Mulla Nasruddin
Mulla Nasruddin

Mulla Nasruddin ki kahaniya: सिपाही नसरुद्दीन को कैदखाने से बाहर लाए तो उसने कहा, ‘क्या तुम लोग मुझे अपनी पीठ पर लादकर ले चलोगे? अफ़सोस मेरा गधा इस वक्त यहाँ नहीं है। वह हँसी के मारे लोटपोट हो जाता। ‘
‘ख़ामोश, अपना मुँह बंद कर।’ सिपाहियों ने बिगड़कर कहा ।
वे उसे क्षमा नहीं कर सकते थे, क्योंकि उसने खुद ही अपने-आपको अमीर के सुपुर्द कर दिया था, जिससे उनका इनाम मारा गया था।

उन्होंने एक सँकरे बोरे में नसरुद्दीन को हँसना शुरू कर दिया।

दोहरा – तिहरा होता हुआ नसरुद्दीन चिल्लाया, ‘अरे शैतानो, क्या तुम्हें बड़ा थैला नहीं मिल सकता था?’

पसीने से लथपथ, हाँफते हुए सिपाहियों ने डपटकर कहा, ‘ख़ामोश, अब तेरी चलने की नहीं है। इस तरह मत फैल, वरना तेरे पैर तेरे पेट में हँस देंगे। ‘

बड़ी कोशिश से सिपाही नसरुद्दीन को बोरे में बंद करने और बोरे का मुँह रस्से से बाँध पाने में सफल हो सके। बोरे के भीतर अँधेरा, घुटन और बदबू थी। नसरुद्दीन की रूह पर काला कोहरा छा गया। अब बच निकलने की कोई उम्मीद नहीं रही थी।

उसने भाग्य और सबसे अधिक शक्तिशाली अफसर से प्रार्थना की, किस्मत, तू मेरी माँ की तरह मुझ पर मेहरबान है । ऐ सबसे ज़्यादा ताक़तवर मौके, तूने अब तक अपने बच्चे की तरह मेरी हिफ़ाजत की है। कहाँ हो तुम? नसरुद्दीन की मदद के लिए जल्दी क्यों नहीं आते। इन लोगों ने मुझे गंदे बदबूदार थैले में बंद कर दिया है और कीचड़ भरे पोखरे में डुबाने ले जा रहे हैं । इन्साफ़ कहाँ है? सच्चाई कहाँ है? नहीं, यह नहीं हो सकता। कुछ-न-कुछ तो होना ही चाहिए। आग, भूचाल, बगावत । ऐ क़िस्मत, ऐ मौके, कुछ-न-कुछ तो होना ही चाहिए।’

इस बीच पहरेदार तालाब का आधा रास्ता पार कर चुके थे। लेकिन अब तक कुछ भी नहीं हुआ था। वे बारी-बारी थैला लाद रहे थे। हर दो सौ क़दम पर बोझा बदल रहे थे। नसरुद्दीन छोटे-छोटे क़दम गिन रहा था। इससे उसने अनुमान लगा लिया था कि कितना रास्ता तय हो चुका है और कितना बाकी है।

वह जानता था कि भाग्य और अवसर उस व्यक्ति की सहायता नहीं करते, जो रोता- पीटता है। जो दिलेरी से काम नहीं लेता। लेकिन जो लगन से बढ़ता जाता है वही मंज़िल पर पहुँच पाता है।

नहीं, मैं आज नहीं मरूँगा ।’ उसने दाँत भींचकर कहा, ‘मैं आज मरना नहीं चाहता।’

नहीं, मैं आज नहीं मरूँगा ।’ उसने दाँत भींचकर कहा, ‘मैं आज मरना नहीं
फिर उससे थैले के अंदर से कहा, ‘ऐ बहादुर सिपाहियो, ज़रा एक पल के लिए रुको। मरने से पहले मैं दुआ करना चाहता हूँ ताकि अल्लाह मेरी रूह को कबूल कर ले।’

