Sapno ka Istifa
Sapno ka Istifa

Hindi Sad Story: देविका ने कभी सोचा था कि कितना प्रेम करने वाला ससुराल मिला है, लेकिन धीरे-धीरे उसका सपना ‘सपना’ ही रह गया। पिछले 10 सालों से प्राइवेट नौकरी कर रही थी। एक पीआर कंपनी में अच्छे खासे पैकेज पर थी। जब ससुराल वाले बहुत प्रेम जताते थे, तो उसे लगा कि क्यों न मैं अब नौकरी की बजाए खुद का व्यापार शुरू करूं। उसने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। तब तक तो सब सही था। लेकिन उसके बाद ससुराल वालों के रंग बदलने लगे। सालों से नौकरी कर एक बड़ी टीम संभालने वाली देविका को ‘घर की नौकरानी’ जैसा सलूक मिलेगा उसने सोचा न था।

इस्तीफ़े के चौथे दिन से जब वह घर पर रहकर अपने लैपटॉप से खुद की पीआर कंपनी खोलने की सारी योजनाएं पूरी करने में लगी थी, तब से ही शुरू हो गई ‘किचन की राजनीति।’ जहां सास ने पहले काम बांट रखे थे कि बेटा तुम नौकरी करती हो। जितना हो उतना कर लेना, बाकी घर का काम मैं देख लिया करूंगी..लेकिन देखो! समय कैसे पलटा? वही सास अब किचन और घर के कामों में देविका की कमियां निकालने लगी। ससुर सब्जियां लेकर आते तो पहले तो सास का ही काम था कि वह फ्रिज में सब जमा कर रखेगी क्योंकि वह अपने हिसाब से करना चाहती थी लेकिन ये क्या! ताना मिलने लगा।

सास चिल्लाई, “चार घंटे से सब्जी बाहर रखी है, लेकिन महारानी को फुरसत नहीं कि वह फ्रिज में जमा कर रख दे।”

देविका ने सफाई देते हुआ कहा, “मम्मीजी! आप ही हमेशा रखते हो, इसलिए मैंने नहीं रखा। मुझे लगा कि आपको अपने तरीके से रखना पसंद है। इसलिए…”

सास का मुंह बन गया और बोली, “बहाने बनाने का कह दो बस!”

तब तो हद ही हो गई। जब हर रात सास दही जमाने के लिए रखती है, लेकिन उस रात नहीं रखा। सुबह देविका के सामने आते ही बोली, “तुमसे एक दही जमाने के लिए नहीं रखते बनता क्या?”

देविका चौंक गई, “अरे! आप मुझे बोल देते ना मम्मी जी तो जमा देती। मुझे क्या पता कि ये करना है। आप करते हो रोज यह इसलिए..।”

“पता नहीं किस जन्म का दुख भोगना पड़ रहा है।” सास के ये शब्द सुनकर देविका की आंखों में आंसू आ गए।

वह घबरा गई। अब तो हर काम करने और न करने में डरने लग गई। अब तक तो दाल बनाते समय बघार में वह टमाटर का पल्प डालती आई और सास ने कभी कुछ नहीं कहा था लेकिन अब तो कहने लगी, “हमारे यहां ऐसा नहीं होता है। कुकर में ही टमाटर काट के डाला करो। कुछ सीखकर नहीं आई क्या मायके से।”

“क्या ये सुनने के लिए शादी की थी मैंने, वही पुराने तरीके जो मैं कभी किसी के लिए सुना करती थी कि हमारे समय सास ऐसे व्यवहार करती थी।” देविका के मन में कई बातें चल रही थी।

वह समझ नहीं पा रही थी कि सास को ‘खुश’ कैसे किया जाए। ‘किचन की राजनीति’ ऐसी चली कि अपनी पीआर कंपनी की पूरी योजना डिब्बाबंद कर दी। अरे! आत्मविश्वास जो टूट गया था। लग रहा था घर का एक काम सही से नहीं कर रही, पीआर कंपनी क्या चलाऊंगी।

एक तो नौकरी छोड़ कर बैठ गई और ऊपर से जैसे देविका के “अस्तित्व” पर ही सवाल उठने लगा। पति को बोले भी तो क्या अभी। खुद में ही कमी देखने लगी थी कि शायद “मैं ही नहीं कर पा रही हूं।”

नौकरी छोड़ने के बाद ये दो महीने जैसे-तैसे बीते। 12वीं के बाद से नौकरी कर रही थी देविका। पहले कॉलेज करते हुए पार्ट टाइम भी किया करती थी। यानी अनुभव तो बहुत था और आत्मविश्वास भी भरपूर लेकिन ये सब क्या हो गया?

