prem hatya aur samman
prem hatya aur samman

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

जमुना को क्या पता था कि उसे यह दिन देखना पड़ेगा। गांव के जिन पांच आदमियों को मुख्य दंडाधिकारी ने फांसी की सजा सुनाई है, जमुना उनमें से प्रमुख है। जमुना और दूसरे अभियुक्तों पर दो जानों की निर्मम हत्या का आरोप लगा है। आज भले ही जमुना के मुंह पर एक उदासी छाई है और वह अपने किए पर शर्मिंदा है, पर तब वह बड़ा खुश था जब उसके गांव से चार गाड़ियां भर कर शहर गई थीं। उस दिन जमुना को शहर में सम्मानित किया गया था।

जमुनाराज को उसकी जाति के लोगों की समिति ने ‘जातीय गौरव सम्मान’ के लिए चुना था। गांव के अलावा जब जाति के दूसरे गांवों के बड़े ठेकेदारों के पास जमुना की बहादुरी की खबरें पहुंची तो उन्हें लगा था कि समाज को बचाए रखने के लिए जमुना जैसे लोगों को आगे आना होगा और ऐसे लोगों के उत्साहवर्द्धन के लिए उन्हें भी अपना कर्त्तव्य निभाने की जरूरत है। परिणामतः समिति ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि पहला पुरस्कार जमुना को ही दिया जाना चाहिए।

पुरस्कार की खबर जैसे ही गांव पहुंची थी, गांव के लोगों को बहुत खुशी हुई थी। जमुना भी बल्लियों उछला था। उसने तुरंत फोन कर हलवाई को बुलाकर कहा था-‘एक बोरी चीनी के लड्डू बनाकर गांव में बांट दो।’

हलवाई ने चाव से लड्ड बनाए थे और लोगों ने चाव से खाए थे। जमुना को खूब बधाइयां मिली थीं। जमुना भी यह अच्छी तरह जानता था कि बहाना कोई भी हो, लोगों को कुछ न कुछ खिलाते रहना चाहिए, तभी राजनीति में अपनी पैठ बनाई जा सकती है।

जमुना पिछले कई सालों से राजनीति से जुड़ा है। वह अब तक राजनीति में स्वतंत्र रूप से तो कुछ कर नहीं पाया, पर उसे पूरा विश्वास था कि एक न एक दिन वह जरूर कामयाब होगा। उस बार उसे सौ प्रतिशत उम्मीद थी कि जिस पार्टी के पीछे उसने अपनी जूतियां तोड़ी हैं, उसके नेताओं का उस पर ध्यान जरूर जाएगा। टिकट मिलने भर की देर है, एमएलए तो वह बना बैठा है।

जमुना गांव की पल-पल की खबरें रखता था। पर जाने कैसे उस दिन जमुना को इस बात की खबर न लगी और जब लगी तो काफी देर से। उसके पास जिस रात गांव का चौकीदार आया था तो वह समझ गया था कि चौकीदार कोई न कोई खबर लाया है। वरना वह इतनी रात गए, उसके पास आता नहीं। जमुना ने चौकीदार से पूछा था-‘कहो कैसे आए?’ चौकीदार ने पहले राम-राम की और कहा-‘सुना है ढाणी वाले दयानंद का लड़का लीला की लड़की को भगाकर ले गया।’

जमुना को यह सुनते ही एक झटका-सा लगा था। वह चारपाई से उठ कर बैठ गया था-‘क्या कहा? दयानंद का लड़का लीला की लड़की को भगाकर ले गया।’

जमुना के चेहरे पर आए तनाव को देख चौकीदार बोला था-‘हमारा फर्ज था आपको बताना।’

‘नहीं तूने तो बहुत अच्छा किया। मैं तो कुछ और ही सोच रहा हूं।’ यह कहकर जमुना ने अपने चेहरे को बहुत गंभीर कर लिया था। उसने चारपाई से खड़ा हो खूटी के टंगे सफेद कुर्ते से रेड एंड व्हाईट सिगरेट की डब्बी निकाल इत्मीमान से एक सिगरेट जला अंगूठे और अंगुली में उसे दबा लंबे-लंबे कश लगाए थे।

जमना पुरे दस मिनट तक चप बैठा रहा था।

अंत में वह चौकीदार को ‘चल ठीक है रमला। कल करते हैं कुछ।’ कहकर सो गया था।

प्रियंका और नीरज की प्रेम कहानी को अधिक समय नहीं हुआ था। पिछले साल की ही तो बात है। प्रियंका रोज की तरह खेत में गई थी। बाजर की भारी भरोटी काटने के बाद उसे यह दिक्कत आई कि भरोटी उठवाई कैसे जाए। और दिनों प्रियंका किसी न किसी के साथ जाती थी। पर आज वह अकेली ही चली गई थी। मां ने कहा भी था- ‘अकेली जाएगी तो भरोटी उठवाएगी कैसे।’

वह भागती-भागती बोली थी- ‘मिल जाएगा कोई न कोई।’

उसने दराती से भरोटी तो जल्दी-जल्दी काट ली थी, पर जब काफी देर तक कोई भरोटी बंधवाने और उठवाने वाला न मिला तो वह चिंतित हो गई थी।

वह खेत के चारों तरफ घूमी, पर उसे कोई दिखाई नहीं दिया। सब घसियारियां अपने-अपने घर जा चुकी थीं। वे बखत आतीं और बखत चली जातीं। प्रियंका भी खेत में जल्दी जाया करती। लेकिन उस दिन सुबह-सुबह उसे उसकी एक सहेली मिल गई थी जो ससुराल से कई दिनों बाद आई थी। प्रियंका उस सहेली को मिली क्या कि सहेली ने ससुराल की सारी पोल-पट्टी प्रियंका के सामने खोल दी। बातचीत में सहेली कभी हंसती तो कभी रोती। प्रियंका भावुक तो थी ही। वह सहेली का सारा दर्द बांटने में लगी रही।

जब वह घर पहुंची तो सूरज सिर पर चढ़ चुका था। मां ने उसे खूब डांटा था- ‘कहां मर गई थी।’

‘मां वो रामरती मिल गई थी। उसी के पास टाइम लग गया।’ –प्रियंका बोली तो मां ने कहा था-‘अच्छा अब ज्यादा सफाई मत दे। जाकर भरोटी ले आ।’

और प्रियंका दराती-लूगड़ी उठाकर खेत की ओर चल दी थी। रास्ते में उसे कई घसियारियां घास की पोट लाते हुए मिली थी। एक जनी ने तो प्रियंका को टोक भी दिया था-‘आज इतनी वारी!’ प्रियंका कुछ न बोली। किस-किस को जवाब देती वह। आज खेत में देर से क्या आई सबने सवाल पे सवाल पूछने शुरू कर दिए। जैसे किसी का कुछ लेकर भागी हो वह।’ प्रियंका बड़बड़ाती हुई तेज-तेज कदमों से चल रही थी।

उसने फटाफट बाजर की भरोटी काटी थी। घर में दो भैंसों के लिए भरोटी इतनी तो होनी ही थी कि दो टेम उनकी खोरों में डल जाए। प्रियंका भरोटी उठवाने के लिए किसी के इंतजार में थी। वह खेत के चारों ओर घूमकर थक चुकी थी। आज मां को क्या जवाब देगी वह। मां तो और गुस्सा हो जाएगी। वह खेत से निकल चौड़े रास्ते आ गई थी और उचक-उचक कर इधर-उधर देखती रही कि कोई दिख जाए तो वह उसे बुला ले। पर काफी देर तक उसे कोई न दिखा तो वह परेशान होने लगी थी। उसका मन किया था कि वह घर चली जाए और शाम को और घसियारियों के साथ आकर भरोटी उठा ले जाए। पर भैंस का चेहरा भी तो बार-बार आंखों के सामने आ जाता था। भैंस भूखी मरेगी तो उसे रोका कैसे जाएगा। वह तो अनसमझ है। भूख लगते ही रींकना शुरू कर देगी, किसी की सुनेगी नहीं। भैंस को क्या पता कि प्रियंका क्यों नहीं लाई भरोटी। उसे तो बस चरने से मतलब।

अचानक प्रियंका ने देखा कि एक मोटर साइकिल इधर ही आ रही है। उसने सोच लिया था कि वह मोटर साइकिल वाले को जरूर रोकेगी। जब मोटर साइकिल और नजदीक आई तो वह खड़ी हो गई। उसने मोटर साइकिल वाले को पहचान लिया था। वह गांव की ढाणी से था। नीरज। गांव में अक्सर वह आता-जाता रहता था। प्रियंका की उससे कभी सीधी बात तो हुई नहीं थी, पर चेहरा उससे अपरिचित नहीं था।

मोटर साइकिल और पास आई तो उसने उसे रुकने का इशारा किया। मोटर साइकिल रुक गई थी। नीरज ने पूछा- क्या बात है?’

