Rudi ke Virudh
Rudi ke Virudh

Hindi Best Story: बादल ने बरखा के साथ पुराने तरीके से सगाई करने से साफ मना कर दिया था। उसने ऐसा तर्क दिया था कि बड़ों की बोलती बन्द हो गयी थी।

पुरानी रूढ़ियों की जकड़ाहट आज की उच्च शिक्षित नयी पीढ़ी के युवाओं को स्वीकार नहीं होती। उनका कहना होता है कि हमें उसमें कोई विशेष वैज्ञानिकता नहीं दिखती है। हम ऐसे पुराने रीति-रिवाजों को जबरन ढो नहीं सकेंगे। हां, उसमें थोड़ा-सा परिवर्तन कर दें तो हम मान लेंगे। इससे
दूसरे पक्ष को भी न केवल आशातीत लाभ होगा, बल्कि हम स्वयं अपनी सकारात्मक भावना, समझ और विश्वास का परिचय देते हुए सामने वाले को भी अंधेरे में रखने से बचा लेंगे।
बादल सदैव प्रगतिशील विचारों को महत्त्व देता आया था। दकियानूसी विचार उसके पल्ले कभी नहीं पड़ते थे। उसने उनका कभी समर्थन ही नहीं किया।

उसकी बारी आयी है फिर भी समझौता किसलिये। आंखें मूंदे इतनी मुरव्वत क्यों करे। उसमें कोई विशिष्टता हो तब तो। उसे ज्ञात था कि बिना विद्रोह किये आगे नहीं बढ़ा जाता है। वरना रूढ़ि की बेड़ियां पथ को सुगम बनाने की बजाय दुर्गम करती हैं। वह विद्रोह का बिगुल फूंकना आवश्यक समझ गया था। बादल ने बरखा के साथ पुराने तरीके से सगाई करने से साफ मना कर दिया था। उसने ऐसा तर्क दिया था कि बड़ों की बोलती बन्द हो गयी थी। बड़ों को अपने लड़के की जिद के सामने झुकना ही पड़ा था। क्योंकि उसमें एक व्यावहारिक सच्चाई छुपी हुई थी। यही सच्चा मानवीय
आदर्श था। किसी भी भावनात्मक रिश्ते की मजबूती के लिये यह सटीक निर्णय अनिवार्य भी था।
उस दिन ठीक बरखा की सगाई का सुन्दर-सा आयोजन था। पूरे घर भर में प्रसन्नता का वातावरण था। लड़के वालों के आवभगत की पूरी तैयारी की गयी थी। बरखा के पिता रविचन्द ने अपने रिश्तेदारों को भी बुलवा लिया था। सब कोई बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे लड़के वालों की।
कोई भी गाड़ी की आवाज सुनते तो चौंक ही जाते थे सब।

अभी दो माह पहले की ही तो बात थी। लड़के वाले बरखा को देखकर गये थे। बरखा का मंगेतर दूल्हा था बादल। उसने कितनी खुशी से हामी भी भर दी थी। तब तो बरखा को नापसन्द करने का सवाल
ही नहीं था। लड़की में खूबियां भी तो खूब थीं। गोरा मुखड़ा था। सुन्दर नाक-नक्श थे। सुशीला थी। भोजन पकाने से लेकर हर प्रकार के गृह कार्य में दक्ष थी। कला स्नातक तक शिक्षित थी। साथ में
कंप्यूटर आपरेटर का जाब भी था।

देखा जाये तो आज के मध्यमवर्गीय प्रगतिशील परिवार में केवल पति का नौकरीशुदा होना पर्याप्त नहीं है। खास तौर से उस आड़े वक्त के लिये भी, जब पति की नौकरी में अचानक कोई व्यवधान
उत्पन्न हो जाये। कभी कोई अप्रिय घटना हो जाये या फिर किसी प्रकार की और कोई विपत्ति आन पड़े। पत्नी को भी स्वयं में सक्षम होना चाहिये। उसमें भी हालात से निपटने की कूबत होनी चाहिये। उसके पास भी चार पैसे की आमदनी होनी चाहिये। ससुराल में किसका मुंह ताकती रहेगी। पति पर हरदम आर्थिक रूप से निर्भर रहना और उस पर दबाव बनाये रखना भी अच्छी बात नहीं मानी जाती।
इसलिये भी बरखा खुद कंप्यूटर आपरेटर का जाब करती थी।

