रिश्तों की पैबंद-गृहलक्ष्मी की कहानियां: Hindi Stories
Rishto ki Peband

Hindi Stories: कितनी खुश थी मैं जब मेरी भाभी ने मुझे अपने पोते के जनेऊ संस्कार में बुलाया था। मन में ढेरों उत्साह भर मैं तैयारी में जुट गई थी। सबके कपड़े खरीदने के लिए अपने वर्षों की बचत को जो गुल्लक में जमा करती थी तोड़कर बेटे को दे दिया था।
आने जाने और बाकी सब खर्च के लिए जब बेटे ने हाथ उठा दिए और कहा,”माँ मेरे पास तो जो पैसे थे उनसे आपकी बहू और पोते पोती के लिए नए कपड़े खरीद लिए अब आने जाने का खर्च आप देख लो
मेरे हाथ के वो चमकते सोने के कंगन जिस पर बहू की नजर बहुत समय से थी आखिर उसे ही उतारकर बेटे को दे दिया।
भाभी के घर जाना है उनकी बहू, बेटे, बेटियां और पोते पोतियों सब के लिए कुछ ना कुछ तो ले ही जाना होगा। खाली हाथ मायके कैसे जाऊंगी भाई के जाने के बाद पहली बार ही तो उनके घर जा रही थी।
मेरे साथ-साथ मेरी बहू अंजू भी तो कितनी खुश नजर आ रही थी । रोज बाजार जाती और नए – नए कपड़े चप्पल जूते खरीद कर लाती।
मन तो मेरा भी करता था कि कम से कम दो जोड़ी कपड़े तो अच्छे मेरे पास भी होते और मेरी चप्पल तो इतनी घिस गई थी कि अब नंगे पैर चलना ज्यादा अच्छा था। कंकड़ और कांटे चप्पल में फंसते तो सीधा मेरे पैर में नहीं हृदय पर ही घात कर जाते । जिन बेटों पर इतना खर्च किया पढ़ाने लिखाने और उनकी हर फरमाइश पूरी करने में आज जब वो इतना कमाते हैं तो अपनी मां की घिसी हुई चप्पल उन्हें नज़र नहीं आती ।

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मेरे बेटे बहू को कभी मेरी जरूरत का ध्यान ही नहीं रहता।
अंजू का उत्साह देखते ही बनता था। मैं भी खुश थी कि बहू का स्वभाव बदल रहा है और वो अब मुझ पर चीखती भी नहीं थी पहले की तरह। उसने तो मुझे अपने कमरे तक ही सीमित कर दिया था।
पर एक दिन पड़ोस वाले मिश्रा जी की बहू से जब वो बात कर रही थी तो मैं वहीं से गुजर रही थी उसकी बात सुनकर आंखों से बहते आंसूओं को रोक नहीं पाई और अपने कमरे में आकर इनकी फोटो को गले लगा कर खूब रोई…

“क्यों छोड़ कर चले गए आप मुझे इस तरह। आज आपकी बहू मुझ से छुटकारा पाने के लिए ही तो मेरे भाई के घर मुझे छोड़ने जा रही है । कह रही थी अब इस बुढ़िया को वापस नहीं लाएंगे ।
अपना वही रहेगी और मैं यहां चैन से रह पाऊंगी।
मैंने तो कभी कोई रोक टोक नहीं की। उसके किसी काम में दखल नहीं दिया। फिर क्यों मैं उसे फूटी आंख नहीं सुहाती ।”
रात भर पति की फोटो से बात करते सुबह मेरी आंख लग गई। चादर मेरे आंसुओं से भीगी हुई थी।
सुबह जब नींद खुली तो मैंने फैसला कर लिया था… अपने बहु बेटे से अपमानित होने से अच्छा है अपने भाई के घर ही चली जाऊं। भाई नहीं हैं अब तो भाभी और मेरे भतीजे भतीजी और उनके बच्चे सब तो हैं। अपनी बांकी की जिंदगी अब वहीं रहूंगी।
दो दिन बाद मैं अपने बेटे बहू के साथ अपनी भाभी के घर आ गई। बड़ा सा आलिशान घर, रंग बिरंगे बिजली के बल्ब से चमक रहा था। अगले दिन ही जनेऊ था मेरे मंझले भतीजे के बेटे का। भाभी तो मुझे देखकर चहक उठी थी गले लगकर बोली, ” रमा बहुत अच्छा किया आप आ गई अब मैं आपको यहां से नहीं जाने दूंगी। “
मैं खुश थी यही तो चाहती थी मेरी बहू और मैं भी, पर कैसे कहती मन की बात।
रास्ते भर भगवान से यही मना रही थी कि भाभी मुझे अपने पास रोक लें । भाभी की बहुओं और सबके लिए लाए सामान को दिया तो सबने यही कहा इसकी क्या जरूरत थी। बुआ जी आप आ गए बच्चे को आशीर्वाद देने वही बहुत है।
मेरे कपड़े और चप्पलें देख मंद मंद मुस्कुराते और
काना- फुसी कर मेरा मज़ाक उड़ाते सुना था।
बहुत बड़ी पार्टी का आयोजन किया था मेरे भतीजों ने। सभी औरतें एक से बढ़कर एक कपड़े और जेवर से सजी
हुई थी। मेरे पास तो ले देकर बस वो एक जोड़ी सोने के कंगन ही बचे थे जो यहां आने के लिए उन्हें भी बेचना पड़ा ।
मटमैले सफेद रंग की पैबंद लगी साड़ी पहने जब बालों को ठीक कर रही थी तो भाभी ने एक साड़ी मुझे दी और कहा, ” रमा बहुत से बड़े-बड़े लोग आ रहे हैं तो क्या सोचेंगे आपको ऐसे कपड़ों में देखकर। यह पहन लीजिए आप पर जंचेगा। आपके लिए नए कपड़े लाने का समय ही नहीं मिला। मेरी साड़ी बिल्कुल नई ही है बस
एक- आध बार ही कभी पहनी होगी मैंने। आपसे उम्र और रिश्ते दोनों में बड़ी हूं तो क्या आप मेरे कपड़े नहीं पहन सकती।”