‘भरोटी उठवानी थी’-प्रियंका बोली।

नीरज मोटर साइकिल को बड़े स्टैंड पर खड़ी कर प्रियंका के साथ खेत में घुस गया था।

प्रियंका ने भरोटी के नीचे बिछी लूगड़ी के एक पल्ले को पकड़ा तो नीरज ने भी पास आकर लूगड़ी का दूसरा पल्ला पकड़ लिया था। प्रियंका ने अपने वाला पल्ला नीरज को पकड़ाया तथा उसका पल्ला खुद पकड़ा। दोनों ने सिर से सिर मिला जोर लगाकर भरोटी बांधी थी।

प्रियंका ने दराती भरोटी में खोंस दी थी। उसने पांच-छह कदम चलकर नीचे पड़ी एक और लूगड़ी उठा फटाफट एक मंडासी बनाकर सिर पर रख ली थी। वह भरोटी के नजदीक आई और झुककर भरोटी के हाथ लगाकर खड़े होने की स्थिति में हो गई। नीरज ने भी दोनों हाथों से जोर लगा भरोटी को ऊपर कर दिया। प्रियंका तब तक पलकें झुकाए हुई थी, पर जब उसके सिर पर भरोटी अच्छी तरह जच गई थी तो उसने नीरज की ओर देख लिया था। नीरज भी उसे ही देख रहा था। उस पलक झपकने जितने समय में इतना खिंचाव था कि दोनों की आंखें काफी देर तक मिली रही थीं। चारों आंखों का इस तरह मिलना एक-दूसरे को बहुत कुछ कह गया था।

बस. उस दिन से एक सिलसिला चल पडा था आंखें मिलने का। प्रियंका को जैसे पंख लग गए थे। वह खेत में चाव से जाने लगी थी। वह उसी समय जाती थी जब खेतों में कोई न होता था। नीरज खेत में पहले से ही तैयार मिलता था। प्रियंका जल्दी-जल्दी भरोटी काटती और नीरज से उठवाती। दोनों की आंखें उसी तरह मिलतीं।

एक दिन उन दोनों की आंखें बहुत देर तक मिलीं।

प्रियंका ने नीरज से पूछा था-‘हम कुछ गलत तो नहीं कर रहे हैं न नीरज।’

नीरज ने कहा था-‘गलत तब होगा जब मैं तुम्हें अकेला छोडूंगा।’

‘तो क्या तुम मुझसे ब्याह करोगे।’-प्रियंका ने आश्चर्य से पूछा था।

‘और क्या। मैं कोई पागल हूं जो तुम्हें रोज मिलने आता हूं।’

‘लेकिन तुम्हारा और मेरा गांव एक ही तो है। शादी हो जाएगी इस तरह।’

‘गांव एक होने से क्या फर्क पड़ता है।’

‘पर गांव वाले नहीं चाहेंगे कि उनकी लड़की यूं गांव की ढाणी में किसी के साथ रहे।’

‘वो यह तो नहीं चाहते, पर वे जब गांव की बहू-बेटियों को सरेआम छेड़ते हैं तो कहां होती हैं उनकी नैतिकताएं। हर साल गांवों में इतने बलात्कार होते हैं तब ये गांव वाले क्यों कुछ नहीं करते।’

‘गुस्सा क्यों होते हो। मैं तो पूछ ही रही थी। और क्या तुम सच में मेरे से ब्याह कर लोगे।’

‘और क्या।’

‘तुम्हें पता नहीं, परसों के अखबार में क्या छपा था। कैथल साइड में एक जोड़े को जिंदा जला दिया गया।’

‘मालूम है मुझे। और यह भी मालूम है कि तुम और मैं भागेंगे तो हम भी मार दिए जाएंगे। मरने से नहीं डरता मैं।’

‘अच्छा-अच्छा अब ज्यादा हीरो ना बनो। यह तो वक्त ही बताएगा तुम कितने निडर हो। लाओ अब उठाओ भरोटी।’ प्रियंका ने खड़े होते हुए कहा था।

और उस दिन सच में मां गुस्सा हो गई थी। किसी ने मां को बता दिया था कि प्रियंका का ढाणी के एक लड़के के साथ चक्कर है। दोनों को खेत में बातें करते देखा गया है।

प्रियंका ने बाजर की भरोटी गंडासे के आगे गेरी ही थी कि मां ने उससे ढेरों सवाल-जवाब किए थे। रात को जब प्रियंका के पिताजी आए थे तो मां ने उनके सामने सारा कच्चा चिट्ठा खोल दिया था। पिताजी बड़ा गुस्सा हुए थे। उन्होंने प्रियंका को डांटा था-बेटी तुमसे हमें यह उम्मीद नहीं थी। पिताजी ने भी इस घटना को इस तरह लिया था कि वे अगले दिन से ही प्रियंका के लिए लड़का देखने में जुट गए थे।

प्रियंका का खेत में जाना बंद कर दिया गया था। स्कूल में भी उस पर पहरा बिठा दिया था। प्रियंका की मां ने मोहल्ले की दो लड़कियों को कह रखा था कि वे प्रियंका का ध्यान रखें। कहीं किसी लडके से बात करती दिखे या कहीं जाए तो उसे खबर कर दें।

प्रियंका उदास रहने लगी थी। वह सारा दिन घर में रहती। खेत की बजाय वह घर का काम करती। पहले उसका काम घास या भरोटी लाना ही होता था, पर अब उसे डंगर-ढोरों का सारा काम दे दिया था। वह पहरके-तडके उठती और डंगरों के ठाण बुहारने में लग जाती। घर का सारा पानी भरती। भागती-भागती नहाती और स्कूल जाती। स्कूल में भी वह जी लगाकर काम न करती। एक दिन इतिहास की मैडम ने कहा भी था उसे-’ प्रियंका क्या बात है तुम आजकल पढ़ाई से जी चुराने लगी हो।’

प्रियंका ‘नहीं मैडम, नहीं मैडम’ करती रही, पर मैडम ने उसकी चोरी पकड़ ली थी।

उधर नीरज भी परेशान रहने लगा था। वह नियत समय पर खेत में जाता और प्रियंका के न मिलने पर उदास लौट आता। कॉलेज में भी वह पूरे समय न टिककर जल्दी घर भाग आता। एक दिन उसके पिताजी ने पछा था-‘तम आजकल कॉलेज रुकते ही नहीं क्या? ना यहां रहकर कभी किताब हाथ में लिए दिखते हो। कौन सी दुनिया में रहने लग गए हो भई।’

नीरज ने गोली देते हुए कहा था-‘आजकल कॉलेज में पढ़ाई नहीं होती तो मैं जल्दी घर आ जाता हूं।’

‘चलो मान लेते हैं। नंबर कम आए तो बताऊंगा।’ दयानंद ने यह कहकर बात खत्म कर दी थी।

लीला एक दिन ढाणी में जाकर दयानंद को शिकायत लगा आया था। दयानंद ने लीला को पूरी तसल्ली दी थी कि वह उसके लड़के का खींचकर रिमांड लेगा।

शाम को जब नीरज घर आया तो दयानंद ने उसको अपने पास बुलाकर एक थप्पड़ लगाया था-‘अब समझा मैं, तू क्यों कॉलेज से जल्दी आ जाता है। बेवकूफ बनाता था-पढ़ाई नहीं होती। आज के बाद लीला की छोरी की तरफ देख भी लिया तो कच्चा चबा जाऊंगा।’

नीरज कुछ न बोला। चुपचाप खड़ा रहा।

बीच में दया की घरवाली ने टोका था-‘जवान लड़का है जी। कुछ कर बैठेगा।’

‘तुम बीच में ना पड़ा करो। तुम्हीं ने तो बिगाड़ रखा है इसे। समझा तेरे इस महाराजा को कि गांव की लड़कियों पर बुरी नजर ना डाले।’ दयानंद ने सारा गुस्सा घरवाली पर उतारा था।

उस दिन नीरज ने रात को खाना नहीं खाया था। वह गुस्से में बिना बिछी खाट पर पड़ा रहा था।

एक दिन प्रियंका ने नीरज को कहा था-‘जी घुटता है मेरा यहां।

‘तो भाग चलते हैं कहीं।’

‘तुम्हें भागने की बड़ी जल्दी पड़ी है। भगा भी ले चलोगे।’

‘तुम कमजोर समझती हो मुझे।’

‘नहीं बहुत बहादुर समझती हूं।’

वे दोनों खेत में देर तक बैठे रहे थे।

नीरज ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा था-‘अब हमारे पास गांव से भागने के सिवाय कोई रास्ता ही नहीं बचा। यहां रहेंगे तो तुम्हारे बारे में सबको पता लग जाएगा। गांव के लोग तुम्हें भी और मुझे भी जिंदा जला देंगे। इसलिए एक ही हल है अपने पास। भागने का।’