अच्छा दुआ कर लो।’ सिपाहियों ने थैला ज़मीन पर रख दिया, ‘हम तुम्हें बाहर नहीं निकालेंगे। थैले में से ही दुआ कर लो। लेकिन जल्दी ।’
‘हम हैं कहाँ?’ नसरुद्दीन ने पूछा, ‘मुझे यह मालूम होना चाहिए, क्योंकि तुम्हें मेरा मुँह मस्जिद की ओर करना होगा।’
‘हम लोग दर्शी फाटक के पास हैं। यहाँ चारों ओर मस्जिदें – ही – मस्जिदें हैं। बस जल्दी से अपनी दुआ ख़त्म करो।’
‘शुक्रिया बहादुर सिपाहियो ।’ गम भरी आवाज़ में नसरुद्दीन ने कहा ।
वह खुद नहीं जानता था कि क्या होने वाला है। उसने सोचा, दुआ करने के नाम पर मुझे कुछ मिनटों की मोहलत मिल जाएगी। फिर देखा जाएगा। तब तक कुछ ऐसा हो सकता है कि…..

वह ज़ोर-ज़ोर से दुआ करने लगा। सिपाही बातें करने लगे।

एक ने कहा, ‘आख़िर ऐसा हुआ ही कैसे कि हम लोग भाँप ही नहीं पाए कि नसरुद्दीन ही नया आलिम है। काश, उसे पहचानकर हम पकड़ लेते तो अमीर से हमें भारी इनाम मिलता । ‘

नसरुद्दीन फौरन इसका लाभ उठाने के लिए तैयार हो गया।

तभी एक सिपाही थैले में लात मारकर गुर्राया, ‘जल्दी ख़त्म कर अपनी दुआ। हम अब ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकते।’

‘ऐ नेक और बहादुर सिपाहियो, मुझे खुंदा से एक ही इल्तिजा करनी है। ऐ मेहरबान अल्लाह, तू ऐसा कर दे कि जिस किसी को भी मेरे दस हज़ार तके मिलें, वह उनमें से एक हज़ार किसी मस्जिद में दे आए और मुल्ला से मेरे लिए एक साल तक दुआ करने को कहे । ‘
‘दस हज़ार तंके ? ‘
दस हज़ार तंकों की बात सुनकर सिपाही ख़ामोश हो गए।

‘अब मुझे ले चलो। मैंने अपनी रूह अल्लाह के सुपुर्द कर दी । ‘ नसरुद्दीन ने सहमकर दबी जबान से कहा।

एक सिपाही ने उसे उकसाते हुए कहा, ‘हम ज़रा देर और सुस्ता लें। तुम यह मत समझना कि हम लोग बुरे हैं या हमारे दिल नहीं हैं। अपने क़र्ज़ की वजह से तुम्हारे साथ ऐसा सख़्त बर्ताव करने पर मजबूर हैं। अमीर से तनख़्वाह पाए बिना अगर हम अपने कुनबे को पालने लायक हो जाते तो तुम्हें रिहा करने में हमें कोई हिचक न होती । ‘


दूसरा सिपाही फुसफसाया, ‘यह तुम क्या कह रहे हो? हमने इसे बाहर निकाला तो अमीर हमारा सिर काट डालेंगे। ‘
पहले सिपाही ने ठंडी साँस लेकर कहा, ‘अपनी जबान बंद रख। हमें तो सिर्फ इसका रुपया चाहिए। ‘
नसरुद्दीन उनकी फुसफुसाहट नहीं सुन सका । लेकिन समझ गया कि वे किस सिलसिले में बातें कर रहे हैं।