मैंने भी वो साड़ी सहर्ष स्वीकार कर ली। हल्के बादामी रंग पर सुनहरा बोर्डर बहुत जच रहा था। कितने सालों बाद कुछ अच्छा पहना था।
जब उनकी बहुओं ने देखा तो आपस में कह रहीं थीं सासू मां ने सबको नए कपड़े दिए पोते के जनेऊ में और अपनी ननद को अपनी पुरानी पहनी हुई साड़ी दी। यह साड़ी तो सासू मां ने कितनी पार्टी में पहनी है सब देखते ही पहचान जाएंगे।
‘कोई बात नहीं भाभी की ही पहनी हुई साड़ी है ना। ‘
मैंने अपने मन को समझाया ।

चार दिन बाद बहू और बेटे गांव वापस जा रहे थे। मुझे भाभी और भतीजों ने जबरदस्ती रोक लिया। ऐसा ही तो मेरी बहू चाहती भी थी ।
कुछ दिन बहुत अच्छे बीते । बढ़िया बढ़िया कपड़े पहनने को मिलते और स्वादिष्ट भोजन मिलता।
मेरी कई सालों से काम करने की आदत बिल्कुल छूट गई थी जब से बहू आई कुछ करने ही नहीं देती थी ।
“आप अच्छा खाना नहीं बनाती बिल्कुल गले से नीचे नहीं उतरता आपके बेटे के। मैं तो इतना फीका खाना खा ही नहीं सकती , रोज रोज होटल से मंगवाना संभव नहीं है।
आप आराम करो खाना मैं बनाऊंगी। “
मेरा बेटा जो तीस साल से मेरे हाथ के बने खाने को उंगलियां चाट कर खाता था । अब उसी के गले से नहीं उतरता वही खाना।

औरत के हाथ से जब रसोईघर की बागडोर छीन ली जाती है तो बिन प्राण के शरीर बन कर रह जाता है उसका जीवन। बस वही मेरी हालत थी।

मैं पहले आलसी नहीं थी पर जब कोई काम ना करें तो दिन भर नींद आएगी ही। यह उन दवाईयों का भी असर था जो बहू मुझे रोज सुबह उठते ही देती थी। जिसके खाने के बाद मैं दिन भर अलसाई सी रहती।

मेरे भतीजों और उनकी पत्नियों को अखरने लगा था कि बुआ किसी काम में हाथ नहीं बंटाती।
वो मुझे हर काम के लिए ताने देते कहते…
“बुआ आज दिन में सोना नहीं है आपको आचार के लिए आम काटना है, आंगन में घांस उग आई है आज शाम तक आप आंगन चकाचक कर देना, बारिश का मौसम है पर कपड़े तो सुखाने ही हैं ना आप पूरा ध्यान रखिएगा।”

धीरे-धीरे मुझे हर समय खुद का अपमान होते दिख रहा था। इससे अच्छा तो अपने घर में बेटे बहू से अपमानित होती थी वहीं ठीक था। भाभी भी हरदम मेरी खुराक पर ताने कसती।
“इस उम्र में भी इतना कैसे खा लेती है रमा।”
एक दिन जब मैंने देखा भाभी की बड़ी बहू ने सबकी थालियों की जूठा बचा हुआ खाना एक थाली में रखा और मुझे वहीं खाने को दिया ।

वो छह महीने ज़िल्लत भरी जिंदगी से परेशान हो उठी थी। तब घर की बहुत याद आती । मैंने छोटे बेटे को फोन करके बुला लिया और वापस अपने घर आ गई। मायके का एक कड़वा शब्द भी जहर समान है । उनके दिए सभी कपड़ों को वहीं छोड़कर अपनी वही पुरानी साड़ी और टूटी चप्पल पहने जब निकलने लगी तो भाभी ने समझाया बेकार जा रही हो यहीं तो कितना बढ़िया से रह रही हो । बस खाना और सोना ही तो है तुम्हारा जीवन। अच्छा जा ही रही हो तो ये कपड़े क्यों छोड़े जा रही है और फिर वही अपनी पैबंद वाली पुरानी साड़ी पहन ली।
कैसे उन्हें समझाती साड़ी के फटने पर पैबंद लगा कर पहना जा सकता है पर रिश्तों पर लगी पैबंद संभालना बहुत मुश्किल है ।
इससे अच्छा अपने बहू बेटों के साथ ही रहना है । जब घर में अपमान मिलता है तो बाहर वालों को भी मौका मिल जाता है।
खुद को बदलना होगा मेरा घर मेरा ही है बहू के आने से पहले भी और उसके आने के बाद भी।