‘ठीक है। मैं जहां कहोगे आ जाऊँगी।’ प्रियंका ने अपनी सहमति जताई थी।

सुबह जब गांव नींद से जागा तो सबकी जुबान पर यही चर्चा थी कि ढाणी वाले दयानंद का लड़का लीला की लड़की को भगाकर ले गया। हर कोई घटना पर अपने हिसाब से नमक-मिर्च लगा दूसरे के सामने पेश कर चटखारे ले रहा था। कोई-कोई यह भी कह रहा था-‘हमें तो इस प्रेम-कहानी का पहले ही पता था। उस छोरी के चाल-चलन भी खराब थे। गुल तो खिलाने ही थे।’ एकाध ने तो ऐसी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की कि अब तो दोनों के मां-बापों को फांसी लगा लेनी चाहिए।

गांवों में कोई न कोई घटना सुर्खियों में आ ही जाती है। कई लोगों को इसमें बड़ा मजा आता है। उन्हें और कोई काम तो होता नहीं है, इसलिए वे ऐसी चीजों में बड़ा रस लेते हैं। ताजा घटी घटना से कई लोग बहुत गुस्सा हुए थे। वे बार-बार एक ही बात दोहरा रहे थे–‘आज तक इस गांव में किसी साले की हिम्मत नहीं हुई कि इस तरह गांव की छाती पर मूतकर भागे। दयानंद के छोरे ने तो ऐसा काम कर दिया कि पूरी खाप में हमारी गर्दनें नीची हो गई।’ गुस्से में उनकी मूंछे बार-बार फड़कती थीं।

जमना इन्हीं लोगों में से एक था। वह अति महत्त्वाकांक्षी था और अपने मन की पूरी करने के लिए कुछ भी कर सकता था। वह इस घटना को ऐसा मोड़ देना चाहता था कि हर जगह जमुना-जमुना हो जाए। वह बारी-बारी से कुछ लोगों को लेकर दयानंद और लीला के घर गया और वहां उन्हें ऐसी-ऐसी बातें सुनाकर आया कि इतनी जलालत तो तब भी नहीं होती जब उनके चेहरों पर थूक दिया जाता। शर्म से उबरने के लिए जब दयानंद ने ‘मेरा लड़का जहां कहीं मिले, साले को मार देना’ कहा तो जमुना के साथ-साथ कइयों ने उसकी पीठ थपथपाई थी और उसे ‘असली शेर’ की उपाधि थी। दयानंद इससे फूला नहीं समाया और जमुना के साथ खुलकर आ गया था। वह अपने सही सोचे हुए पर खुश था कि ऐसा करने से जात-खाप में उसकी इज्जत बची रहेगी। जब लीला ने यह देखा तो वह भी बेटी को सम्मान से बड़ा न मानते हुए उस टोली के साथ मिल गया। इससे जमुना और साथियों को बड़ा बल मिला था कि वे जो कर रहे हैं ठीक कर रहे हैं।

गांव में कभी भी किसी का झगड़ा होता, जमुना बीच में जरूर पड़ता। वह कभी एक पक्ष को भड़काता कभी दूसरे को। दोनों पक्षों को लगता कि जमुना उनके पक्ष में है, पर असलियत यह होती कि वह किसी की ओर न होता। वह तो मामले को तूल देता रहता ताकि उसकी पूछ बराबर बनी रहे। वह दूसरों को खूब बेवकूफ बनाता और दोनों पक्षों को खूब लूट-लूट कर खाता।

यहां भी उसने वही खेल खेला। वह लीला को पट्टी पढ़ाकर थाने ले गया और वहां रिपोर्ट दर्ज करवा दी कि दयानंद का लड़का नीरज उसकी लड़की को भगाकर ले गया। इस अपहरण में दयानंद और उसकी पत्नी का भी पूरा हाथ है।

पुलिस रात को ही गांव आई और दयानंद व उसकी घरवाली को थाने में ले गई। जमुना के कहने से पुलिस ने दयानंद की अच्छी सेवा की। घरवाली सुबक-सुबक कर देखती रही, पर बोल न सकी। वह बहुत परेशान हो गई थी और इस बात से शर्मिंदा भी थी कि पुलिस ने उसके बेकसूर पति को पीटा।

नीरज और प्रियंका बस में बैठकर भागे थे। नीरज के पास एटीएम कार्ड था जिसमें साढे तीन हजार रुपये पड़े थे तो प्रियंका के पास दो हजार रुपये नकद थे। अभी दो हजार से काम चल सकता था। एटीएम वाला खाता नीरज के नाम ही था और एटीएम की कहीं भी पैसा निकालने की सुविधा बहुत बड़ी थी। गांव से शहर वे रात को ही निकल गए थे। शहर से बड़े शहर जाने को सैकड़ों बसें थीं। उन्होंने बड़े शहर की टिकट कटवा ली थी। उनके मन में किसी प्रकार की कोई ग्लानि न थी। वे तो भागकर खुश थे और अपनी खुशी के लिए कोई भी बलिदान दे सकते थे। उन्हें यह भली-भांति पता था कि प्रेम का मतलब क्या होता है और भागकर शादी करने के क्या खतरे हैं? वे सबकुछ और अच्छी तरह सोचकर भागे थे।

सुबह जिस शहर में पहुंचे, वह आगरा था। आगरा में घुसते ही नीरज को सबसे पहले ताजमहल का ध्यान आया था।

‘आगरा आए हैं तो पहले ताजमहल के दर्शन कर लें। प्रेम की तो यही एक बड़ी जगह है।’-नीरज ने कहा।

हां-हां, क्यों नहीं। अब आए-उए थोड़ी ना छोड़ेंगे ताजमहल।’-प्रियंका ने कहा तो नीरज का सारा तनाव दूर हो गया।

सबसे पहले वे ताजमहल पहुंचे और दोनों एक-दूसरे के हाथों में हाथ लिए ताज को बारीकी से निहारते रहे। ताजमहल उन्हें बहुत ही खूबसूरत लगा। उस वक्त वे पूरी दुनिया से कटे हुए थे। नीरज का मोबाइल स्विच्ड ऑफ था। उनसे कोई संपर्क नहीं कर सकता था। वे स्वतंत्र होकर घूम रहे थे। वे एक नई दुनिया में जी रहे थे। यह दुनिया उन्हें बेइंतहा पसंद आ रही थी। यहां किसी की झक-झक और भय न था। वे सारे भय पीछे छोड़ आए थे।

ताज देखने के बाद वे अपने ही एक दोस्त के यहां पहुंचे। दोस्त से अक्सर नीरज की बातें होती थीं और दोस्त नीरज की लव-स्टोरी के बारे में सब जानता था। एक दिन नीरज ने दोस्त को सीरीयसली कहा था-‘किसी दिन तुम्हारे पास सपरिवार आना पड़ सकता है।’

‘सपरिवार!’-दोस्त ने आश्चर्य से पूछा।

‘अरे हां भई, तुम्हारी भाभी के साथ।’-नीरज ने कहा तो दोस्त को विश्वास न हुआ था। वह नीरज को डरपोक समझता था। वह सोचता था कि नीरज छुप-छुप कर प्यार करने वाला है। वह प्रियंका के पीछे सिर्फ इसलिए था कि वह बहुत सुंदर थी। लेकिन वह जितनी बार गांव गया, उसने देखा कि नीरज के मन में कोई खोट नहीं है।

नीरज सोचता था कि नाजायज संबंधों से तो अच्छा ही है कि गांव में ही शादियां होने लग जाएं। घरों में जब ससुर के बहू से, भाभी के देवर से, भतीजे के चाची से, जमाई के सास से नाजायज संबंध स्थापित होते हैं तब यह समाज उन पर अंगुलियां क्यों नहीं उठाता और जब बड़े-बड़े लोग गांव की ही बहू-बेटियों से बलात्कार करते हैं तो ये चौधरी पंचायतों में बैठकर उनके ही पक्ष में फैसला क्यों सुनाते हैं। समाज का काम तो विरोध करना ही है। हमें आज नहीं तो कल उसका मुकाबला करना ही होगा।

नीरज ने एक बार अपने दोस्त से संपर्क करना चाहा। इसके लिए उसने अपना मोबाइल ऑन किया तो नीरज को जो डर था वही हुआ। मोबाइल में सैकड़ों मिस्ड काल्स अलर्ट की सूचनाएं थीं। उसे अहसास हो गया था कि गांव में किस तरह उनकी खोजबीन शुरू हो चुकी है।

चेहरे पर एक भय-सा देख प्रियंका ने पूछा- क्या हुआ।’

‘वही। गांव ढूंढ रहा है हमें।’-नीरज ने संक्षिप्त-सा जवाब दिया।

दोस्त को फोन किया तो वह बड़ा खुश हुआ था। वह खुद ही उन्हें अपनी गाड़ी में लेने पहुंच गया था। उसने दोनों को बधाई दी थी-‘आखिर तुमने मोर्चा मार ही लिया। मुबारक हो भई।’

