भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
Self Respect Story: शांति का जन्म एक बहुत ही रईस परिवार में हुआ था। पांच पुश्तों में घर में बेटी हुई, इस वजह से वह बहुत नाजों से पली-बढ़ी थी। दूध-दही के भंडार हुआ करते थे। हर जन्मदिन पर उसे दूध से नहलाया जाता था। उसकी शादी धामपुर के बड़े जमींदार के बेटे मोहन से हुई। ससुराल इतना अमीर था कि घर में सोने की ईंटें हुआ करती थी।
शांति के देवर को जुआ और सट्टा खेलने की आदत थी। इस वजह से धीरे-धीरे घर की हालत बिगड़ती गई, घर के बर्तन तक बिक गए। खाने के भी लाले पड़ गए। शांति अपने पति और पाँच बच्चों के साथ शहर आ गई। इन पाँच बच्चों में शांति की एक बाल वध भी थी। मोहन ने शहर में मुनीम की नौकरी कर ली। पूरा परिवार एक कमरे के छोटे से घर में रहता था, सबका गुजारा मुश्किल से ही हो पाता था। उसने कई बार बच्चों को सत्तू का आटा घोलकर पिला कर ही सुलाया था और खुद तो भूखी ही थी। उस दिन पड़ोसी के बच्चे को दूध पीता देख शांति का बच्चा दूध पीने की जिद करने लगा और रोते-रोते ही सो गया। दूध से नहाने वाली शांति के जीवन में ऐसा कभी समय आएगा उसने सोचा नहीं था। आंखों में आंसू भरे हुए थे, एक मां का मन रो रहा था। अपने बच्चों का दु:ख शांति से देखा नहीं जा रहा था, पर करें तो क्या करें। मोहन जमींदार खानदान का था, उसे शांति का बाहर काम करना मंजूर नहीं था।
घर की हालत बिगड़ती देख शांति ने सिलाई सीखने का मन बनाया। मोहन के जाने के बाद बच्चों को घर में बंद कर के बाहर से ताला लगाकर वह सिलाई सीखने 2 घंटे के लिए जाने लगी। फिर उसने पड़ोसी से मशीन उधार लेकर लोगों के लिए कपड़े सिलना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसकी आमदनी होना शुरू हो गई और घर खर्च में आसानी होने लगी। सभी उसकी सिलाई किए हुए कपड़ों की बड़ी तारीफ किया करते थे। उसके हाथ में अलग ही हुनर था। लोगों के कपड़ों के बचे हुए कतरन से वह अपने बच्चों के कपड़े सिल दिया करती थी। मोहन के आने का जैसे ही समय होता तब तक सब कुछ वापस छुपा कर रख दिया जाता था।
बच्चे भी काम में मदद करते थे। दिन में वह दुकान में काम पर जाते थे और रात में पढ़ाई करते थे। बिजली का खर्च बचाने के लिए, वे गली के कोने पर लगे हुए स्ट्रीट लैंप के नीचे पढ़ाई करते थे।
मोहन का बेटा राजू पढ़ने में बहुत अच्छा था। वह आगे पढ़ना चाहता था, लेकिन पढ़ाई के लिए फीस देने के पैसे मोहन के पास नहीं थे, इसी परेशानी में वह बहुत दु:खी था। रईसी में पहले मोहन के लिए नौकरी करना आसान नहीं था। मालिक छोटी-छोटी सी बात पर ही उसे जोर से फटकार लगा देता था। हर बार अपमान का चूंट पीकर रह जाता था। उस दिन भी छोटी-सी बात पर उसे जोर से डांट पड़ी, आधा दिन काम करने के बाद सर में दर्द होने के कारण मोहन काम से जल्दी घर आ गया और उसने घर में चल रहे सिलाई के काम को देख लिया। उसके अहंकार को चोट पहुंची, उसका गुस्सा उस वक्त सातवें आसमान पर था। शांति चुप रही, उसने अगले दिन सुबह तक का इंतजार किया, जब मोहन का गुस्सा थोड़ा शांत हो चुका था, तब उसने बड़े प्यार से मोहन को समझाया कि हम दोनों सुख-दुःख में साथ के भागी हैं। वह मिलकर अगर बच्चे को पढ़ाए तो बहुत अच्छा इंसान बना सकते हैं।
