स्वयं राम बनकर इस पृथ्वी पर आये तो अपने लिए 3 मांओं का प्रेम पाया क्योंकि उनको मालूम है प्रेम मिलना कठिन होता है, अब ना जाने कब अवतार लूंगा इसलिए पहले ही अपने लिये ममता के सागर में गौते लगाने के लिए 3 मां की ममता का इंतजाम कर लिया, जब श्रीकृष्ण बन कर आये तो सम्पूर्ण संसार को प्रेममय् कर दिया, हर तरफ  प्रेम फैला दिया, यहां भी अपने लिए स्वयं दो-दो मांओं का वात्सल्य लिया, यशोदा का नन्दलाल बन गया, उनके प्रेम में डूब गया, वैकुण्ठ छोड़ कर एक छोटे से गांव में प्रेम की गंगा में खुद भी डूबे और पूरे वृन्दावन, मथुरा, संसार और तीनों लोकों को डूबा दिया। जब भी मौका मिले की कोई उनसे प्रेम करें तो वो अपने प्रेमी के लिए वैकुण्ठ तक छोड़ देते हैं उसके पास आ जाते हैं भगवान कहते हैं- ‘तुम कुछ मत करों, मुझ पर छोड़ दो सब कुछ, बस मुझसे प्रेम करों, मेरी भक्ति करों। ऐसा ही एक बार एक भगवान की एक भक्त मथुरा में दूध बेचने जाया करती थी, रास्ते में जमुना से दूध में पानी भी मिला लिया करती थी ताकि ज्यादा दूध हो जाये, उस दूध से कुछ दूध निकाल कर ठाकुर जी के मंदिर में दिया करती थी ठाकुरजी के भोग के लिए, बाकि दूध को बाजार में बेच कर अपना गुजारा करती थी। उस महिला के लाये हुये दूध से ठाकुर जी को प्रतिदिन भोग लगता था। वह प्रतिदिन चुपके से सबकी नजरों से बचकर दूध में जमुना जी का पानी मिला दिया करती थी। एक दिन जब उसने जमुना जी का पानी दूध में मिलाया तो उसमें गलती से एक मछली चली गई, दूध ठाकुर जी के मन्दिर में दिया गया, अब उस दूध से ठाकुरजी को भोग लगने वाला था कि गोस्वामी जी ने देखा ये क्या दूध में मछली, लो हो गया सारा भोग खंडित, सारे पकवान बेकार, गोस्वामी जी का क्रोध बढ़ गया भगवान के दूध में मछली, वो दूधवाली स्त्री दूध में पानी मिलाती है, पानी मिले हुये दूध से प्रतिदिन ठाकुर को भोग लगता है ? हे भगवान, ये क्या अनर्थ हो गया, दूध में पानी मिलाती है वो भी गन्दा पानी मछली आ गई, बस फिर सफाईर् हुई मन्दिर की, गंगा जल से पवित्र किया गया। स्त्री को मन्दिर में प्रवेश नहीं करने दिया। गोस्वामी जी ने कहा ‘आज के बाद तेरा दूध बन्द, तू ठाकुर जी को पानी मिला हुआ दूध देती थी, मछली थी दूध में, ऐसा दूध देती थी आज के बाद मन्दिर के आस-पास मत दिख जाना।

अब वो महिला रोती है, मन से रोती है, मुझसे गलती हो गई मैं दूध में पानी मिलाती थी पर ‘हे कृष्णा’ तुझे तो मालूम था ही कि मैं दूध में पानी मिलाती हूं, रोती रही, रोते हुए अपने घर आई ठाकुर जी को याद करके क्षमा मांगते हुए रोने लगी, भूखी-प्यासी, कुछ नहीं खाया, बस रोती रही, तभी दरवाजे पर एक व्यक्ति आया, कोई है अन्दर, वो महिला आई बोली हां। माई कुछ खाने को मिलेगा क्या? बहुत भूखा हूं, बहुत भूख लगी है! उस आदमी को अन्दर लेकर गई कहा कुछ नहीं है घर में खाने के लिए, उसने कहा मईया कुछ भी दे दे कल से भूखा हूं, स्त्री ने कहा दूध रखा है परन्तु उसमें मछली आ गई थी, मछली वाला दूध है, व्यक्ति ने कहा ‘हां’ वो ही दे दे, मैं वो ही पी लूंगा, स्त्री ने दूध दिया उसने वो दूध पी लिया, दूध पीकर उस व्यक्ति ने कहा मईया नींद आ रही है, क्या में यहां पर सो सकता हूं? स्त्री बोली सो जाओ, वह वहां पर सो गया, जमीन पर ही, स्त्री ने देखा उसको सोते हुए सर्दी लग रही है तो उसने अपनी फटी हुई चुन्नी उसको उड़ा दी। फिर वहीं पर बैठ कर रोते-रोते सो गई तभी उसके स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण आये बोले माईया तू इतने प्रेम से मेरे लिये प्रतिदिन दूध लाती थी आज नहीं लाई, क्यों? देख दूध पीने के लिए मैं स्वयं ही तेरे घर पर आ गया। एक दम से उसकी आंखें खुली देखा ‘वो व्यक्ति तो यहां पर है ही नहीं’, भगवान वहां से चले गए थे और अपना पिताम्बर छोड़ दिया, स्त्री खुशी में पागल हो गई, भागती-भागती मन्दिर में गई गोस्वामी मिले उसको पिताम्बर दिखाया, कहा ‘ठाकुर जी मेरे घर पर अपना पिताम्बर भूल गए’, गोस्वामी हैरान, ठाकुर जी की मूर्ति को देखा तो देख कर दंग रह गऐ, ठाकुरजी पिताम्बर के स्थान पर अपने भगत की चुन्नी औड़े हुए है, गोस्वामी जी गिर गए उस स्त्री के चरणों में। 

भगवान ऐसे ही है उनकों भी प्रेम चाहिए वो प्रेम के भूखे है, वो प्रेम के वश में हो जाते हैं इसलिए उनके जितने भी भगत है वो धर्म-कर्म, अर्थ, जगत आदि को नहीं मानते वो सिर्फ अपने भगवान से प्रेम करते हैं, अपने आप को उनको समर्पण, दर्पण कर देते हैं और कहते रहते हैं:

‘मेरी आंखों को एक मयखाना बना दिया।

मेरे जीवन को अपने नशे में लगा दिया।

मेरी औकात नहीं कि तेरे नाम की शराब पी सकूं।

फिर भी तुने, मुझे अपने चरणों का दीवाना बना दिया।’

यह भी पढ़ें –व्रतों से आरोग्य की प्राप्ति