दोस्त ने उनकी अच्छी आवभगत की। उसकी पत्नी ने प्रियंका का पूरा ध्यान रखा था। चारों ने मिलकर खूब विचार-विमर्श किया तो यह निर्णय लिया था कि शादी करना ठीक रहेगा। दोस्त ने उन्हें विश्वास दिलाया-‘घबराने की जरूरत नहीं नीरज। मैं साथ हूं तुम्हारे। तुम्हारी शादी की जिम्मेवारी मेरी है।’

दोस्त ने मामले को गंभीरता से लिया। कोर्ट की प्रक्रिया उसे दुरूह जान पड़ी। इसलिए उसने एक आर्यसमाजी मंदिर में जाकर बात कर ली। पुजारी ने कहा-‘इक्यावन सौ रुपये लगेंगे।’ दोस्त ने तुरंत अपनी जेब से बटुआ निकाला और चंदे की रसीद कटवाकर चार दिन बाद की ही तारीख फाइनल कर ली।

नीरज और प्रियंका को आगरा में कोई दिक्कत नहीं हुई। वे दोनों खुश थे। अगले दिन दोनों ने टाइम-पास के लिए एक थियेटर में फिल्म भी देखी थी और बाजार से थोड़ी खरीदारी भी की थी। नीरज ने एटीएम से एक हजार रुपये और निकलवा लिए थे। दोनों भूल गए थे कि वे दोनों गांव से भागकर आए हैं। शहर उन्हें पसंद आ गया था। नीरज तो यह भी सोच चुका था कि वह ऐसे ही किसी शहर में बसेगा।

शाम को जब दोनों घूमकर आए तो दोस्त तब तक आफिस से आ चुका था। शादी की आवश्यक तैयारियां पूरी कर ली थी। दोस्त की पत्नी प्रियंका के लिए अपनी तरफ से एक महंगी साड़ी लेकर आई थी।

प्रियंका ने नीरज से कहा-‘एक जोड़ी तुम भी खरीद लो।’

नीरज ने मना किया तो प्रियंका थोड़ी नाराज हो गई और तब ही खुश हुई जब नीरज दोस्त के साथ जाकर एक जोड़ी पैंट-शर्ट ले आया।

अगले दिन दस-ग्यारह बजे नीरज ने अपना मोबाइल ऑन किया तो मोबाइल में मैसेज टोन आई। फिर एक के बाद एक करके कई टोनें आईं। सारे मैसेज एक ही नंबर से आए थे। गांव से। नीरज के दोस्त सतपाल के। नीरज ने मैसेज बॉक्स खोला। लिखा था-

NEERAJ BHAI, TUM JAHAN BI HO 2RNT AA JAO CHACHA CHACHI KO POLICE LE GAI APHARAN KA KES DARJ KIYA H COME SOON PLEASE…–SATTU

नीरज ने मैसेज पढ़ा तो वह चिंतित हो गया। गांव में उसके मां-बाप संकट में हैं। वह जानता है पुलिस लोगों के साथ कैसा बर्ताव करती है।

नीरज ने दोस्त को कहा-‘जाना होगा हमें। आज ही।’

‘आज ही। परसों जो शादी है वह……..’

‘मम्मी-पापा थाने में हैं। अपहरण का केस लगा है उन पर। शादी आकर कर लेंगे। तुम पुजारीजी से बात कर लेना।’

‘ऐसा मत करो। शादी कर लो। शादी करके जाओगे तो ज्यादा ठीक रहेगा। गांव वालों को तुम नहीं जानते नीरज। ये लोग बड़े खराब होते हैं। इनके झांसे में मत आना। ये लोग अब गांव में पंचायत कर रहे होंगे। बड़ी-बड़ी बातें करेंगे और तुम्हें वैसी ही सजा देंगे जैसे हरियाणा में आए दिन जोड़ों को दी जा रही है।’

काफी देर तक सोचने के बाद नीरज और प्रियंका ने पहले शादी करने का फैसला कर लिया था।

मामला गंभीर था। मीडिया तक अभी यह खबर पहुंची न थी। जमुना एसएचओ को सैट करके आया था। उसी ने मीडिया से यह खबर छुपा ली थी। यदि मीडिया के हत्थे खबर लग जाती तो सच में इस गांव के लोग जीते जी मर जाते। ऐसा जमुना सोचता है।

सुबह-सुबह पूरे गांव में इसी बात को लेकर चहल-पहल थी। जमुना ने सारे गांव को इकट्ठा किया था। लोग बहुत जल्दी पंचायत में पहुंचे थे। वे अपने रोजमर्रा के कामों को कल या दोपहर तक टाल आए थे।

सरपंच के आते ही कार्यवाही शुरु हो गई थी।

दयानंद और लीला भी पंचायत में बैठे थे।

जमुना ने हाथ जोड़ सबको प्रणाम कर बोलना शुरू किया-‘गाम राम होता है। वह जो फैसला लेगा, सौ फीसदी सही होगा। आज तक उसने कोई गलत फैसला नहीं लिया है। एक बार फिर गांव की परीक्षा है। आप सब जानते ही हैं कि इस गांव के एक छोरे और छोरी ने सदियों पुरानी परंपराओं का अपमान किया है जिससे हम सबका सिर शर्म से झुक गया है। अब फैसला आपको लेना है। पूरे गांव का सम्मान आपके हाथों में है। आज आप कड़ा फैसला लेंगे तो किसी साले की हिम्मत नहीं होगी कि वह गांव के मुंह पर इस तरह कालिख पोतकर भागे।’ जमुना गुस्से में भर आया। वह चुप हुआ ही था कि गांव का ही एक और चौधरी खड़ा हो बोलने लगा-‘जमुना भाई बिल्कुल ठीक कह रहे हैं। इतनी हिम्मत किसी की नहीं हुई आज तक। इनका तो एक ही उपाय है कि दोनों परिवारों को गांव से बेदखल कर दिया जाए और इनसे हर तरह का संबंध खत्म कर लिया जाए।’

पंचायत में बड़ी जल्दी गर्मागर्म बहस होनी शुरु हो गई थी। बड़े-बड़े चौधरी जो हरेक पंचायत में कुछ न कुछ बोलते थे, चाहे उन्हें कुछ समझ आए ना आए, आज भी बोले। जो खड़े होकर बोलने में डरते थे या घबराते थे या संकोची थे, वे भी नीचे-नीचे अपना पक्ष रख रहे थे। कई बार स्थिति ऐसी हो जाती थी कि शोर-शराबे के बीच कुछ सुनाई न दे रहा था।

कोई कछ भी कहे. पंचायत को तो अपना धर्म निभाना था। ना ही पंचायत कोई संसद थी जिसकी कार्यवाही स्थगित कर दी जाती और ना ही यह कोर्ट थी कि फैसले की बजाय कोई तारीख ही दे दी जाती। यह तो पंचायत थी और पंचायत यदि सोचने के लिए कुछ समय मांग ले या फैसला न दे पाए तो सरपंच और पंचों की ऐसी भद पिटे कि उन्हें कोई कानी कुतिया तक न पूछे।

गांव के ही रामबीर मास्टरजी ने खड़े हो कहा-’ चौधरियो, एक सलाह देना चाहूंगा। भागने वाले बच्चे नासमझ हैं। इसलिए उन्हें एक मौका दिया जाना चाहिए।’ मास्टरजी का सुझाव अच्छा था पर दिक्कत यह थी कि मास्टरजी चमार जाति से संबंध रखते थे। जाटों को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं था कि कोई दलित इस तरह बीच पंचायत बोले। मास्टरजी का बीच पंचायत में बोलना जाटों को यह लगा कि जैसे मास्टरजी ने उनकी मूंछे उखाड़ ली हैं। मास्टरजी के बोलते ही कई उदंडों ने एक साथ विरोध किया। एक जना तो सीधे-सीधे मास्टरजी से बोला-‘गांव में यह नहीं हो सकता मास्टरजी। यह स्कूल नहीं कि बच्चों को मुर्गा बनवा दिया या दो कामचियां पाड़ दीं। यह तो गांव-गुहांड की बात है। समाज की बात है। गलती की है तो सजा वही मिलेगी जो पंचायत देगी। इसमें कोई भाईचारा नहीं बरता जाएगा।’ मास्टरजी अपना-सा मुंह लेकर बैठ गए।

