short stories
short stories

Short Romantic Story: शीतल रोज़ सुबह की तरह मेट्रो में सफर कर रही थी। चेहरे पर हल्की थकान, हाथ में ऑफिस का बैग, और मन में वही रोज़ का प्रश्न – क्या इस भागदौड़ में कोई ऐसा है जो संवेदनाओं को समझ सके?
मेट्रो के कोने में बैठे एक बुज़ुर्ग सज्जन, सफेद खादी कुर्ता और धोती पहने, मुस्कान के साथ पास खड़े युवक से पूछ रहे थे –
“बेटा, तुम्हारी मां अब भी तुलसी में जल देती हैं?”
युवक की आंखों में एक सहज चमक उभरी, “हां दादाजी, रोज़… और जब मैं ऑफिस से लौटता हूं, मां आज भी मेरी नजर भी उतरती है और आरती भी।”
शीतल अनायास ही सुन रही थी। उसके भीतर कुछ जागा – जैसे इस भीड़ में कहीं कोई सजीव संस्कृति सांस ले रही हो।
अगले स्टेशन पर भीड़ और बढ़ी। धक्कामुक्की में एक युवक ने शीतल को कंधे से धक्का दे दिया, “साइड होइए मैडम! सबको देर हो रही है।”
उसी युवक ने, जो बुज़ुर्ग से बात कर रहा था, उसने आगे आकर शांति से कहा, “भाईसाहब, थोड़ा धैर्य रखिए… भीड़ में भी इंसानियत ज़रूरी है।”
शीतल ने पहली बार उसकी ओर ध्यान से देखा। उसकी आंखों में कोई बनावट नहीं थी – बस एक सहज, सच्चा भाव।
इसके बाद रोज़ की मुलाकातों में कभी हल्की मुस्कान, कभी आंखों से नमस्ते – बस इतना ही।
युवक का नाम आर्यन था।

आर्यन किसी से परिचय मांगता नहीं, न किसी का रास्ता रोकता। भीड़ में बुज़ुर्गों की मदद करता, किसी बच्चे को गिरने से बचाता। उसका व्यवहार जैसे भारतीय संस्कृति की उन जड़ों से जुड़ा था, जहां सेवा और सम्मान स्वाभाविक होते हैं।

एक दिन शीतल ने हिम्मत कर पूछा, “आर्यन, क्या आजकल भी बिना किसी स्वार्थ के कोई रिश्ता संभव है?”

आर्यन ने मुस्कुरा कर कहा, “जहां प्रेम में अधिकार नहीं, वहां अपनापन बस जाता है। हमारे देश की संस्कृति में प्रेम कभी मांगने की वस्तु नहीं रहा – वह तो राधा की तरह समर्पण था, मीरा की तरह भक्ति… जहां प्रेम देह से नहीं, आत्मा से जुड़ता है।”

शीतल उस दिन पहली बार समझ पाई कि असली प्रेम सिर्फ पाने का नहीं, देने का भाव है।

कुछ दिन बाद आर्यन को अपने गांव लौटना पड़ा। जाते समय शीतल ने कहा, “तुमसे यह सीखा… कि रिश्तों में आत्मसम्मान और भावनात्मक जुड़ाव सबसे महत्वपूर्ण होता है।”

आर्यन ने शांत स्वर में कहा, “जहां प्रेम में त्याग है, वहां विरह नहीं होता… बस स्मृतियां साथ रहती हैं।”

मेट्रो अपने रास्ते पर दौड़ती रही… और शीतल के भीतर एक नई यात्रा शुरू हो चुकी थी।

कभी-कभी अनकहे रिश्ते, बिना नाम के प्रेम – सबसे गहरे होते हैं। यही भारतीय संस्कृति की खूबसूरत सीख है – जहां प्रेम देह नहीं, आत्मा का आदर होता है।