prthvee kee utpatti
prthvee kee utpatti

Hindi Katha: एक बार की बात है – देवर्षि नारद भगवान् नारायण के पास विराजमान थे। तब उन्होंने हाथ जोड़कर भगवान् नारायण से कहा भगवन् ! जब सम्पूर्ण जगत् जल में डूब जाता है। जीव परब्रह्म परमात्मा में लीन हो जाते हैं। तब उस समय पृथ्वी कहाँ निवास करती है? और सृष्टि के समय वह पुन: किस प्रकार प्रकट हो जाती है? धन्य भाग्य पृथ्वी को बार- बार जन्म लेने का सौभाग्य कैसे प्राप्त होता है ? हे आप पृथ्वी की उत्पत्ति की पूरी कथा सुनाने की कृपा करें। “

नारदजी की जिज्ञासा शांत करने के उद्देश्य से भगवान् नारायण बोले ” वत्स नारद ! महाविराट् पुरुष सदैव जल में विराजमान रहते हैं। एक निश्चित समय-अंतराल में उनके मन में सृष्टि की रचना का विचार जन्म लेता है। तब उनके रोमकूपों में हलचल मच जाती है और किसी एक रोमकूप से पृथ्वी निकल आती है। जितने रोमकूप हैं, उन सब में से जलसहित पृथ्वी बार – बार प्रकट होती और छिपती रहती है। सृष्टि के समय प्रकट होकर जल के ऊपर स्थिर रहना और प्रलयकाल के समय छिपकर जल के भीतर चले जाना ( यही इसका नियम है। महाविराट् की आज्ञा के अनुसार ब्रह्मा, मैं (विष्णु) और शिव आदि देवता और समस्त प्राणी प्रकट होकर इस पर रहते हैं। इसके ऊपर सात स्वर्ग हैं। इसके नीचे सात पाताल हैं। मेरे वाराह अवतार के समय यह मूर्तिमान रूप से प्रकट हुई थीं और देवताओं ने इनका विधिवत् पूजन किया था। उस समय मेरे वाराहावतार के साथ उनका विवाह हुआ था, जिससे मंगलदेव का जन्म हुआ।’

देवर्षि नारद बोले “हे प्रभु! देवताओं ने आपके वाराह अवतार के समय पृथ्वी की किस रूप में पूजा की थी? हे भगवन् ! आप उनके विवाह और मंगल के जन्म का प्रसंग सुनाने की कृपा करें। “

भगवान् नारायण बोले दैत्य ने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड के ‘नारद ! मेरे वाराहावतार से पूर्व हिरण्याक्ष नामक अथाह जल में डुबो दिया था। तब ब्रह्माजी की स्तुति से प्रसन्न होकर मैंने वाराह अवतार धारण किया था और हिरण्याक्ष को मारकर, पृथ्वी को रसातल से निकाला था। तब मैंने पृथ्वी को जल के ऊपर स्थापित कर दिया था। उस समय पृथ्वी की अधिष्ठात्री देवी एक परम सुंदर देवी के वेश में थीं। उनकी कांति सभी दिशाओं को प्रकाशमान कर रही थी। उन्हें देखकर मेरे हृदय में उनके प्रति प्रेम उत्पन्न हो गया था। तब मैंने वाराह रूप में ही पृथ्वी के साथ विवाह किया और एक वर्ष तक हम साथ रहे। फिर मैंने पृथ्वी को वरदान दिया था कि मुनि, देवता, दैत्य, मनु, गंधर्व, नाग, मनुष्य आदि सभी तुम्हारी पूजा करेंगे। गृह प्रवेश, गृह-निर्माण, कुएँ, बावड़ी, सरोवर आदि के निर्माण या अन्य गृहकार्यों के अवसर पर देवता आदि सभी लोग उनकी पूजा करेंगे। जो उनकी उपेक्षा करेंगे, उन्हें नरक भोगना पड़ेगा। इसके बाद मैं अपने वास्तविक रूप में पुनः वैकुण्ठ लौट आया। कुछ समय पश्चात् पृथ्वी से महान तेजस्वी पुत्र मंगलदेव की उत्पत्ति हुई । “

इस प्रकार भगवान् नारायण ने देवर्षि नारद को देवी पृथ्वी की उत्पत्ति की कथा बताकर उनकी जिज्ञासा शांत की।