Saraswati, Lakshmi Ganga ko shaap
Saraswati, Lakshmi Ganga ko shaap

Bhagwan Vishnu Katha: सृष्टि के आरम्भ में लक्ष्मी सरस्वती और गंगा तीनों ही भगवान् विष्णु की पत्नियाँ थीं । एक बार सरस्वती को लगा कि भगवान् विष्णु गंगा को उनसे अधिक चाहते हैं । तब वे क्रुद्ध होकर गंगा को बुरा-भला कहने लगीं । लक्ष्मी ने बीच-बचाव किया । इस पर उन्हें गंगा की पक्षधर कहकर सरस्वती ने आवेश में आकर उन्हें वृक्ष बनने तथा गंगा को नदी बनने का शाप दे दिया ।

लक्ष्मी ने इस शाप को शांतिपूर्वक ग्रहण कर लिया । किंतु गंगा चुप नहीं रहीं । उन्होंने भी सरस्वती को शाप देते हुए कहा -“सरस्वती ! तुम भी पृथ्वी पर जाकर नदी बन जाओ ।”

तीनों देवियाँ एक-दूसरे से झगड़ रही थीं, तभी भगवान् विष्णु वहाँ आ गए । उन्होंने तीनों को अपने निकट बुलाया और प्रेम से बोले -“लक्ष्मी ! परब्रह्म परमात्मा लीलावश जो करते अथवा करवाते हैं, वह अच्छा ही होता है । अब सरस्वती के शाप से पहले तुम राजा धर्मध्वज के यहाँ उसकी पुत्री तुलसी के रूप में प्रकट होगी । जहाँ मेरे अंश से उत्पन्न दैत्य शंखचूड़ से तुम्हारा विवाह होगा । फिर भारत में तुम वृक्षरूपा होकर तुलसी के नाम से प्रसिद्ध होगी ।”

इसके बाद भगवान् विष्णु गंगा से बोले -“प्रिय ! तुम पापियों के पापों का नाश करने के लिए पवित्र नदी बनकर पृथ्वी लोक में रहोगी । तपस्वी राजा भगीरथ की कठोर तपस्या से तुम्हें पृथ्वी लोक में जाना होगा । धरातल पर तुम्हारा विवाह मेरे अंशरूप समुद्र से होगा ।”

फिर उन्होंने सरस्वती से कहा -“देवी ! गंगा का शाप स्वीकार करके तुम अपनी एक कला से नदी बनकर पृथ्वी पर निवास करो । और पूर्ण अंश से ब्रह्माजी के पास उनकी पत्नी बनकर रहो । यहाँ मेरे पास केवल लक्ष्मी ही अपने पूर्ण अंश से विद्यमान रहेंगी ।”

यह कहकर भगवान् विष्णु चुप हो गए । तीनों देवियाँ दु:खी होकर अपने शाप से उद्धार की प्रार्थना करते हुए बोलीं -“प्रभु ! आपके श्रीचरणों से अलग होकर हम क्षणभर भी जीवित नहीं रह सकतीं । दयानिधान ! आप परम दयालु हैं । हमें इस शाप से मुक्ति प्रदान करें ।”

उनकी करुण विनती से द्रवित होकर श्रीविष्णु बोले -“देवियो ! शाप कभी निष्फल नहीं होता । उसे तो भोगना ही पड़ता है । किंतु मैं तुम तीनों में समानता कर देता हूँ । सरस्वती अपने एक अंश से नदी बनकर पृथ्वी पर जाएँ, आधे अंश से ब्रह्माजी के पास पधारें और पूर्ण अंश से मेरे पास रहें । देवी गंगा जगत् को पवित्र करने के लिए पृथ्वी पर जाएँ और पूर्ण अंश से मेरे पास सुशोभित रहें । कलियुग के पाँच हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर तुम्हारा उद्धार हो जाएगा और तुम पुन: मेरे पास लौट आओगी ।”

इस प्रकार शापवश लक्ष्मी सरस्वती और गंगा को पृथ्वी पर अवतार लेने पड़े।

ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)