saraay samajha thahar gaya
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एक बार एक बटोही घूमता-घामता किसी बादशाह के महल में घुस गया और अपनी गठरी नीचे रखकर बादशाह के पलंग पर जा लेटा और सो गया।

जब बादशाह महल में आया और एक अनजान आदमी को अपने पलंग पर सोया हुआ देखा तो वह बहुत लाल-पीला हुआ और बोला- “अरे मूर्ख! तू कैसे घुस आया है मेरे महल में?”

बटोही ने जवाब दिया- “बाबा! तू इतना लाल-पीला क्यों होता है? मैं इस हवेली को सराय समझा था।”

इस जवाब से उसका क्रोध और भी भड़का और बोला- “अबे! सराय किसे कहते हैं, बता?”

बटोही- “अच्छा बाबा! यह तो बतला दे कि जब तू नहीं था तब इस हवेली में कौन रहता था?”

बादशाह- “मेरे पिता।”

बटोही- “तेरे पिता से पहले कौन रहता था?”

बादशाह- “मेरे दादा।”

बटोही- “और दादा से पहले?”

बादशाह- “मेरे परदादा।”

इस तरह जब बादशाह अपनी सात पीढ़ियां बता गया, तो उस बटोही ने कहा- “ओ बाबा! जिस घर में इतने लोग रह-रहकर चले गये यह सराय नहीं तो और है क्या? तू भी किसी दिन इसी तरह चला जायेगा। मेरी समझ में यह नहीं आता कि तू इस तरह हवेली को क्योंकर अपनी बतला रहा है?”

बादशाह के मन पर बटोही की बात का बड़ा प्रभाव पड़ा और प्रसन्न होकर उसने बटोही को पुरस्कार देकर विदा किया।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)