मोहन को भी शांति की बात सही लगी। वह शांति की समझदारी और बुद्धि से चकित भी था, साथ ही अपनी गलती पर शर्मिंदा भी था।
शांति की बाल वध उसके साथ सिलाई के काम में हाथ बटाया करती थी। शांति ने बाद में उसे भी फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करवाया और उसका बुटीक खुलवा दिया।
मोहन ने कुछ समय बाद अपने बचत किये हुए पैसों और पेंशन से आए हुए पैसों से मिलाकर एक सुंदर-सा घर बनवाया। घर का काम पूरा हो चुका था। बस घर के बाहर नेम प्लेट लगाना बाकी था। एक ग्रेनाइट के पत्थर पर सुनहरे अक्षरों से नाम लिखकर घर के बाहर लगाया जाना था। एक दूर के रिश्ते की काकी और पड़ोस वाली मौसी भी आई हुई बैठी थी। सभी अपनी-अपनी ओर से घर का नाम सुझा रहे थे। काकी ने कहा घर का नाम ‘मोहन वास’ रख दो तो पड़ोस वाले चाचा ने कहा कि ‘मोहन धाम’ ज्यादा अच्छा लगेगा। मोहन सब की बात चुपचाप सुन रहा था। तभी मोहन का बेटा राजू बोला, ‘घर का नाम शांति मोहन निवास’ होना चाहिए। इतना सुनते ही सब उसकी ओर देखने लगे। शांति की आंखों में आंसू आ गए, यह आंसू इस खुशी के थे कि उसने अपने बेटे को सही संस्कार और सही परवरिश दी है। उसने अपने बेटे को औरतों का सम्मान करना सिखाया, उन्हें बराबरी का दर्जा देना सिखाया है। औरत जीवन भर अपने तन-मन-धन से सभी को बहुत स्नेह और प्रेम देती है और सब की जान लगाकर देखभाल करती है। कभी सोचती भी नहीं है कि उसे बदले में कुछ चाहिए, लेकिन अगर उसे सम्मान दिया जाए, इसकी तो उसे अवश्य खुशी होगी।
पड़ोस के चाचा, रिश्ते वाली काकी सभी राजू की बात का विरोध करने लगे, कहने लगे यही समाज की परंपरा है, हमारा समाज पुरुष-प्रधान समाज है, तुम औरतों को इतना सर पर चढ़ा रहे हैं और अन्य बातें कहे जा रहे थे, तभी मोहन कड़क आवाज में बीच में बोला, मैं राजू की बात से बिल्कुल सहमत हूं, इस घर का नाम ‘शांति मोहन निवास’ ही रखा जाएगा। यह घर जितना मेरा है उतना ही शांति का भी है। शांति ने जीवन भर मेरा बराबरी से साथ दिया है तो घर के नाम पर उसका हक क्यों नहीं है!
राजू अब आईएएस ऑफिसर बन गया है, मोहन इसका श्रेय शांति को ही देता है। शांति इतने अमीर परिवार की और लाड प्यार में पली थी लेकिन कठिन समय में उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने जिंदगी की हर मुसीबत का सामना बहुत ही समझदारी और सकारात्मकता के साथ किया।
परिवार की स्थिति बहुत अच्छी हो चुकी थी। अब शांति हर दिन सुबह उठकर बालकनी में बैठकर अखबार पढ़ा करती है और खुद को दुनिया भर की खबरों से सजग रखती है। दिन का समय उसने समाज कल्याण के लिए लगा रखा था। उसने अपने आप को कुछ एनजीओ के साथ जोड़ रखा था और गरीब महिलाओं की मदद करती थी।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’