कहा भी जाता है कि पति-पत्नी गृहस्थजीवन रूपी गाड़ी के दो पहिये होते हैं। यदि एक पहिया क्षतिग्रस्त हो जाये तो गाड़ी लड़खड़ा सकती है। उसका संतुलन बिगड़ सकता है। दोनों पहियों को बराबर मजबूत होना चाहिये। रास्ते कितने भी उबड़खाबड़ आ जायें, गाड़ी ठेलठाल कर आगे निकल
लेगी। रुकने का नाम ही नहीं लेगी।
लड़का बादल भी वाणिज्य में स्नातकोत्तर था। उसकी एक बैंक में स्थायी नौकरी थी। चार अंकों का वेतनमान था। परिवार में बड़ा लड़का वही था। उससे छोटे एक भाई और एक बहन थे। वह अपने मातापिता के साथ रहता था। उसके पिता सुरेन्द्रनाथ कभी तृतीय वर्गीय कर्मचारी हुआ करते थे। इन दिनों वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुके थे। उनको बादल का विवाह हर स्थिति में कर ही देना था इस
साल।

उसके पिता सुरेन्द्रनाथ को बैंक की नौकरी के विषय में पुख्ता अन्देशा था कि उस संस्थान के कर्मचारियों का स्थानान्तरण कभी भी और कहीं भी हो सकता था। बादल जब दूसरे शहर में जायेगा। तब उसे अकेला रहना पड़ेगा। एक जीवनसंगिनी के बिना उसकी दिनचर्या कैसे चलेगी। उसे समय पर खाने-पीने और सोने-उठने में भारी दिक्कत होगी। वैसे भी बादल की उम्र प्रणय सूत्र में बंधने योग्य तो हो ही गयी थी। इस बात को उसके माता-पिता को गम्भीरता से समझना पड़ गया था। क्योंकि बड़े के बाद दो और के भी वैवाहिक बोझ को उनको हल्का करना था।

एक संयोग की बात थी। सुरेन्द्रनाथ को उसके किसी परिचित ने ही रविचन्द के घर भेजा था और कहा था कि आपके बादल के साथ रविचन्द की बड़ी बिटिया का विवाह करना ठीक रहेगा। बादल और बरखा या बरखा और बादल, कैसा भी कहिये। इस नाम में बड़ा ही मैचिंग है! नि:सन्देह बरखा एक गुणवती और योग्य लड़की थी। रविचन्द का भी परिवार बिल्कुल सुरेन्द्रनाथ के परिवार के जैसा
साधारण था। सो सुरेन्द्रनाथ ने अपने लड़के के लिये रिश्ते की बात इन्हीं से चलाने में बड़ी रुचि ली थी। बादल भी अपने माता-पिता के साथ बरखा को देख चुका था। बरखा के माता-पिता भी उनका
घर देख आये थे। दोनों पक्षों में रजामन्दी हो गयी थी। सबने रिश्ते पर मुहर लगा भी दी थी।

लेकिन बरखा के माता-पिता को विवाह करने की जल्दी थी। कुछ अधिक ही चिन्तित रहते थे। कम से कम बिटिया की सगाई तो जल्दी कर ही देते। अन्तत: सगाई की तिथि तय कर ली गयी थी। इस
बात पर लड़की पक्ष में अभी से बड़ी खुशी थी। उनको आभास हो गया था कि वे सफलता की ओर आगे बढ़ गये हैं। तनाव का एक पायदान थोड़ा नीचे खिसक आये हैं। इसके बाद की स्थिति तो हल्की
हो जाने वाली थी। तभी मोबाइल में काल आया, ‘हां विचन्द जी, नमस्कार, मैं सुरेन्द्रनाथ बोल
रहा हूं। बस-बस पहुंचने में मात्र दस मिनट लगेंगे, घबराइये मत। हम लोग घर से निकल चुके हैं। जी-जी बादल, जी उसकी चिन्ता मत करिये, कुल सात लोग आ रहे हैं भाई साहब।’
रविचन्द ने भी प्रत्युत्तर दिया, ‘जी-जी महोदय, आइये-आइये। हार्दिक अभिनन्दन है आप लोगों का हमारे आशियाने में।’ फिर उन्होंने लड़के वालों के आने की जानकारी घर में सबको दे दी।
बरखा तैयार हो चुकी थी। दूसरे लोग भी तैयार हो चुके थे। व्यवस्था में कोई कमी नहीं की गयी थी। रविचन्द ने बच्चों को मोबाइल में सबकी फोटो लेने के लिये आजाद कर दिया था। जितनी चाहें फोटो खींच सकते थे। पर फोटोज ठीक से खींचना होगा। बिगड़ना बिल्कुल नहीं चाहिये। भई, फोटोज दूसरों को भी तो दिखाना है न।