बड़ी विवश्ता से आह भरते हुए बोला, ‘ऐ बहादुरो, मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है। तुम कह रहे हो कि अगर तुम्हें अमीर की तनख़्वाह की ज़रूरत न होती तो तुम मुझे थैले से बाहर आ जाने देते। ज़रा सोचो कि तुम क्या कह रहे हो। तुम अमीर के हुक्म के ख़िलाफ़ काम करते, जो बहुत बड़ा गुनाह है। नहीं, मैं नहीं चाहता कि मेरी ख़ातिर तुम्हारी रूहों पर गुनाह का साया पड़े। उठाओ थैला और मुझे तालाब की ओर ले चलो। अमीर की मन्शा और अल्लाह की मन्शा होकर रहेगी । ‘

तीसरे सिपाही ने अपने साथियों को आँख मारकर कहा, ‘मैं अपने वतन में एक मस्जिद बनवा रहा हूँ। इसके लिए मैं और मेरे ख़ानदान वाले भरपेट खाना भी नहीं खाते। मैं ताँबे का एक-एक तंका बचाकर रखता हूँ। लेकिन मस्जिद का काम बहुत आहिस्ता चल रहा है। मैंने हाल ही में अपनी गाय बेच डाली है। भले ही मुझे जूते तक बेच देने पड़ें लेकिन वह काम पूरा हो जाए, जो मैंने शुरू किया है। मैं नंगे पाँव चलने के लिए तैयार हूँ। ‘

नसरुद्दीन ने थैले के भीतर एक सिसकी भरी । सिपाहियों ने एक-दूसरे को ताका। चाल काम कर रही थी। उन्होंने अपने चालाक साथी को कोहनी मारी कि वह अपनी बात जारी रखे।
वह बोला, ‘काश, मुझे ऐसा आदमी मिल जाता जो मस्जिद पूरी करने के लिए आठ-दस हज़ार तके दे देता । मैं उससे वायदा कर लेता कि पाँच बल्कि दस साल तक लगातार अल्लाह के तख़्त की ओर मस्जिद की छत से इबादत के महकते हुए बादलों से लिपटा उसका नाम रोज़ाना ऊपर उठता रहेगा।’

दूसरा सिपाही बोला, ‘दोस्त, मेरे पास दस हज़ार तंके नहीं हैं, लेकिन तुम मेरी कमाई की सारी बचत पाँच सौ तंके कबूल कर लो। मेरी यह नाचीज़ भेंट ठुकराना मत। क्योंकि मैं भी इस नेक काम में हाथ बँटाना चाहता हूँ।’
दबी हुई खुशी और हँसी से काँपता दूसरा सिपाही हकलाकर बोला, ‘और मैं भी लेकिन मेरे पास तो कुल तीन सौ तके हैं। ‘
दर्द भरी आवाज़ में नसरुद्दीन बोला, ‘ऐ नेक आदमी, सबसे ज्यादा पाक सिपाही, काश मैं तुम्हारी पोशाक का दामन अपने होठों से चूम सकता। मुझ पर मेहरबानी करो। मेरी भेंट लेने से इन्कार मत करना। मेरे पास दस हज़ार तके हैं। मैंने कब्रिस्तान में गाड़ दिए थे। कब्र के एक पत्थर के नीचे । ‘
सिपाही चिल्ला उठे, ‘कब्रिस्तान ? अरे वह तो पास ही है। ‘
‘हाँ, हम लोग कब्रिस्तान के उत्तरी कोने पर हैं। तुमने तके कहाँ छिपाए हैं?’ नसरुद्दीन ने कहा, ‘कब्रिस्तान के पश्चिमी कोने में हैं। लेकिन ऐ नेक सिपाही, पहले मुझसे वायदा करो कि मेरा नाम सचमुच दस बरस तक मस्जिद में रोज़ाना लिया जाएगा।’
बेताब होकर सिपाही बोला, ‘मैं वायदा करता हूँ, मैं अल्लाह और उनके पैगंबर के नाम पर वायदा करता हूँ। अब तुम जल्द बताओ कि तंके कहाँ गड़े हैं?