पति ने ऑफिस से फोन किया कि बैक का काम कर देना देविका प्लीज़। उसने हामी भर ली कि ठीक है कर आऊंगी। प्राइवेट बैंक के दरवाजे पर जैसे ही पहुंची, पेट में अजीब सी गुदगुदी हुई। ये गुदगुदी वास्तव में डर और घबराहट थी। बैंक के अंदर दाखिल हुई, तो वहां लड़कियों को काम करते हुए देखा तो सोचने लगी ये लोग कैसे काम कर लेते हैं। मतलब कितने अच्छे से बातें कर रहे, कंप्यूटर चला रहे, चीज़ों को हैंडल कर रहे। अच्छे और व्यवस्थित ड्रेस पहनकर ऑफिस में काम करते हुए इन्हें देखकर देविका ऐसा महसूस कर रही थी जैसे कि उसने कभी काम ही ना किया हो। आत्मविश्वास की ऐसी धज्जियां उड़ना बहुत बड़ा दर्द पैदा कर रही थी।

ये दिल तोड़ने वाला नज़ारा था क्योंकि सालों से बाहर काम करने वाली, लोगों को अपनी बातों से प्रभावित करने वाली और जो उसे मिलता तारीफ किए बिना नहीं रहता…ऐसी देविका आज खुद को ‘गंवार’ महसूस कर रही थी।

एक लड़की के लिए उसका आत्मविश्वास ही सबसे बड़ा गहना है लेकिन देखो! कैसे टूट गई देविका! रास्ते भर सोचते हुए आई, “ये क्या जिंदगी हो गई है मेरी? आज तक तो सुना था कि ‘सास’ कितनी खतरनाक होती है लेकिन अब समझ आया कि “औरत को औरत नहीं समझती” वाली बात क्यों सच है। ऐसी क्या गलती थी मेरी। सब तो कर रही थी मैं, लेकिन बस ये नहीं समझ पाई कि इनको खुश कैसे रखूं।“

रात भर करवटें बदलती रही। पति को बता नहीं पाई कि बैंक जाकर उसने खुद कहां पाया। समझ नहीं पा रही थी कि सास चाहती क्या है। कप उल्टा रखूं तो बोलती है कि हमारे यहां सीधा रखा जाता है। कप सीधा रखूं तो कहती है कि उल्टा रखा करो। कुछ भी कर लूं लेकिन कमी निकाल ली जाएगी।

कोई तो बताओ कैसे खुद के “अस्तित्व” को वापस पाऊं।

“मैं खो गई हूं। मैं अब ‘मैं’ नहीं रही। ‘बेटी’ से ‘बहू’ बनने पर क्या हम खुद से ही दूर हो जाते हैं। क्या एक कम पढ़ी लिखी औरत जिसने पति और बच्चों के अलावा किसी के साथ जीवन नहीं बिताया हो वो एक पढ़ी-लिखी, आत्मविश्वास से भरपूर और सैकड़ों तरह के लोगों के साथ डील करने वाली खुद को इतना कमतर महसूस करेगी कि शायद जीने लायक भी नहीं हो।”

हे ईश्वर! शक्ति दे मुझे। मेरे “अस्तित्व” को लौटा दे। चमत्कार कर। मैं जीना चाहती हूं। लेकिन ऐसा जीना मुझे मंजूर नहीं है।

देविका की ये ईश्वर से प्रार्थना कब सुनी जाएगी ये तो देखना पड़ेगा। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि ‘आत्मविश्वास’ और ‘आत्मसम्मान’ के बिना जीना कितना मुश्किल है!

राधिका शर्मा को प्रिंट मीडिया, प्रूफ रीडिंग और अनुवाद कार्यों में 15 वर्षों से अधिक का अनुभव है। हिंदी और अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छी पकड़ रखती हैं। लेखन और पेंटिंग में गहरी रुचि है। लाइफस्टाइल, हेल्थ, कुकिंग, धर्म और महिला विषयों पर काम...