एक था कौओं का राजा । उसका नाम था मेघवर्ण । उसने एक विशाल वटवृक्ष पर अपना डेरा डाला हुआ था । वहाँ उसने अपने लिए एक मजबूत किला बना रखा था, जिससे कोई शत्रु उसका या किसी भी कौए का अहित न कर पाए । फिर हजारों कौए हर वक्त उसकी सेवा में लगे रहते । मेघवर्ण के मंत्री भी बड़े स्वामिभक्त थे जो हर वक्त उसकी सेवा के लिए तैयार रहते ।
जिस बरगद के पेड़ पर मेघवर्ण रहता था, उससे कुछ दूर ही उल्लुओं का राजा अरिमर्दन भी रहता था । अरिमर्दन बड़ा क्रूर था । कौओं का तो वह पक्का वैरी था । जो भी कौआ अकेला दिखाई देता, उसे अरिमर्दन के सैनिक उल्लू पकड़कर मार डालते । इससे कौओं के दल में बड़ा आतंक फैल गया था और सभी बड़े दुखी थे । मेघवर्ण ने देखा, कुछ दिनों से अरिमर्दन के किले में बड़ी तेज गतिविधियाँ चल रही हैं । बहुत सारे उल्लू मेघवर्ण के किले के चारों ओर उड़ान भरते हुए हर वक्त टोह लेते रहते हैं ।
इससे कौओं का राजा मेघवर्ण बड़ी चिंता में पड़ गया । उसने अपने मंत्रियों से कहा, “यह तो शत्रु-सेना के हमले की निशानी है । उनकी दुष्टतापूर्ण गतिविधियां हर घड़ी बढ़ती जा रही हैं । हमें भी कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा ।”
सुनकर मेघवर्ण के मंत्री भी हाँ में हाँ मिलाकर बोले, “हाँ महाराज, यह बड़ा चुनौतीपूर्ण समय है । हमें होशियारी से शत्रु-पक्ष की चालों का जवाब देना चाहिए । नहीं तो हम सभी के लिए संकट पैदा हो जाएगा ।”
मेघवर्ण का एक मंत्री था स्थिरजीवी । वह बड़ा बुद्धिमान और भरोसेमंद भी था । उसने मेघवर्ण की ओर एक छिपा हुआ इशारा किया । फिर तत्काल पैंतरा बदलकर कहा, “महाराज, उपाय तो जरूर है, जिससे हम शत्रु के हमले से बच सकते हैं । पर मुझे शक है कि आप उसे नहीं मानेंगे । वैसे भी आप कौन से बुद्धिमान राजा हैं! बल्कि मैं तो आपको मूर्ख ही समझता हूँ । आप जैसा मूर्ख राजा होगा तो प्रजा कभी सुखी होगी ही नहीं ।”
सुनकर मेघवर्ण गुस्से के मारे आगबबूला हो गया । दूसरे मंत्रियों की भौंहें भी टेढ़ी हो गईं । बोले, “महाराज, लगता है कि यह दुश्मन का जासूस बन गया है और हमारी गुप्त सूचनाएँ उन्हें देता है । यह हमारी नहीं, दुश्मन की बोली बोल रहा है । इसलिए इसे जीवित नहीं छोड़ना चाहिए । इसे हम अभी जान से मार देते हैं ।”
मेघवर्ण गरजकर बोला, “नहीं, तुममें से कोई इसे हाथ नहीं लगाएगा । तुम इसे मेरे पास छोड़ दो । मैं इससे अच्छी तरह पूछुंगा कि इसने शत्रु को हमारी कौन-कौन सी गुप्त सूचनाएँ दी हैं । फिर इसे अच्छी तरह- दंडित करूँगा ।”
मेघवर्ण की बात सुनकर कौए वहाँ से चले गए ।
मेघवर्ण ने चोंच मार-मारकर स्थिरजीवी को घायल कर दिया । फिर उसे वहीं-पड़ा छोड़कर वह भी उड़ गया । स्थिरजीवी उसी पेड़ के नीचे घायल पड़ा था जिसमें कौओं के राजा मेघवर्ण का किला था । जल्दी ही उल्लुओं के राजा अरिमर्दन को उसके जासूसों ने सूचना दी । उसे पता चल गया कि कौओं का राजा मेघवर्ण अपना किला छोड़कर कहीं चला गया है । अब तो ठठ के ठठ उल्लू आए और उन्होंने झटपट मेघवर्ण के किले पर कब्जा कर लिया और वे खुशी से भरकर आनंद और जश्न मनाने लगे ।
पर एकाएक किसी उल्लू की निगाह उस पेड़ के नीचे घायल पड़े स्थिरजीवी पर पड़ी । उसने बाकी उल्लुओं को भी इस बारे में बताया ।
देखते ही देखते यह बात उल्लुओं के राजा अरिमर्दन को भी पता चली । उसने अपने सभी मंत्रियों से सलाह ली । अरिमर्दन के मंत्रियों में रक्ताक्ष सबसे अधिक चतुर और बुद्धिमान था । उसने कहा, “स्थिरजीवी कौआ भले ही घायल हुआ हो, लेकिन हमें यह नहीं भूलना नहीं चाहिए कि यह शत्रु राजा का मंत्री था । हमें इसका हरगिज भरोसा नहीं करना चाहिए और इसे जीवित नहीं छोड़ना चाहिए ।”
लेकिन बाकी मंत्रियों ने कहा, “नहीं महाराज, इस घायल कौए को मारना तो बेहद क्रूरता वाली बात है । इसकी बातों से भी लग रहा है कि अब यह कौओं के सरताज मेघवर्ण के साथ नहीं, बल्कि हमारे साथ है । फिर इसे मारकर हमें क्या मिलेगा?”