पूरा एक गुट था जो चाहता था कि किसी भी तरह ये दोनों परिवार उजड़ जाएं। जमुना दयानंद से खंदक खाए हुए था। एक बार जमुना शराब पीकर ढाणी की तरफ चला गया था और वहां जाकर ढाणी के बिल्लू से झगड़ने लगा था। दया ने जब दोनों के बीच जाकर हस्तक्षेप किया तो जमुना ने दया को यह कह दिया था-‘तुम बीच में क्यों बोलते हो। तुम्हारी अठन्नी ले रखी है।’ दया को बड़ा बुरा लगा था। उसने जब देखा था कि जमुना शराब पीकर बातें कर रहा है तो वह चुप न रहा। दया ने जमुना को खूब बुरा-भला कहा और उसके दो-तीन थप्पड़ भी धर दिए थे। जमुना ने नशे में ही कहा था-‘कभी मेरे फंसेगा तब बताऊँगा तुझे।’ दया ने उसे कहा था-‘जा जा तेरे जैसी कुतिया बहुत देखी हैं।’ जमुना ने कभी जाहिर तो होने नहीं दिया पर आज उसके मन में पूरा बदला लेने की थी। ऐसा करने के पीछे एक और बड़ा कारण यह भी था कि दयानंद और लीला दोनों के ही तीन-तीन किल्ले जमीन थी और वह भी मेन रोड के साथ। जमीन की कीमत आंकी जाए तो एक किल्ला किसी भी सूरत में तीस लाख रुपये से कम न था। कल को यदि जमीन बिकती है तो यही लोग खरीदने वालों में सबसे आगे होंगे। कीमत भी नाममात्र की होगी। इसमें सरपंच और पंचों का कमीशन अपने-आप उनके घर पहुंच जाएगा। गांव के मजबूरों की जमीन खरीदने के लिए एक गट सक्रिय हो चका है। उसमें कई तरह के धधे से जुड़े लोग हैं जो हर बार किसी न किसी को फंसाकर साम-दाम-दंड-भेद नीति से उसकी जमीन एक तरह से खरीदते नहीं खोसते हैं।

काफी देर तक बड़े-बड़े चौधरी थूक बिखेरते रहे। किसी को किसी की बात समझ नहीं आ रही थी, पर लोग थे कि बोलते ही जा रहे थे। ऐसे लोगों को पंचायतों में ही बोलने का मौका मिलता है। इन लोगों का बोलना जरूरी होता है। ये ना बोलें तो अपनी तौहीन समझते हैं। घरों से चलते वक्त ये अपनी मंछे पैनाकर चलते हैं। इन्हें लगातार यह लगना चाहिए कि उनकी मूंछे जरा भी नीची नहीं हुई हैं। वे अपने घर से जैसी लेकर चले थे वैसी ही हैं। इन्हें जब भी यह लगता है कि उनकी मूंछों की शान में जरा-सा फीकापन आ गया है तो इनके शरीर का ताप इतना बढ़ जाता है कि ये अपना होश-हवास खो देते हैं और उस स्थिति में जो निर्णय लेते हैं वे ऊल-जलूल ही होते हैं।

लोग लड़ते रहे। झगड़ते रहे। फैसले का इंतजार करते रहे।

थोडी देर बाद सरपंच साहब जैसे नींद से जागे। गला साफकर बोले-‘जैसा कि आप लोग जानते हैं कि दयानंद के लड़के और लीला की लड़की ने गांव से भागकर सारे गुहांड में गांव का सिर नीचे किया है। गौत्र में तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा है। हमारी खाप देश की सबसे बड़ी खाप है और खाप के लिए ऐसे कांड शर्म की बात हैं। इस मामले पर मैं ऐसा फैसला देना चाहता हूं जो मिसाल बने और भविष्य में कोई और इस तरह गांव की ऐसी-तैसी करके न भागे। इसलिए मैं एक कमेटी बनाना चाहूंगा जो यह फैसला करेगी कि दोषियों को क्या सजा देनी चाहिए।’

सरपंच साहब के ऐसा कहते ही खुसर-फुसर शुरू हो गई। लोग यह सोचने लग गए कि कमेटी में कौन-कौन लोग होंगे और क्या फैसला देंगे। ज्यादातर का अनुमान यही था कि अबकी बार जमुना को आगे किया जाएगा क्योंकि जमुना इस बार कुछ ज्यादा ही आगे-आगे हो रहा था। लोगों का अनुमान निकला भी सही। सरपंच ने कमेटी को बनाने की जिम्मेवारी जमुना को सौंप दी थी। जमुना ने करीब आध घंटा लगा दिया था कमेटी बनाने में, ताकि लोगों को यह लगे कि पंचायत किसी के साथ भेदभाव नहीं करती। सबके लिए एक-सा व्यवहार करती है। पर लोगों से कोई बात छुपी नहीं रहती। उन्हें पता था कि सब दिखावा हो रहा है। फैसला जो होना था, वो तो हो चुका था। जमुना ने हर मोहल्ले से अपने मतलब वाले आदमी ले लिए ताकि उसका कोई विरोध न करे।

इस बीच सरपंच ने लीला को खड़ा किया तो सब चुप हो गए थे। सब लीला को ऐसे देखने लगे कि उसने ही खराब लड़की जनकर गांव को यह दिन दिखाया है। लीला हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। सरपंच बोला-‘डर क्यों रहे हो? हम पर विश्वास है न।’

‘पूरा विश्वास है साहब पूरा। पंचायत पर नहीं होगा तो किस पर होगा। कमेटी और आप जो फैसला लेंगे, वह मंजूर होगा मुझे।’

‘हम यही सुनना चाहते थे तुमसे। शाबाश, बैठ जाओ’

सरपंच ने दयानंद को भी खड़ा कर वही सवाल पूछा-‘बोलो दया तुम्हारा केस थाने से रफा-दफा करवा दें। पंचायत जो कहेगी, तुम्हें कोई एतराज तो नहीं?’

‘मुझे क्या एतराज होगा। गांव-बस्ती बैठी है जो कहेगी मानूंगा। मुझे तो गांव में रहना है।’ दयानंद चुप होकर बैठ गया।

सरपंच ने मूंछों पर हाथ फेरा और जमुना को कहा-‘फैसला कर लाओ।’

इक्कीस आदमियों की कमेटी को जमुना एक तरफ बुलाकर ले गया और बीस मिनट में ही वापिस सरपंच के सामने आ गया।

जमुना ने सरपंच के कान में सब समझा दिया।

सरपंच ने बोलना शुरू किया- कमेटी ने जो फैसला लिया, वह काबिले-तारीफ है। दो परिवारों ने जिस तरह गांव की इज्जत को मिट्टी में मिलाया है, वह शर्मनाक है। इसकी सजा निश्चित तौर पर सख्त देनी होगी जिससे आगे कोई इस तरह के घिनौने काम ना करे। कमेटी के फैसले के अनुसार दयानंद के लड़के ने गांव की लड़की को भगाया है। इसलिए यह दयानंद का काम है कि वह लड़की को ढूंढकर लाए। लाने के बाद लड़के और लड़की को
हमें सौंपे। लड़का-लड़की न मिलने तक दयानंद का हुक्का-पानी बंद रहेगा। उसके साथ जो कोई भी लेन-देन करेगा, वह भी दयानंद की तरह गांव के साथ हुक्का-पानी साझा रखने का हकदार नहीं होगा। यदि इक्कीस दिन तक लड़का और लड़की हमें नहीं मिलते, तो दयानंद को गांव में रहने का कोई हक नहीं होगा। उसे ढाणी से अपनी जमीन-जायदाद बेचकर कहीं और बसना होगा। एक यह भी शर्त होगी कि वह अपनी जमीन गांव से बाहर किसी और को नहीं बेच सकेगा और उसकी जमीन पांच लाख रुपये प्रति किल्ले से अधिक नहीं होगी।….’

सरपंच साहब बोल ही रहे थे कि बीच में दयानंद उठकर बोला-‘गाम-राम आपका फैसला सिर-माथे पर है, पर इसमें मेरा क्या कसूर है। आजकल के लड़के-लड़की किसी की कब मानते हैं। कौन मां-बाप ऐसा होगा जो अपने बच्चों को यह शिक्षा देगा कि उनके बिना बताए भागकर शादी कर लो। मैं आपका ही एक भाई हूं। मेरे लड़के ने जो अपराध किया है उसकी सजा मुझे मत दो। चाहे पंचायत में बैठाकर मेरे लड़के के टुकड़े-टुकड़े कर दो। मैं कुछ न कहूंगा, पर मुझे गांव से उजाड़ो मत। उजड़कर बसना बहुत मुश्किल होता है। मेरी जमीन मुझसे मत छीनो। मैं पैर पड़ता हूं आप सबों के…’ और दयानंद सुबकने लग गया। वह सुबक रहा था तो किसी के हृदय पर कोई फर्क नहीं पड़ा। सबको यह लग रहा था कि दयानंद नाटक कर रहा है। वह घड़ियाली आंसू बहा रहा है।

सरपंच ने कहा-’ देखो दया, इसमें हम कुछ नहीं कर सकते। पंचायत का फैसला गलत है या सही, उलट नहीं सकता। कोर्ट के फैसले के खिलाफ भी अपील हो सकती है, पर पंचायत के खिलाफ कोई नहीं जा सकता। इस गांव में क्या किसी गांव में ना आज तक ऐसा हुआ है और ना कभी होगा।’

लोग सरपंच के मुखारविंद से ऐसी बातें सुन चहकने लग गए। एक चौधरी ने तो खड़े होकर कहने में देर ही न लगाई–‘पंच में तो परमेश्वर की आत्मा होती है। वह तो कभी गलत फैसला दे ही नहीं सकता। पंच-परमेश्वर की जय! बस्ती माता की जय!’

