भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Hindi Short Story: एक बार अकाल पड़ा। लोग रोजी-रोटी की तलाश में इधर-उधर जंगल-पहाड़ों में भटकने लगे। परिवार बिखरने लगे। एक परिवार में छह आदमी थे जिनमें दो बहनें बड़की और छोटकी भी थीं। एक दिन दोनों को बहुत जोर की भूख लगी। दोनों केंद फल खाने जंगल में निकल पड़ी। केंद खाते-खाते रात हो गई। मजबूरी में दोनों ने एक पहाड़ी गुफा में रात बिताई। सुबह फिर भूख लगी। फिर दोनों केंद खाने लगीं। पेट भर खाने के बाद उन्हें प्यास लगी। मगर आसपास कहीं पानी नहीं मिला। थककर दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गईं। तभी एक कबूतर बगल से उड़ता हुआ निकला।
“तम यहीं बैठना. मैं कबतर के पीछे जाती है। पानी मिलने पर लेती आऊंगी।” बड़की ने छुटकी से कहा।।
इतना कहकर बड़की कबूतर के पीछे दौड़ने लगी। दौड़ते-दौड़ते एक झरना मिला। उसने जी भर कर पानी पिया और छोटकी के लिए पानी दोने में भरकर चल पड़ी। इधर छोटकी राह देखते-देखते थक गई। जब शाम हो गई, तो वह रात बिताने की खातिर उसी गुफा में चली गई। रात में वहां कुछ बंदर आए और अकेली होने के कारण एक बूढ़ा बंदर उसे मारकर खा गया। सुबह जब बड़ी बहन उस पेड़ के नीचे पहुंची तो छोटकी वहां नहीं थी। उसे लगा कि वह घर चली गई होगी, लेकिन जब वह स्वयं घर पहुंची, तो पता चला कि वह लौटकर नहीं आई। फिर क्या था, सब समझ गए कि कोई जंगली जानवर उसे मारकर खा गया। गांववालों ने यह तय किया कि सब लोग जंगली जानवरों का शिकार करेंगे। एक दिन सब जुटे। जंगल में शिकार शुरू हुआ। बहुत सारे पशु-पक्षी मारे गए। एक बूढ़े आदमी ने उस बूढ़े बंदर को भी मार गिराया। उस बुढ़े ने उसका मांस खाकर चमड़े से ढोल बनाया। जब ढोल बजाने लगा तो उससे एक लड़की के गीत गाने की आवाज आने लगी। वह गीत ढोल के अंदर से छोटकी बहन गा रही थी। गीत की आवाज सुनकर बूढ़ा आदमी बहुत खुश हुआ। दूसरे दिन से वह गांव-गांव घूमकर ढोल बजाने लगा। इससे उसे खूब आमदनी होने लगी। दूर-दूर तक इस अनोखे ढोल की चर्चा होने लगी।
एक दिन वह उसी घर में जा पहुंचा, जहां उसके भाई-बहन और माता-पिता रहते थे। जब ढोल बजा, तब छोटकी गाने लगी। बड़की ने उसकी आवाज पहचान ली। उसने सबको बताया, तो सब बार-बार ढोल बजवाकर सुनने लगे। विश्वास हो जाने पर सब ने मिलकर चुपचाप यह योजना बनाई। उन्होंने ढोल वाले से रात में ठहरने का अनुरोध किया। वह रात को वहीं ठहर गया और ढोल खूटी पर टांग कर सो गया। रात को बड़ी बहन ने चुपके से उसके बिछावन पर गुड़ रख दिया। बूढ़े ने करवट बदली, तो गुड़ उसकी धोती में लग गया। उसने समझा पेट खराब होने से उसकी धोती में गंदगी लग गई। शर्म के मारे हड़बड़ी में बूढ़ा ढोल छोड़कर भाग गया।
फिर क्या था, सब खुश हो गए। ढोल को संभाल कर अच्छी तरह से कोने में रख दिया। जब सब इधर-उधर काम करने चले गए, तब मौका पाकर छोटकी बहन ढोल से निकली। घर-द्वार की सफाई की और खा-पीकर फिर ढोल में घुस गई। रोज-रोज ऐसा देखकर सब चकित थे कि आखिर ऐसा कौन करता है? एक बार चुपके से किसी ने देखा, तो सब पता चल गया। सब भाइयों ने मिलकर एक दिन उसे पकड़ लिया और ढोल को पलटकर फोड़ दिया। छोटकी बहन ढोल से आजाद हो गई। फिर से सब राजी-खुशी से रहने लगे।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