इंतजार की घड़ियां समाप्त हुई थीं। ठीक दस मिनट पर लड़के वालों की गाड़ियां आ गयीं। सातों मेहमान नीचे उतरे। सबको घर के बैठक कक्ष में ले जाया गया। आदरपूर्वक बिठाया गया। और
क्रमश: अभिवादन स्वागत-सत्कार की पूरी औपचारिकताएं निभायी गयीं। बरखा के घर वालों ने सुरेन्द्रनाथ से निवेदन किया, ‘भाई साहब, हमारी बरखा बिटिया और बादल बेटा की जोड़ी खूब
जमेगी। शायद ऊपर वाले ने ऐसी खूबसूरत जोड़ी पहले से बनाकर भेजी है। हम लोग तो इस होने जा रहे रिश्ते से बहुत-बहुत खुश हैं।’

बादल के सगाई करने से मना करने पर उधर बरखा के दिल को ठेस पहुंच रही थी। उसका मन रूआंसा हो गया था। लगता था अब-तब वह भी बरस पड़ेगी। उसकी रुलाई फूट पड़ेगी।

लड़के वालों की ओर से सुरेन्द्रनाथ के बड़े भाई ने कहा, ‘भाई साहब, किस्मत भी कोई चीज होती है। आदमी लाख कोशिश कर ले। किन्तु भाग्य में जहां होना लिखा रहेगा वहीं उसी के साथ रिश्ता तय
होगा। आपने एकदम सही कहा रिश्ते तो पहले से बने हुए होते हैं। जैसे कि कोई पटकथा पहले से लिखी जा चुकी हो। हम तो सिर्फ उसका किरदार निभाते हैं।’ बरखा की मां बोली, ‘भाई साहब,
लड़की तो परायी होती है। जैसा भी घर मिले, उसे दु:ख-सुख सहकर जीवन बिताना पड़ता है। हम मां-बाप जिस घर को पसन्द कर लें और कन्यादान कर दें, वही लड़की का असली घर होता है।
हमारी पसन्द माने लड़की की पसन्द। हम लोग अधिक विलम्ब न करें। हम सब’ सगाई की रस्म
शुरू करते हैं।’
सुरेन्द्रनाथ के बड़े भाई बोले, ‘बिल्कुल ठीक बात कही आपने।’ उसी समय बादल कुछ सोच रहा था।
उसको लग रहा था कि यह एकदम जल्दबाजी में की जा रही सगाई है। उसने कहा, ‘मां जी, आपको आपत्ति न हो तो मैं कुछ बोलूं?’ बरखा की मां ने कहा, ‘हां बेशक बोलो बेटा।’

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बादल ने बोल दिया, ‘मैं अभी सगाई नहीं करूंगा।’ बरखा की मां ने पूछा, ‘तुम सगाई नहीं करोगे? क्यों? ऐसा क्यों बोल रहे हो बेटा? क्या हो गया? देखो हमारा दिल मत दुखाओ। बरखा में कोई खोट दिख गया क्या? चलो तुम बरखा को पसन्द नहीं करते हो तो कोई बात नहीं। उससे छोटी को पसन्द कर लो। वह भी पढ़ीलिखी है।’
रविचन्द बोले, ‘हम आपको दहेज में कमी नहीं करेंगे। हम अपनी हैसियत से अधिक ही सामान देंगे। मेरे परिचितों और रिश्तेदारों की ओर से भी ढेरों कीमती उपहार मिलेंगे। इसकी चिन्ता ही न करें।’
बादल की बात सुनकर उसके पिता को लगा कि यह बेटा तो लड़की के घर में आकर मेरी ही तौहीन कर रहा है। बोले, ‘तुमने बरखा को पहले पसन्द किया। अब उसमें क्या कमी नजर आ गयी? कहीं तुम किसी और को तो चाहते नहीं हो? यदि ऐसी बात थी तो घर से निकलने के पहले ही बता देते। यहां हम लोग आते ही क्यों?’