इसी बात पर लोगों ने जोर से तालियां बजाई। फैसला सबको मंजूर था। दयानंद की किसी ने नहीं सुनी। और पंचायत विसर्जित हो गई थी।

दयानंद भारी तनाव में था। पुलिस उसे बार-बार तंग कर रही थी।

जमुना जैसे लोग सक्रिय हो गए थे। वे लीला के घर जाकर उसे पक्का कर आए थे कि लडकी के ऐसे कारनामे के लिए उसे बिल्कल भी माफ नहीं करना चाहिए। उन्होंने ऐसे-ऐसे उदाहरण लीला के सामने रखे थे, जिन्होंने अपनी इज्जत बचाने की खातिर अपनी ही औलादों का खून कर दिया था। जो आज भले ही जेलों में हैं पर बिरादरी में उनका नाम है। उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इतिहास ऐसे लोगों से ही बनता है।

लीला ने भी जोश में भरकर कह दिया था-‘तुम जो कुछ भी करोगे जमुना भाई, ठीक करोगे। मैं खुद ऐसी लड़की को देखकर खुश नहीं हूं। एक बार घर आ जाने दो उसे। फिर तो मैं जो करूंगा, वही करूंगा।’ लीला की जबड़ी भिंचती देखी तो जमुना के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान तैर गई थी।

जमुना और उसकी कमेटी वाले पूरी तरह नीरज-प्रियंका की खोजबीन में लगे थे। वे चाहते थे कि किसी भी तरह एक बार वे उनकी नजरों के सामने आ जाएं। फिर तो वे उनके साथ ऐसा सलूक करेंगे कि और कोई छोरा-छोरी इस तरफ जरा भी झुक रहे होंगे तो रूह कांप उठेगी उनकी। उन्होंने प्रियंका के मामा को बुलाकर भी बात की। बात-चीत में यह तय हुआ कि लड़के-लड़की की यदि हत्या भी कर दी जाती है तो किसी भी सूरत में हत्या करने वाले का नाम नहीं बताया जाएगा। हत्या की जिम्मेवारी लड़की के मामा और उसके रिश्तेदार लेंगे।

जमुना ने क्षेत्र के विधायक से भी इस संदर्भ में बात कर ली थी। विधायक ने मामला अपनी जाति और गौत्र का होने के कारण जमुना को यह आश्वासन दिया था कि वह पूरी तरह जमुना के साथ रहेगा। जमुना को और चाहिए भी क्या था। उसे अपना रुतबा कायम करना था और वह इसी तरह हो सकता था। जमुना ने मामले को पूरी तरह सेट कर लिया था। एससचओ से भी यह सांठ-गांठ कर ली थी कि यदि हत्याएं कर भी दी जाती हैं तो उन्हें आत्महत्याओं में दिखा दिया जाएगा। एसएचओ ने इस कार्य के लिए महज पैंतीस हजार रुपये लिए थे। पैंतीस हजार तो कुछ भी नहीं थे। पूरे गांव के सम्मान के लिए लाखों तक का हिसाब रखना छोटी बात है।

सरपंच ने जमुना की सलाह पर गांव में यह घोषणा करवा दी थी कि उनका पता बताने वाले के सिर पर पंचायत के बीच भाईचारे की पगड़ी बांधी जाएगी। कई लोग इसी बात से बड़ा खुश हुए थे। वे चाहते तो थे ही कि किसी तरह पगड़ी उनके सिर बंधे। इसके लिए वे जुट भी गए थे। सब अपने-अपने संपर्कों से छोरा-छोरी का भेद लेने में लगे हुए थे, पर सफलता किसी को न मिली थी।

पंचायत हारकर दया के घर फिर गई थी। वहां उसने दया की गैरहाजिरी में उसकी घरवाली से बात की थी-‘पता बता दो नहीं तो ठीक नहीं होगा।’

‘पता होता तो कब के बता देते हम। हमें जब खुद नहीं पता तो कैसे बताएं।’ दया की घरवाली ने कहा तो जमुना के साथ आए एक लठैत ने कहा-‘पता सब है। यह रांड बताना नहीं चाहती।’

दया की घरवाली रामा इस बात पर गुस्सा हो गई थी। वह जोर से बोली-‘शर्म नहीं आती क्या बोल रहे हो। धौले सिर पर आ गए आज तक बोलने का लक्खण नहीं आया। बताना नहीं चाहती। हां नहीं बताना चाहती। क्या कर लोगे तुम। जात बाहर तो कर दिया। अब हमारी जमीन और खोस लेना। तब भी ना निकलें तो धक्के देकर निकाल देना या हमें जहर खिला देना। तब जाकर मिल जाएगी तुम्हारी आत्मा को शांति। और जाओ पता है, नहीं बताती कहां गए हैं। तुम्हारे जो याद आए वह कर लेना।’

पंचायत ने ऐसा तो बिल्कुल नहीं सोचा था कि दया की घरवाली उनकी इस तरह से बेइज्जती करेगी। उन्होंने उसके साथ और अधिक बोलना उचित न समझा। औरत का कुछ नहीं पता, कब वह अपनी पर आ जाए। एक बार औरत किसी के सामने बोलना शुरू कर दे तो वह किसी की नहीं सुनती फिर। सरपंच बड़ी उम्र का था। बोला-‘चलो इसके मुंह लगना ठीक नहीं। दया से बातें करेंगे।’ और पंचायत इस तरह वहां से आई जिस तरह एक कुत्ता किसी दूसरे मोहल्ले के शक्तिशाली कुत्ते से पिनकर पूंछ दबोचे आता है।

जमुना ने पुलिस की मदद के साथ-साथ नीरज के नजदीकी दोस्तों से भी भेद लेना शुरू कर दिया था। उसने उनको विश्वास में लेकर यह कहा था कि वे लगातार नीरज के संपर्क में रहें और जब भी उससे संपर्क हो तो उससे या सरपंच से जरूर बातें करवाएं। कुछ नहीं कहा जाएगा उन्हें। बस एक बार थाने में वे गवाही के लिए हाजिर हों जाएं ताकि उनका केस रफा-दफा हो जाए। तुम्हारे से बात हो तब भी यही कहना कि वे बिना किसी भय के गांव में आ जाएं।

दोस्तों ने काफी बार फोन घमाए थे. पर वे हर बार असफल ही हए थे। नीरज का मोबाइल फोन या तो नोट रीचेबल होता या स्विच्ड ऑफ।

एक दिन सुबह-सुबह जमुना नीरज का फोन ट्राई कर रहा था तो फोन मिल गया था। जमुना ने आवाज में पूरी नर्माई बरतते हुए कहा था-‘नीरज बेटे, मैं जमुनाराज बोल रहा हूं तुम्हारा चाचा। बेटे तुम ऐसा करो गांव आ जाओ। तुम्हें कोई कछ नहीं कहेगा। मैं जिम्मेदारी लेता हं इसकी। बस थाने में आकर एक बार गवाही दे जाओ। वे जानना चाहते हैं कि तुम्हारा किसी ने अपहरण करवाया है कि तुम अपनी मर्जी से भागे हो।’

‘हां हम आएंगे अंकल। एक बार जरूर आएंगे। अब गांव हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। प्रियंका उन्नीस साल की है और कानून की नजर में बालिग है। हमने आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली है। सुना आपने। अब हम पति-पत्नी हैं।’ नीरज ने कहा तो जमुना के तन-बदन में आग लग गई थी। नीरज सामने होता तो वह उसकी मां-भैण एक कर देता, पर उसे बडी सावधानी से काम लेना था। इसके लिए जरूरी था कि वह उनके साथ खूब नर्मी से पेश आए। यदि वह फोन पर किसी तरह का गुस्सा दिखाता तो उसका बना-बनाया खेल बिगड़ सकता था। इसलिए वह उन्हें कहता रहा-‘वो तो कोई बात नहीं। बच्चे हो तुम। बच्चों से गलतियां हो ही जाती हैं। पर आ जाओ तुम। तुरंत। कोई कुछ नहीं कहेगा तुम्हें। कोई भी।’

रात गहरा चुकी थी। नीरज और प्रियंका ने गांव में प्रवेश किया। ढाणी जाने के लिए पहले गांव से ही रास्ता है। अजनबी जान उन पर कुत्ते भौंके।

मौसम सर्दियों का था। बाहर कोई नहीं दिख रहा था।

नीरज और प्रियंका अपराधियों की तरह चल रहे थे।

गांव चुप था और गहरी नींद में सोया था।

कुत्तों के भौंकने का उन पर कोई असर न था। नीरज ने भौंकते-भौंकते पास आए कुत्ते को ‘तो!!’ करके भगाना चाहा तो प्रियंका ने हाथ दबाकर मना कर दिया-क्या कर रहे हो। जाग जाएगा गांव…’

नीरज प्रियंका गांव से सुरक्षित निकल ढाणी में पहुंच गए थे। ढाणी में भी उनके एक कुत्ता पीछे पड़ गया था, पर नीरज ने प्रियंका को कहा था-‘घबरा मत यह अपना ही टॉमी है।’ कुत्ता पास आया तो वह कू-कू करता नीरज के पांवों में लौटने लगा था।

नीरज ने अपने घर का दरवाजा बंद देखा तो वह सांकल खुड़काने की बजाय घर की दीवार कूद गया और सांकल खोलकर प्रियंका को भीतर ले गया। घर में मां ही थी, पिताजी नहीं थे। शायद कहीं बाहर गए थे।

नीरज ने सोती हुई मां को जगाया।

मां जागते ही बोली-‘क्यों आए हो तुम। भाग जाओ यहां से। कहीं दूर। लोग मार देंगे तुम्हें।’

‘नहीं ऐसे नहीं भागेंगे हम। पहले हम पुलिस को बताएंगे कि हम अपनी मर्जी से भागे हैं और हमने शादी भी कर ली है।’ नीरज ने मां को समझाया।

‘बहुत बुरा बख्त है बेटा। तेरे पिता का हुक्का-पानी बंद कर दिया है बेटे। अच्छा हुआ तुम आ गए। तुम्हारे पिताजी बहुत तनाव में रहते हैं।’ मां ने प्रियंका को भी कहा-’ तुमने भी यह क्या किया बेटी। यह तो गधा है, तुम तो समझदार थी न!’

