tiraskaar mat karo
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बगीचे के एक फूल को अपनी सुंदरता पर बहुत घमंड था। पास ही पड़े एक पत्थर को अक्सर लोगों की ठोकर लगती रहती थी। यह देख फूल घमंड से इतराता था। लेकिन एक दिन उसका घमंड चूर-चूर हो गया।

एक बगीचे के माली ने बगीचे में विभिन्न प्रकार के फूलों के पौधे लगाए थे। धीरे-धीरे सभी पौधो में सुंदर व सुगंधित फूल खिले। बगीचे की शोभा बढ़ गई थी। एक दिन माली कहीं से एक नए प्रकार का पौधा लाया। उसने सुना था कि उस पौधे का फूल अत्यंत मनमोहक होता है। माली प्रतिदिन पौधे को बड़े प्रेम से सींचने लगा। कुछ समय बाद वास्तव में उस पौधे पर एक बेहद सुंदर फूल खिला। माली उसे देखकर प्रसन्न हो गया। वह फूल सुंदर तो था, किंतु उसे अपनी सुंदरता का बड़ा अभिमान था। वह सोचता था कि उसके जैसा सुंदर कोई फूल नहीं है। उस फूल के पौधे के पास जमीन पर एक काले पत्थर का टुकड़ा पड़ा था। उस पत्थर को एक राहगीर की ठोकर लगते देख वह घमंडी फूल हंस पड़ा और बोला- मुझे देख! मैं कितना सुंदर हूँ। मेरी सुंदरता देखकर लोग बहुत प्रसन्न होते हैं।

और तुझे जो आता है ठोकर लगा जाता है। पत्थर का टुकड़ा मौन रहा। संयोग से एक दिन एक मूर्तिकार उधर से गुजरा। वह उस पत्थर के टुकड़े के प्रति आकर्षित हुआ। उसने उसे उठा लिया और उससे कृष्ण की मूर्ति बनाकर एक मंदिर में स्थापित करवा दी। एक दिन किसी व्यक्ति ने वही घमंडी फूल तोडकर पूजा के साथ उसी कृष्ण मूर्ति के आगे अर्पित कर दिया। तब उस मूर्ति ने कहा- भाई! तुम तो मुझ पर हंस रहे थे, आज मेरे चरणों में पड़े हो। फूल का सिर शर्म से झुक गया।

वस्तुतः कभी किसी को तिरस्कार से नहीं देखना चाहिए क्योंकि समय परिवर्तनशील है। आज जो फर्श पर दिखाई दे रहा है, वह कल अपने परिश्रम व प्रयास से अर्श पर आसीन हो सकता है।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)