सुरेन्द्रनाथ के बड़े भाई बोले, ‘बरखा के साथ सगाई नहीं करने की तुम्हारी वजह क्या है? सब कुछ पसन्द कर लेने के बाद! वह भी लड़की के घर में आकर! इस तरह बीच में सगाई करने से इंकार
कर देना सरासर गलत है। लड़की के माता-पिता भी तुम्हारे घर को देख चुके हैं। ये तो कोई आपत्ति ही नहीं जता रहे हैं। फिर बात क्या है? जरा हम सब लोग भी जान लें। तुम्हें अभी बताना ही पड़ेगा।’
बादल के सगाई करने से मना करने पर उधर बरखा के दिल को ठेस पहुंच रही थी। उसका मन रूआंसा हो गया था। लगता था अब-तब वह भी बरस पड़ेगी। उसकी रुलाई फूट पड़ेगी। यह तो हमारे
घर में आकर हमारी ही बेइज्जती करना हो गया। जब विवाह करना ही नहीं है, तब सगाई करने आने का नाटक क्यों करना? अपने घर से ही मोबाइल पर सीधे मना देते। इतना तामझाम कराने की
आवश्यकता ही क्यों? बादल की बात सुनकर दोनों पक्षों को बहुत खराब लग रहा था।

तब बादल ने अपना विचार स्पष्ट किया, ‘ताऊ जी, मेरी इनसे कोई दहेज-वहेज की मांग नहीं है। न मैं उसका लोभी हूं और न समर्थक। इनकी बेटी बरखा का चरित्र बहुत सुन्दर है। सबसे बड़ी बात कि यह
एक नेकदिल इंसान है। इसके साथ मुझे विवाह करने में कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन मेरी बात को आप लोग ध्यान से सुनिये। हम दोनों के विवाह के बाद जिस घर में बरखा को रहना है। जहां सब दिन
बरखा को अपना पूरा जीवन गुजारना है। उस घर को तो बरखा ने अभी तक देखा ही नहीं है। जबकि मैंने बरखा का घर पहले ही देख लिया है। आज भी देखने का अवसर मिल गया है। मुझे इनका घर
बहुत पसन्द भी आ गया है। मेरा मतलब बरखा को भी हमारा घर देखना चाहिये। इसको भी हमारा घर पसन्द आना चाहिये। कभी इसके मन में यह बात न रहे कि मुझे जबरन किसी अनजाने अव्यवस्थित व्यक्ति के घर में विवाह कराके भेज दिया गया।’ रविचन्द बोले, ‘बेटा, हम लोग बरखा
के माता-पिता हैं। हम लोगों की जो पसन्द है इसकी भी वही पसन्द है। जब हमने आपके घर को देख लिया है तो समझो बरखा ने भी आपके घर को देख लिया है।’
बादल बोला, ‘नहीं-नहीं बाबू जी, इसे सिर्फ आप बोल रहे हैं। ये सिर्फ आपके कहने की बातें हैं। मैं इससे सहमत बिल्कुल नहीं हूं। मन सबका अलग-अलग होता है। रुचियां सबकी अलग-अलग
होती हैं। मैं चाहता हूं कि ताली दोनों हाथ से बजनी चाहिये। आपकी बरखा भी खुद चलकर हमारे घर को अपनी आंखों से देखे, जाने और समझे। तब ही मेरे साथ सगाई करे। इसको भी सगाई के पहले हमारे घर को देखने का पूरा-पूरा अधिकार है।’

