एक जमींदार के तीन बेटे थे। जमींदार की अचानक तबीयत खराब हो गई। उन्होंने अपने तीनों बेटों को बुलाया तथा तीनों को उनकी इच्छानुसार बंटवारा कर दिया। उनका छोटा बेटा नौ परिवहन से जुड़ा व्यवसाय करता था। उसे तीनों नौका दे दी तथा एक अंगूठी भी दी और कहा, बेटा इस अंगूठी को हमेशा सम्हाल कर रखना यह तुम्हारे जीवन में संकट की सलाहकार साबित होगी।
इसे तुम अपना गुरु समझना। इसमें एक रहस्य छिपा हुआ है।” यह कहकर पिता चल बसे। छोटे बेटे के तीन जहाज पर ऐसा समुद्री तूफान उमड़ कर आया कि कतारबद्ध चल रहे तीनों जहाज एक साथ डूब गए। उसकी हालत विक्षिप्तों जैसी हो गई। सागर के किनारे अपने टूटे-फूटे जहाजों के टुकड़ों को देखकर वह रो पड़ा, टूट सा गया। ऐसे में उसे अपने पिता की अंगूठी की याद आई। अंगूठी चमक रही थी। उसने चारों ओर से अंगूठी देखी। वह समझ नहीं पा रहा था तो उसने अंगूठी को घिस कर पता किया कि क्या खास बात है। घिसने पर उसे कुछ लिखा हुआ नजर आया।
मैग्नीफाइंग ग्लास लाकर उसने पढ़ने की कोशिश की तो वह चौंक गया। उसमें लिखा था कि मेरे प्यारे बेटे चिंता मत कर यह वक्त भी गुजर जाएगा। ‘दिस टू विल पास।’ यह भी बीत जाएगा। उसने एक लंबी सांस छोड़ी और उन टुकड़ों को छोड़कर वहाँ से घर लौट आया। जिस व्यक्ति ने जिंदगी में यह पाठ पढ़ लिया उसी का नाम है शांति, उसी का नाम है संतोष। वह सम्हला। उसने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना नया व्यापार शुरू किया तथा सफल हुआ।
ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं– Indradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)