प्रियंका कुछ नहीं बोली। बोलती भी क्या। भागने का फैसला उसका भी तो था।

क्या हुआ क्या नहीं। सुबह सारे गांव को पता लग गया था कि दयानंद का लडका और लीला की लडकी ढाणी में रात के आए हए हैं और उन्होंने शादी भी कर ली है।

जमुना की टीम के कान तो खड़े होने ही थे।

जमुना ने अपनी टीम को यह अच्छी तरह समझा दिया था कि उनके साथ किसी तरह का कोई दुर्व्यवहार न किया जाए। काम बडी होशियारी से करना है।

योजना के मुताबिक जमुना का एक खास दोस्त रामभेर जिसके दया से भी संबंध ठीक-ठाक थे, सवेरे-सवेरे ढाणी में दया के घर गया। रामभेर के साथ दया ने खूब बातें कीं। उसने उसे विश्वास भी दिलाया-‘उसके होते कुछ भी गलत नहीं होगा। भरोसा रखना।’

सुनकर रामा ने भी चौन की सांस ली थी-‘कोई तो है जो हमारे साथ है।’

वहां उसने प्रियंका और नीरज को देखा। प्रियंका घबरायी हुई लग रही थी। दया ने कहा-‘घबराओ मत बेटा। पुराना याराना है हमारा। हम तो साथ भी पढ़े हुए हैं।”

प्रियंका का भय थोड़ा कम हुआ तो रामभेर बोला-बेटे बात सुनो।’

आवाज सुनकर नीरज भी नजदीक आ गया। दोनों के चेहरों पर भय साफ-साफ झलक रहा था।

रामभेर ने कहा- देखो बेटे तुम अभी बच्चे हो। तुमने शादी को बच्चों का खेल समझ लिया। एक गांव के सब जने आपस में बहन-भाई होते हैं। फिर तुम्हारा तो गौत्र भी तो एक ही है। यह सब करने से पहले तुम्हें सोचना चाहिए था।’

‘कभी इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया अंकल। कब जुडाव हो गया पता ही न चला। पर चिंता ना करो अंकल, हम थाने में गवाही देने के बाद बहुत दूर चले जाएंगे। कभी नहीं आएंगे गांव में ।’-नीरज ने बेझिझक अपना पक्ष रखा।

‘चलो जो हुआ सो हुआ। मैं तो यह बताने आया था कि मैंने एसएचओ से बात कर रखी है। शाम को चलेंगे थाने। उसके सामने तुम कह देना कि तुम तो अपनी मर्जी से भागे हो। मर्जी से शादी की है। तुम्हारा किसी ने कोई अपहरण नहीं करवाया। बाकी मैं अपने आप देख लूंगा। तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है।’-रामभेर ने कहा तो सुनकर रामा की आँखें नम हो गई थीं।

प्रियंका और नीरज का डर भी थोड़ा-सा कम हुआ था। उन्हें लगा कि अब वे जल्दी ही स्वतंत्र हो जाएंगे।

दिन भर दोनों जने घर में ही रहे। वे बाहर नहीं निकले। प्रियंका के घर से भी कोई उसे मिलने नहीं आया।

शाम के पांच बजे थे कि दरवाजे के सामने आई गाड़ी ने हार्न मारा। नीरज समझ गया था कि रामभेर अंकल ही आए हैं। उसने दरवाजे पर जाकर देखा तो तसल्ली हो गई।

दोनों जने गाड़ी में बैठ लिए। तीन-चार आदमी और भी बैठे थे। दयानंद की घरवाली दूर तक उन्हें जाते हुए देख रही थी। उसके मन में यह बात थी कि थाने तक घुमाकर उन्हें छोड़ जाएंगे। फिर वह उन्हें कहीं दूर भिजवा देगी।

वे गाड़ी को शहर की तरफ लेकर गए।

जब थोड़ा-सा अंधेरा हुआ तो रामभेर ने कहा-‘कच्चे रास्ते मोड़ लेना।’

‘कच्चे रास्ते क्यों अंकल!’ नीरज ने पूछा।

‘तुम्हारी आरती उतारेंगे।’ रामभेर का स्वर बदल गया था।

‘आरती उतारेंगे मतलब! थाने नहीं चल रहे?’

‘अभी बताते हैं, कहां चल रहे हैं।’

गाड़ी तेज गति से चल रही थी कि एकदम से रुकी।

जगह सुनसान थी।

रामभेर ने नीरज और प्रियंका को कहा-‘नीचे पड़ो रे!’

दोनों बहुत डर गए थे। उन्हें अंदेशा हो गया था कि उनके साथ क्या होगा। वे भाग भी नहीं सकते थे। अंधेरे में यह तक पता नहीं लग रहा था कि रास्ता किधर से है? सिर्फ गाडी की हैड लाइटें ही जल रही थीं।

थोड़ी देर में तीन गाड़ियां और आ गई थीं। बीच वाली गाड़ी में बैठा जमुना किसी विलेन की तरह उतरा था।

यहां चिल्लाने से कोई फायदा नहीं था। नीरज और प्रियंका एक-दूसरे का हाथ पकड़े बैठे रहे। काफी देर तक जब वे गाड़ी से न निकले तो जमुना के कहने पर दोनों को बेरहमी से खींचकर बाहर निकाला गया।

पहला थप्पड़ जमुना ने ही नीरज को लगाया ‘भैणचो…यही गांव मिला था तझे इश्कमिजाजी के लिए। कहीं और मर लेता।’ फिर तो देखते ही देखते उस पर आगे-पीछे से कई थप्पड़ और लातें पड़ी थीं। एक ने नीरज के गुप्तांगों पर एक बहुत ही भद्दी गाली देते हुए इतनी जोर से लात मारी थी कि नीरज दर्द से कराहते हुए नीचे बैठ गया था।

जमुना अब प्रियंका की तरफ गया। उसने प्रियंका का दुपट्टा उतारकर दूर फेंक दिया था। प्रियंका ने सहम कर दोनों हाथों से क्रॉस बना खुद की छाती को ढंक लिया था। जमुना ने अपने दाएं हाथ के पंजे से प्रियंका के सूट की कालरें पकड़ी तो प्रियंका की आंखें मिंच गई थीं। उसकी देह कांपने लगी थी। जमुना ने उसे अपनी ओर खींचा और प्रियंका का चेहरा बिल्कुल अपने चेहरे के पास ले आया। प्रियंका के चेहरे पर उसकी गर्म-गर्म सांसें पड़ने लगी थीं। कोई और न होता तो वह निश्चय ही उसके होठों को चूम लेता। उसके भीतर का जानवर जागने लगा था। तभी एक ने कहा-‘अपनी ही लड़की है जमुना भाई।’ तो उसने गला छोड़कर प्रियंका की छाती पर एक जोर का मुक्का मार अपने चेहरे को सख्त बनाकर जाड़ भींचते हुए कहा था-‘साली इतनी ही उतावली थी तो हमें बता देती। हम क्या मर गए थे।’

प्रियंका रोते हुए बोली-‘अंकल प्लीज हमें कुछ ना कहो। हम दूर चले जाएंगे गांव से। बहुत दूर।’ ऐसा कहा तो उस पर तीन-चार उल्टे-सीधे थप्पड़ और पड़े थे। जिसने भी थप्पड़ मारा, उसी ने एक चुनी हुई गाली दी थी-‘भैणचो…साली चली जाएगी दूर…रंडी…बेस्सा…’

प्रियंका के बाल बिखर गए थे और उसका चेहरा खून, पसीने, भय, ध ल व तेज रोशनी में बड़ा अजीब लग रहा था। अब उसके चेहरे पर कोई सुंदरता नहीं थी। एक याचना थी। जिंदगी की।

