सच्ची लगन-21 श्रेष्ठ बुन्देली लोक कथाएं मध्यप्रदेश: Parvati and Shiva Story
Sacchi Lagan

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

Parvati and Shiva Story: बहुत पुरानी बात है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती ने श्मशानवासी शंकर से शादी करने का प्रण लिया। हिमालय को पता चला तो वे बहुत दुखी हुए। कहाँ वे पर्वतराज, कहाँ भिखारियों की तरह रहने वाला शंकर। कहाँ लाड़-प्यार में पली सुकोमल राजकुमारी पार्वती, कहाँ सन्यासियों की तरह कठोर जीवन बिताने का अभ्यासी शंकर। दोनों में कोई तालमेल ही नहीं, फिर कैसे कर दें वे पार्वती का शंकर के साथ विवाह। यही चिंता पार्वती की माँ मैना को सता रही थी। दोनों समझा-बुझाकर हार गए किंतु पार्वती न मानीं तो न मानीं।

विवाह का प्रस्ताव शंकर की और से आता तो हिमालय ठुकरा देते, शंकर को समझाते पर यहाँ तो उल्टी बात थी कि पार्वती हठ ठाने बैठी थीं और शंकर नहीं मान रहे थे। हिमालय ने अपनी समस्या की जानकारी दूत से नारद मुनि को कहलाई। महामुनि नारद ने सुना तो झट से हिमालय की सहायता करने के लिए चल पड़े। नारद पर्वतराज हिमालय के दरबार में पहुँचे। पर्वतराज ने आसन से उठकर देवर्षि नारद को प्रणाम किया। आतिथ्य स्वीकार करने के पहले नारद ने राजकुमारी को आशीर्वाद देने की इच्छा व्यक्त की।

पार्वती की हस्त रेखा और मस्तक रेखाएँ देखकर नारद ने कहा कि तुम्हारे भाग्य में अखण्ड सौभाग्यवती होने का योग है और तुम्हारा सुहाग तीनों लोक में पूज्य होगा।

यह सुनकर हिमालय बहुत प्रसन्न हुए और पूछ बैठे कि ऐसा वर कहाँ मिलेगा? आप ही कुछ अता-पता बताइए।

नारद बोले मैं तो ऐसे लक्षणों से युक्त एक ही वर को जानता हूँ।

हिमालय बोले कि हे त्रिलोक में विचरण करने वाले मुनिराज आप कृपाकर उनका नाम बताइए और उन्हें पार्वती से विवाह हेतु मनाइए।

नारद ने कहा ऐसे शुभ लक्षणों से युक्त एकमात्र वर श्री विष्णु हैं। वे मेरी बात नहीं टालेंगे। उनसे पार्वती का विवाह तय कर आता हूँ। यह कह कर नारद जाने को उद्यत हुए।

पार्वती ने यह सुना तो आपे से बाहर होकर आसमान सिर पर उठा लिया। शिव से विवाह करने का अपना दृढ़ संकल्प दोहराते हुए पार्वती ने नारद तथा विष्णु को खूब खरी-खोटी सुनाई।

नारद ने किसी बात का बुरा न मानते हुए शंकर से विवाह की राह में आने आने वाली अड़चनों और संकटों से आगाह किया। पार्वती सुनी-अनसुनी करते हुए सखी सहित जंगल में जाकर मनोकामना पूरी होने तक तपस्या करने चल दीं। कहाँ जा रही हैं, कब लौटेंगी यह किसी को नहीं बताया और अपनी विश्वासपात्र सेविका के साथ अज्ञातवास पर चली गई।

जंगल में पार्वती ने बारह वर्ष तक केवल फल ग्रहण किए। फिर बारह वर्ष तक सिर्फ बेलपत्र खाकर तपस्या की। फिर एक माह तक धुम्रपान करने के बाद माघ माह में जल में खड़ी रहीं, फिर वैशाख मास में पंचधूनी तापी। अंत में सावन महीने में निराहार भी रहीं।

इस बीच पिता हिमालय अपने अनुचरों से लगातार पार्वती की खोज कराते रहे पर कहीं भी पार्वती का पता नहीं चला। तब उन्होंने सब पर्वतों से पार्वती की खोज करने को कहा। इस बीच तप का प्रभाव न होते देख पार्वती ने एक गुफा में बालू के शिवलिंग बनाकर निराहार रहकर अहर्निश शिव पूजन आरंभ कर दिया। इस कठिन व्रत के प्रभाव से शंकर का आसन डोल गया। शंकर ने पार्वती को दर्शन देकर कहा कि वे पूजन से प्रसन्न हैं। पार्वती वर माँगें।

तब पार्वती ने शंकर से विवाह का वर माँगा। शंकर यह वरदान देकर कैलाश पर्वत पर जा विराजे। पार्वती ने व्रत का विधिवत समापन किया। इसी समय हिमालय पार्वती को खोजते हुए पहुंचे। उन्हें मन न होते हुए भी पार्वती का हठ स्वीकार करना पड़ा। वे पार्वती को घर ले आए तथा शंकर को अपनी कन्या पार्वती के साथ विवाह करने हेतु आमंत्रण भेजा। शंकर शिवरात्रि को बारात लेकर पधारे। उनकी बारात में भूत, प्रेत, अगिया, बैताल, योगिनियाँ आदि नाच-गा रहे थे। यह देखकर मैना बेसुध हो गईं। हिमालय की प्रजा बहुत भयभीत हुई पर शंकर ने अपनी शालीनता और दिव्यता से सबला मन मोह लिया। तब हिमालय ने धूमधाम से पार्वती का विवाह शंकर के साथ करा दिया।

‘हर’ अर्थात शंकर का पूजन ‘ताल’ में जल में खड़ी रहकर पूर्ण करने के कारण भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को आज भी स्त्रियाँ निर्जला रहकर हरतालिका व्रत करती हैं। वे सोलह श्रृंगार कर शाम को काली मिट्टी के शिव-पार्वती बनाकर प्रतिष्ठित कर सजाती हैं। बेलपत्र तथा फूलों से सज्जित फुलहरा शिवलिंग के ऊपर टाँगती हैं। गुझिया, पपड़िया आदि पकवानों के साथ तेंदू पत्ते के दोने में मके की लाई, महुआ, गुड़ आदि (वह सब जो पार्वती ने व्रत करते समय ग्रहण की थी) रखकर शाम, अर्धरात्रि तथा अलसवेरे पूजन कर हाथ में अक्षत (चावल के साबुत दाने) लेकर कथा सुनती हैं ताकि पार्वती की तरह वे भी अखंड सौभाग्यवती हों। उनका वर शंकर की तरह उनकी रक्षा करने वाला और उनसे सदा प्रेम करने वाला हो। हर सौभाग्यवती हरतालिका पूजन में रहती है मगन, ताके जनम जनम तक पूरी होती रहे उसके मन की सच्ची लगन।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’