‘ नसरुद्दीन ने उत्तर देने में काफ़ी समय लगाया। वह सोच रहा था कि अगर इन लोगों ने तय किया कि पहले मुझे तालाब पहुँचा दें और रुपयों की खोज कल तक टाल दें तो ग़ज़ब हो जाएगा।

नहीं, ये लोग बेताबी और लालच के मारे मरे जा रहे हैं। इन्हें पता होगा कि कोई और इनसे पहले आकर रकम निकाल कर न ले जाए। इन लोगों को आपस में भी एक-दूसरे पर यकीन नहीं है। इन्हें कौनसी जगह बताऊँ, जहाँ ये ज़्यादा देर तक खोजते रहें ।

थैले पर झुक सिपाही जवाब का इंतज़ार कर रहे थे।

अच्छा सुनो,’ नसरुद्दीन ने कहा, ‘कब्रिस्तान के पश्चिमी कोने में कब्रों के तीन पुराने पत्थर हैं, जो एक तिकोन बनाते हैं। इस तिकोने के तीनों कोनों के नीचे मैंने तीन हज़ार तीन सौ तैंतीस और एक तिहाई तंका गाड़ रखे हैं । ‘
‘ तिकोने के तीनों कोनों के नीचे!’ सिपाहियों ने एक साथ दोहराया, ‘तीन हज़ार तीन सौ तैंतीस और एक तिहाई तंका…!’

उन्होंने तय किया कि दो सिपाही तंकों की खोज में जाएँगे और तीसरा यहीं पहरा देगा।


दो सिपाही कब्रिस्तान की ओर चले गए। तीसरा गहरी साँसें भरता, खाँसता और सड़क पर हथियार खड़खड़ाते हुए चहलकदमी करने लगा।

कुछ देर बाद उसने कहा, ‘बड़ी देर लगा दी उन लोगों ने।’

‘शायद वे रक़म को किसी दूसरी जगह छिपा रहे होंगे ताकि आप सब कल इकट्ठे आकर उसे ले जाएँ।’ नसरुद्दीन ने कहा ।

बात असर कर गई। सिपाही ने ज़ोर से साँस खींची और जम्हाई लेने का बहाना करने लगा।

‘मरने से पहले कोई नसीहत भरी कहानी सुनना चाहता हूँ। ऐ नेक सिणही, शायद तुम्हें कोई कहानी याद हो ।’ थैले में से नसरुद्दीन ने कहा ।

सिपाही नाराज़ होकर बोला, ‘नहीं, मुझे कोई कहानी याद नहीं है। मैं थक गया हूँ। मैं जाकर ज़रा घास पर लेदूँगा

‘उसे मालूम नहीं था कि सख्त ज़मीन पर उसके क़दमों की आवाज़ दूर से सुनाई देगी। पहले तो वह धीरे-धीरे चला फिर नसरुद्दीन को तेज़ क़दमों की आवाज़ सुनाई दी। सिपाही तेज़ी से भाग रहा था।

कुछ कर गुज़रने का वक्त आ गया था। नसरुद्दीन बहुत लोटा – पोटा- लुढ़का। लेकिन रस्सा नहीं टूटा ।

‘ऐ मुकद्दर किसी राहगीर को भेज दे। ऐ अल्लाह किसी राहगीर को भेज दे।’

नसरुद्दीन दुआ करने लगा। ने एक राहगीर भेज दिया।

राहगीर धीरे-धीरे आ रहा था। उसकी चाल से मुल्ला नसरुद्दीन ने अनुमान लगा लिया कि वह लँगड़ा है। हाँफ रहा था इससे स्पष्ट हो गया कि वह बूढ़ा है। ‘

