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अमित के बाबूजी का इलाज एक निजी अस्पताल में हुआ। उसने कम्पनी में मेडिकल बिल उठाने के लिए आवेदन किया। बिल के साथ एक शपथ पत्र अमित ने लगाया जिसमें उसने लिखा- “मैं अमित कुमार पुत्र हरीश कुमार जन्म से ही मैं अपने पिता हरीशकुमार जी के साथ रह रहा हूँ।”

कम्पनी ने उक्त शपथ पर आपत्ति उठाते हुए बिल क्लेम आवेदन पत्र वापस लौटा दिया। अमित ने कारण जानना चाहा तो बताया गया कि क्योंकि आप अपने पिता के पास रहते हो जबकि नियमानुसार आपके पिताजी आपके पास रहने चाहिए। इस आपत्ति पर एक क्लर्क ने सुझाव देते हुए कहा, “सर आप इस शपथ पत्र को सुधार कर नया बनवा लो।

फिर मेडिकल क्लेम उठ जाएगा।” इस पर अमित ने मुस्कुराते हुए कहा- “चंद रुपयों के लिए मैं झूठा शपथ पत्र नहीं बनवा सकता। सच्चाई यही है कि मैं आज भी अपने पिताजी के साथ ही रहता हूँ, उनको अपने पास रखने की हैसियत नहीं है मेरी।” अमित का जवाब सुन क्लर्क उसके संस्कारों के सामने नतमस्तक हो गया।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)