जमुना अभी भी शांत नहीं हुआ था। उसने एक जने को कहा-’ सलवार निकाल इस लैला की।’

एक जने ने विरोध किया था-‘क्या कह रहे हो। पागल हो क्या? गांव की लड़की है। कुछ तो शर्म करो।’

‘तुम्हें नहीं पता घंटे का। जब तक इन लैला-मजनुओं की बेइज्जती न की जाएगी तब तक ये ऐसे ही गुल खिलाते रहेंगे। समाज सुधरना है तो ऐसा करना ही पड़ेगा। तुम से नहीं देखा जाता तो वापिस गांव भाग जाओ या चुपचाप हम जो कर रहे हैं उसे देखते रहो।’ जमुना ने दाएं हाथ से अश्लील इशारा करते हुए कहा था।

वह अपने असली रूप में आ गया था। वह चाहता तो इन दोनों लडके-लडकी को दूर भगा सकता था, यह कहकर कि जाओ बच्चों, इस गांव, जमीन, रिश्ते-नातों से दूर भाग जाओ और अपनी जिंदगी गुजारो। भूल जाएंगे हम भी तुम्हें। मर गए तुम आज से ही हमारे लिए।

पर नहीं। ऐसा कैसे हो सकता है जब पूरे गांव की इज्जत उसके हाथ में हो। क्या हुआ वह तब नहीं बोल पाया था जब पिछले सरपंच ने गज्जे की बहू को छेड़ा था और यह कहा था कि वह एक रात सो जाएगी तो उसके पति को दिए हुए पांच हजार रुपये माफ हो जाएंगे। तब इसी जमुना ने पंचायत में यह सुझाव दिया था कि इस-इस बार मुखिया को माफ करो। क्या हुआ वह तब भी कुछ नहीं कर सका था जब गांव की ही बहू लाजो ने अपने ही ससुर पर यह आरोप लगाया था कि उसके ससुर ने उसको खेत में घास खोदते हुए दबोचा। तब पूरी पंचायत ने कहा था-‘बड़ी उम्र है गलती हो जाती है बहू। इस-इस बार माफ कर दो।’ तब क्यों किसी ने नहीं कहा कि जुर्म बहुत बड़ा है, इसकी सजा दोषी को मिलनी चाहिए। तब जमुना सरीखे हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठे रहे थे और क्यों किसी का पक्ष ले रहे थे।

पर अब तो जैसे यह ठेका जमुना जैसे लोगों के पास आ गया था और जब उसे जाना ही राजनीति में है तो उसके लिए यह जरूरी था कि वह अपने खाते में दो-चार ऐसे काम दर्ज करवा ले जिससे उसकी बिरादरी को यह लगे कि समाज की बुराइयों को खत्म करने के लिए जमुना जैसे चौध रियों को आगे लाना बहत जरूरी है। ऐसे लोग नहीं होंगे तो समाज निश्चित रूप से बिगड़ जाएगा।

जमुना को अपने मन की करनी थी। उसके भीतर कई छोटी-छोटी कुंठाएं थीं जो उसे बहुत कुछ करने के लिए उकसा रही थी। उसकी योजना तो सारी हदें पार करने की थी। यदि अकेला होता तो वह निश्चित रूप से प्रियंका के साथ बलात्कार करता।

उसने फिर कहा था-‘अरे निकाल साली की सलवार…देखू तो इसमें कितनी गर्मी है…’

इस बार तीन-चार जनों ने जमुना का विरोध किया तो जमुना को लगा था कि उसे टोकने वालों को वह साथ नहीं लेकर आता तो कितना मजा आता।

अब तक नीरज को थोड़ा होश आ चुका था। जमुना तेज चलते हुए आया और जोर से एक लात टांगे चौड़ी किए हुए बैठे नीरज के अंडकोशों पर मारी। नीरज ‘आऽऽ..’ करते हुए दोनों हाथों से अपने अंडकोश पकड़कर धरती पर बिछ गया था।

एक और जने ने भी कचकची भींचते हुए धरती पर पड़े नीरज के पिछवाड़े पर लात लगाई थी-‘साला बहाने मारता है…’

यह देख प्रियंका ने दोनों हाथ जोड़ कहा-‘अंकल प्लीज..’

‘प्लीज की बच्ची थोड़ी देर रुक जा ब्याह करवाएंगे तुम्हारा…तसल्ली रख…पहले तेरे आशिक का टीका तो कर लेने दे…’ लात मारने वाले आदमी ने कहा।

जमुना ने कुर्ते की साइड वाली जेब से सल्फास की डब्बी निकाली। उसने अपने साथ आए राम सिहं को कहा-’ गाड़ी से पानी की बोतल लेकर आ।’

रामसिहं इस तरह भागकर गाड़ी की ओर गया कि यदि जरा भी लेट हो गया तो धरती उल्ट-पुल्ट हो जाएगी। वह भागकर ही आया और जमुना को बोतल पकड़ाई-‘लो भाई।’

जमुना बोला-‘पकड़े रहो।’

जमुना धरती पर उकडू बैठ गया। उसने नीरज को बाल पकड़कर उठाने की कोशिश की। नीरज उठा नहीं तो रामसिहं ने पीछे से सहारा देकर उसे बैठा किया और कसकर पकडे रहा।

जमुना ने डब्बी से दो सल्फास की गोलियां निकाली और नीरज को दी-‘ले अब ये गोलियां खा और दफा हो जा।’

नीरज ने जबड़ी भींच रखी थी। यदि इतने लोग ना होते तो वह एकाध को तो सही ठिकाने लगा देता। उसने दाएं हाथ से जोर का झपट्टा मारा। गोलियां दूर जाकर गिरी।

जमुना गुस्सा हो गया। उसने जी आया उतने जोर से एक बूंसा नीरज की आंख पर मारा था-‘साले जोर दिखाता है।’ नीरज की आंख सूज गई थी। उसके होठों से भी खून बहने लगा था।

जमुना ने फिर ट्राई किया। नीरज ने इस बार भी काफी विरोध किया था। दो आदमियों ने नीचे बैठकर नीरज के दोनों हाथ पकड़ लिए थे। जमुना ने अब नीरज के मुहं में गोलियां ठूसनी चाही थी, पर नीरज ने मुंह कसकर बंद कर लिया था। जमुना ने और जोर लगाया, पर प्रयास बेकार ही रहा। दो-तीन जनों ने और कोशिश की, पर सफलता न मिली। जमुना और दूसरे लोग बहुत थक गए थे।

एक जने ने सलाह दी थी-‘पहले इस छोरी को देकर देख लो।’

सुझाव अच्छा था। जमुना ने पहले तो नीरज वाला गुस्सा प्रियंका पर उतारा। उसके तीन-चार थप्पड़ मारे। पांच-छह गालियां दीं। फिर गोलियां देने की वही प्रक्रिया दोहराई। प्रियंका ने नीरज की हालत देख ली थी। उसने थोड़े से विरोध के बाद अपने हाथों से गोलियां निगल लीं।

नीरज तड़फड़ाया-‘नहीं।’

गोलियां प्रियंका के भीतर गई तो उसका जी घबराने लगा।

उसे देख नीरज जोर-जोर से गालियां बकने लगा और बोला-‘लाओ मुझे भी दे दो तुम्हारा जहर। कौन-सा इससे हमारा प्रेम खत्म हो जाएगा। किस-किस को रोकोगे तुम। किस-किस को। गांव में दस जोड़े हैं जो भागने को तैयार हैं। वे कल भागेंगे। तुम परसों उनको मार देना। देखना प्रेम तुम्हारे रोकने से रुकता है क्या।’

उसने खुद आदमियों से अपने हाथ छुडाकर जमना के हाथों से गोलियों की डब्बी छीनी और डब्बी की सारी गोलियां अपनी हथेली में उड़ेल उन्हें एक साथ मुहं में डाल लिया। साथ खड़े आदमी से बोतल खोस सारा पानी गटगट पी गया।

यह सब इतना तेजी से घटित हुआ कि जमुना के साथ दूसरे सब जने देखते रह गए।

दोनों देहों ने जब देर तक तडफकर दम तोड दिया तो भी जमना शांत नहीं हुआ था। उसने साथ खड़े कैलाश से जेली लेकर उसे प्रियंका के आधे उघड़े पेट में बेरहमी से घोंप जोर से कहा था-‘जो प्रेम करेगा, उसका यही अंजाम होगा।’

जमुना ने लाशों को नहर में फेंकने को कहा तो साथ आए लोगों ने लाशें नहर में फेंक दी। नहर से ‘छपाक’ की आवाज आई।

वहां जितने भी खड़े थे, सबके सब पसीने से लथपथ थे।

जमुना गाड़ी की सीट पर बैठा अभी भी हांफ रहा था।

वह अपने साथ वाले से पूछ रहा था-‘ठीक किया ना भाई।’

भाई बोला-‘ठीक, बहुत ठीक।’

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’