थैला रास्ते के बीचों बीच पड़ा था।

राहगीर रुका, कुछ देर तक थैले को देखता रहा फिर पैर से टटोलने लगा।

क्या हो सकता है इस थैले में? यह आया कहाँ से?’ उसने खरखराती आवाज़ में कहा।

नसरुद्दीन ने आवाज़ पहचान ली। वह सूदखोर जाफ़र की आवाज़ थी । वह धीरे से खाँसा।

‘ओ हो, इसमें तो कोई आदमी है।’ जाफ़र पीछे को हटते हुए बोला ।

‘बेशक इसमें आदमी है।’ नसरुद्दीन ने आवाज़ बदलकर बड़े इत्मीनान से कहा, ‘इसमें ताज्जुब की क्या बात है ? ‘
‘ताज्जुब की बात? तुम थैले में बंद क्यों हो?’

यह मेरा निजी मामला है । तुम्हें इससे क्या । अपना रास्ता नापो । मुझे अपने सवालों से परेशान मत करो । ‘

‘सचमुच बड़े ताज्जुब की बात है।’ सूदखोर बोला, ‘एक आदमी थैले में बंद है और थैला सड़क पर पड़ा है। ऐ भाई, क्या तुम्हें जबर्दस्ती इस थैले में बंद किया गया था?’

‘जबर्दस्ती?’ नसरुद्दीन चिढ़कर बोला, ‘क्या छः सौ तंके इसलिए ख़र्च करूँगा कि कोई मुझे जबर्दस्ती थैले में बंद करे ।

‘छः सौ तंके ? तुमने छः सौ तंके क्यों ख़र्च किए?’

‘ऐ मुसाफ़िर, अगर तुम वायदा करो कि मेरी बात सुनने के बाद तुम अपना रास्ता लोगे और मुझे परेशान न करोगे तो मैं तुम्हें पूरी कहानी सुना दूँ। यह थैला एक अरब का है, जो बुखारा में रहता है। इसमें जादू की खूबी है कि बीमारी और बेडौल बदन को ठीक कर देता है। इसका मालिक इसे किराए पर देता है। लेकिन भारी रक़म लेता है। और हर ऐरे गैरे को नहीं देता । मैं लँगड़ा था। मेरा कूबड़ निकला था। एक आँख से काना भी था। मैं शादी करना चाहता हूँ। लड़की का बाप अपनी बेटी को मेरी बदसूरती देखने से बचाना चाहता था। मुझे उस अरब के पास ले गया। मैंने उसे छः सौ तंके दे दिए और चार घंटे के लिए यह थैला ले लिया। ‘

थैला अपना असर कब्रिस्तान के क़रीब ही दिखाता है। इसलिए सूरज डूबते ही मैं कर्शी कब्रिस्तान में चला आया। मेरी होने वाली बीवी का बाप मुझे इस थैले में घुसाकर और ऊपर से रस्सा बाँधकर चला गया। मुमकिन था कि किसी गैर की मौजूदगी में इलाज न हो पाता। थैले वाले ने मुझे बताया था कि जैसे ही मैं अकेला रह जाऊँगा, तीन जिन ज़ोर-ज़ोर से पीतल के पंख खड़खड़ाते हुए आएँगे । इन्सानों की जबान में मुझसे पूछेंगे कि दस हज़ार तके कब्रिस्तान के किस हिस्से में गड़े हैं? मैं जवाब में उन्हें जादू के बोल सुनाऊँगा, ताँबे जैसी ढाल है जिसकी, उसका माथा ताँबे का। उकाब के पर उल्लू । ऐ जिन, तू पूछता है पता उस रक़म का, जो तूने छिपाई नहीं। इसलिए पलट और चूम मेरे गधे की दुम । ‘
जैसा उसने बताया था ठीक वैसा ही हुआ। जिन आए और मुझसे पूछा – ‘दस हज़ार तके कहाँ गड़े हैं?’ मैंने जवाब दिया तो वे तैश में आ गए और मुझे पीटने लगे।

