pooja
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‘भक्तिविजय’ के रचयिता सन्त महीपति पहले ग्रामप्रधान का काम करते थे। एक बार वे पूजा कर रहे थे कि जागीरदार का सिपाही उन्हें बुलाने आया। इससे पूजा में व्यवधान आया। सिपाही ने कहा कि कोई आवश्यक काम है और उन्हें शीघ्र चलने को कहा गया है। महीपति के लिए समस्या उत्पन्न हो गयी। यदि उठते हैं, तो पूरी पूजा हुई नहीं है और न जाएँ, तो जागीरदार नाराज हो जाएगा। आखिर पूजा किये बिना ही उन्हें उठना पड़ा।

काम करके वापस आने पर उन्होंने नहाकर फिर से पूजा की। उन्हें बड़ा ही दुःख हुआ कि उन्हें पूजा पूरी किये बिना ही उठना पड़ा था। उन्होंने स्वयं को धिक्कारा कि यह जीवन भी कोई जीवन है, जिसमें अपनी इच्छानुरूप भगवान् की पूजा भी नहीं की जा सकती।

उन्होंने तुरन्त नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और प्रतिज्ञा की कि लेखनी का उपयोग भगवान् का गुण-गौरव और सन्तचरित्र लिखने में ही करेंगे। और उन्होंने इस प्रकार भक्तिविजय, भक्तलीलामृत, सन्तलीलामृत आदि की रचना की।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)