रविचन्द बोले, ‘बात तो सही है, लेकिन ऐसी परम्परा तो समाज में नहीं है। मातापिता और उसकी बिरादरी के लोग देख लें। पसन्द कर लें। यही काफी होता है।’ बादल ने उत्तर दिया, ‘बाबू जी, यदि
पुरानी परम्परा में खोट है और तकलीफदेह है तो उसमें बदलाव किया जा सकता है। पुरानी रूढ़ियों को मत बदलो ऐसा तो किसी ग्रंथ में भी नहीं लिखा है। उसमें सुधार तो समझदार लोग कर ही सकते हैं न। मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि बरखा को भी हमारा घर दिखलाया जाये। घर देखकर उसकी भी पूरी तसल्ली, सन्तुष्टि और पसन्द हो जाये। तब ही मैं उससे सगाई करूंगा। अंगूठी पहनाऊंगा और
पहनूंगा। अन्यथा अभी नहीं।’ वहां पर बैठे बुजुर्ग लोग एक साथ बोले, ‘बेटा, ऐसा रिवाज हमारे जानते कहीं सुनने में नहीं आया कि लड़की भी जाती है लड़का का घर देखने। अक्सर लड़की के मां-बाप ही लड़का का घर देखकर सकारात्मक निर्णय ले लेते हैं। लड़की तो विवाह की विदाई में ही इकठे ससुराल जाती है। यदि ऐसी जिद करोगे तो दुनिया के लोग तुम्हीं पर हंसेंगे।’

‘देखिये, विवाह के बाद लड़की का गुजर-बसर तो मेरे साथ मेरे घर में होना है। वैसे भी कुछ लोग तो दुनिया में हंसने के लिये ही पैदा हुए होते हैं। वे हंसने वाले लोग मेरा घर चलाने थोड़ी न आ जायेंगे। घर-परिवार चलाना तो लड़की की निजी समझदारी होगी। उसका यह सुविधा का काम हो जायेगा। लड़की, लड़का का घर नहीं देख सकेगी, मैं इस बात को हरगिज नहीं मानता। आप लोग उस पुराने सड़े-गले नियम में आज और अभी ही सुधार करिये। अन्यथा मैं…’ बादल सचमुच ही अड़ गया था।
उसका तर्क एकदम सही था। उसका कहना बिल्कुल न्यायसंगत था। इस बात को सुनकर सचमुच सबकी बोलती बन्द हो गयी थी। भला पुरानी रूढ़ियों से कोई कब तक चिपटा रह सकता था। कल के
दिन वैवाहिक जीवन में वही कलह की वजह बन जाये क्या पता। बादल की गुजारिश ने सबको सोचने पर विवश कर दिया था। विचारों में परिवर्तन से ही प्रगतिशीलता आती है। इस तथ्य पर सबको मंथन करना पड़ गया था। कुछ देर सोचने के बाद सुरेन्द्रनाथ बोले, ‘सुनिये रविचन्द भाई साहब, आज सगाई के दिन बादल की इच्छा की पूर्ति कीजिये। सम्बन्धों को मधुर बनाने के लिये यह बहुत आवश्यक भी है। दो दिलों के पवित्र मिलन का सवाल है। नि:सन्देह बरखा को भी हम लोगों का घर देखना चाहिये। मैं भी आपसे प्रार्थना करता हूं। उसे उसका होने वाला घर दिखाकर लाइये। बाहर
हमारी गाड़ियां खड़ी हैं। तब तक हम तीन लोग यहां आपकी प्रतीक्षा करेंगे। चार लोग आपके साथ में जायेंगे।’

बरखा को भी बात समझ में आयी। उसने भी बादल के विचारों का खुलकर समर्थन किया, ‘पिता जी, इनकी बातों में दम है। सगाई के पहले इनका घर देखने में मुझे भी बहुत खुशी होगी। चलिये मैं, आप और मां तीनों लोग चलते हैं। बाकी लोगों को मेहमानों के साथ यहीं रहने देते हैं।’ बरखा और उसके परिजनों का बादल का घर देखना स्वीकार हुआ। सात लोग मिलकर गाड़ी में बैठे और चले गये।
बढ़िया से देखे-भाले। बादल का घर तो बड़ा शानदार था। सब प्रकार की सुविधाएं थीं। बरखा के लिये नापसन्द करने वाली कोई बात नहीं थी। उसे भी घर पसन्द आया। वहां से आने के बाद लड़की और लड़का पक्ष में एक सन्तुष्टि का भाव था। सबके मन में यही बात थी कि जो हुआ अच्छा ही हुआ। पहले ही सब कुछ स्पष्ट हो गया। बाद में कोई बोल भी नहीं सकेगा।

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अब बरखा और बादल की सगाई की सारी रस्में विधिवत आरम्भ हो गयी थीं। मोबाइल से कार्यक्रम का वीडियो बनाया जा रहा था। तस्वीरें ली जा रही थीं। सगाई सम्पन्न हो जाने के बाद सबके चेहरे पर
अपार खुशियों की चमक थी।