लेकिन मैं हिदायत के मुताबिक चिल्लाता रहा। ताँबे जैसी ढाल है जिसकी, उसका माथा ताँबे का इसलिए पलट और चूम मेरे गधे की दुम । जिनों ने थैला उठा लिया और चल पड़े। इसके बाद मुझे कुछ याद नहीं। दो घंटे बाद होश आया तो देखा मैं बिल्कुल तंदुरुस्त हो गया हूँ और वहीं पड़ा हूँ, जहाँ से वे मुझे ले गए थे। ‘

‘मेरा कूबड़ गायब हो गया है। मैं दोनों आँखों से देख सकता हूँ। अब मैं यहाँ इसलिए बंद हूँ कि पूरी रकम अदा करने के बाद उसे बेकार जाने देना ठीक नहीं। बेशक मैंने एक गलती की। मुझे पहले ही एक ऐसे आदमी से समझौता कर लेना चाहिए था, जिसे मेरी जैसी सारी बीमारियाँ होतीं। तब हम लोग थैले को साझे में किराये पर ले लेते और दो-दो घंटे इसमें रहते। इस तरह तीन-तीन सौ तके ख़र्च होते लेकिन अब क्या हो सकता है। रक़म तो बर्बाद हो ही गई। लेकिन खुशी है कि मेरा इलाज पूरा हो गया। ‘

‘ऐ राहगीर, तुमने पूरी कहानी सुन ली। अब अपना वायदा पूरा करो। अपनी राह पकड़ो। इलाज के बाद मुझे कमज़ोरी महसूस हो रही है। तुमसे पहले नौ आदमी मुझसे यही सवाल कर चुके हैं। बार-बार दोहराते मैं थक गया हूँ।’
सूदखोर ने सारी बातें ध्यान से सुनीं फिर बोला, ‘ऐ थैले में बंद इन्सान, मेरी भी सुन। हमारी इस मुलाक़ात से हम दोनों को फायदा हो सकता है। तुम्हें इस बात का गुम है कि तुमने किसी ऐसे साझीदार को ढूँढने की कोशिश नहीं की, जिसको तुम्हारी जैसी बीमारियाँ हों। लेकिन घबराओ मत। देर नहीं हुई है। मैं कुबड़ा हूँ। दाएँ पैर से लँगड़ा हूँ और एक आँख से काना हूँ। मैं बाकी दो घंटे थैले में रहने के लिए खुशी से तीन सौ तके तुम्हें दे सकता हूँ। ‘
‘मेरा मज़ाक मत उड़ाओ । कहीं ऐसा भी संयोग हुआ है। लेकिन अगर तुम सच बोल रहे हो तो अल्लाह का शुक्रिया अदा करो, जिसने ऐसा मौक़ा तुम्हें दे दिया। मैं थैला ख़ाली करने के लिए तैयार हूँ लेकिन मैंने थैले का किराया पेशगी दिया था। तुमसे भी पेशगी लूँगा । थैला उधार नहीं दूँगा । ‘
‘मैं पेशगी दूँगा।’ थैले को खोलते हुए सूदखोर बोला, ‘लेकिन वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए। अब हर मिनट मेरा है । ‘
थैले से निकलते समय नसरुद्दीन ने अपना चेहरा आस्तीन से छिपा लिया। लेकिन सूदखोर ने उसकी ओर नहीं देखा। वह फुर्ती से रक़म गिनकर काँपते कराहते थैले में घुस गया।
नसरुद्दीन ने थैले के मुँह पर रस्सा कस दिया और एक पेड़ की आड़ में जा छिपा।
तभी कब्रिस्तान की ओर से सिपाहियों के ज़ोर-ज़ोर से गाली देने की आवाजें सुनाई दीं। थोड़ी देर में ही अपने ताँबे के भाले चमकाते वे थैले के पास पहुँच गए।

ये कहानी ‘मुल्ला नसरुद्दीन’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Mullah Nasruddin(मुल्ला नसरुद्दीन)