बजाय उसे पास के बाग में ले गया।
वहां उसने खीर का कटोरा पेड़ के नीचे रख दिया और अपनी पत्नी को याद कर फूट-फूटकर रोने लगा। जल्दी ही उसे नींद आ गई। पास के पेड़ की खोखल में एक जहरीला सांप रहता था। वह सांप खीर के कटोरे के पास आया व उसमें जहर उगल कर, बिल में वापिस चला गया।

कुछ देर बाद हरिदत्त उठा, भूख लगने पर उसने खीर खा ली। खीर खाते ही विष ने अपना असर दिखाया। पूरे शरीर से पसीना छूटने लगा, हाथ-पांव अकड़ गए और उसे जोर से उल्टी आ गई।
वह वासुदेव के घर की ओर भागा गया व चिल्लाया :- “तुमने मुझे मारना चाहा। तुमने मुझे विषैली खीर दी।” इससे पहले वासुदेव कुछ समझ पाता, हरिदत्त उसके दरवाजे पर ही बेहोश हो गया। वह अपनी पत्नी को कोसने लगा :- “तुमने एक ब्राह्मण का वध कर दिया। तुमने खीर में जहर क्यों डाला ?”
वासुदेव की पत्नी इस झूठे इल्ज़ाम से इतना दुःखी हुई कि उसने कुएं में छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली।

बेताल ने कहानी समाप्त कर राजा से पूछा :- “बता विक्रम! चारों भाईयों में से सबसे बड़ा मूर्ख कौन था?”
राजा ने कुछ पल सोच कर कहा :- “मेरे हिसाब से तो यहां कोई भी दोषी नहीं है। सांप का तो स्वभाव ही है ‘जहर उगलना’। सांप को दोषी ठहराना गलत होगा। वासुदेव व उसकी पत्नी हरिदत्त की मदद करना चाहते थे। वे कभी ऐसा पाप न करते इसलिए यहां कोई भी अपराधी नहीं है।”
बेताल विक्रम का बुद्धिमत्तापूर्ण उत्तर सुनकर प्रसन्न हुआ, किंतु राजा विक्रम ने चुप्पी तोड़ी थी इसलिए वह पुनः वृक्ष की ओर उड़ चला। यह देखकर विक्रम उसकी चतुराई पर दंग रह गया।