लेकिन रक्ताक्ष का फिर भी यही कहना था कि शत्रु दल के किसी भी प्राणी पर दया करना अपनी आत्महत्या जैसा है । इसे हमें तत्काल मार देना चाहिए नहीं तो हम सभी संकट में ही पड़ जाएँगे ।
स्थिरजीवी ने सोचा, ‘इस रक्ताक्ष के कारण मेरी तो कोई चाल सफल ही नहीं पा रही ।’ लिहाजा उसने बहुत ही दीन और आर्त वचनों में कहा, “महाराज, आप जल्दी-सी आग का प्रबंध कीजिए ताकि मैं उसमें जल मरूँ । शायद आग में जलकर ही मुझे मुक्ति मिले!”
इस पर सभी की आंखें भीग गई, पर रक्ताक्ष ने कठोर व्यंग्यपूर्ण वचनों से कहा, “आप ऐसा क्यों करना चाहते हैं
इस पर स्थिरजीवी ने जवाब दिया, “मेरे अंदर कौए के रूप में जीने की इच्छा नहीं है, क्योंकि कौए दुष्ट और विश्वासघाती होते हैं । मेरी इच्छा है कि आग में जलकर अगला जन्म एक उल्लू के रूप में लूँ ताकि मेरा जीवन सार्थक हो सके ।”
इस पर रक्ताक्ष ने फिर से व्यंग्य वचन कहे, “आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? कोई जरूरी तो नहीं कि कौए ही दुष्ट और विश्वासघाती हों । उल्लू भी तो दुष्ट और विश्वासघाती हो सकते हैं ।”
पर स्थिरजीवी की भावुक बातों और आर्त वचनों का अरिमर्दन पर गहरा असर पड़ा । उसने कहा, “इस घायल कौए की बातों में बड़ी गहराई और सच्चाई है । मुझे तो लगता है, यह बिल्कुल हमारे ही मन की बातें कह रहा है । इसलिए इसे मारने की बजाय हमें इसे अपने साथ मिला लेना चाहिए ।” बाकी मंत्रियों ने भी यही बात कही ।
इस पर रक्ताक्ष ने कहा, “अब मैं यहाँ एक पल भी नहीं ठहर सकता । यहाँ अविनाश अवश्यंभावी है । कृपया मुझे जाने की इजाजत दें ।”
रक्ताक्ष के जाने के बाद स्थिरजीवी मन ही मन बड़ा खुश हुआ । वह सोचने लगा कि उल्लुओं के दल में केवल बस यही एक बुद्धिमान था, जिससे मुझे खतरा था । अब यह चला गया तो कोई मेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकता ।
अब स्थिरजीवी मजे से उल्लुओं के बीच में रहने लगा । वह ऊपर से उल्लुओं के राजा अरिमर्दन को भाने वाली चिकनी-चुपड़ी बातें करता था । पर अंदर ही अंदर मौके की तलाश में था कि कब इन उल्लुओं का सर्वनाश किया जाए?
थोड़े ही दिनों में स्थिरजीवी खूब खा-पीकर मोटा-ताजा हो गया । फिर वह शत्रु के किले में बेहिचक यहाँ से वहाँ भ्रमण करने लग गया । उसने देखा कि उल्लुओं के राजा अरिमर्दन के किले में प्रवेश-द्वार तो है, पर बचकर भागने के लिए कोई संकट-द्वार नहीं है । उसने मन ही मन कहा, “यह उल्लुओं के सरदार की एक और बड़ी भारी गलती है । पहली गलती तो यही थी कि इसने मुझे शत्रु का मंत्री होते हुए भी छोड़ दिया और मेरी बातों का भरोसा किया । दूसरी गलती एक ऐसे किले में रहना है, जिसमें बचकर भागने के लिए कोई गुप्त द्वार ही नहीं ।”
अब स्थिरजीवी उस किले के आसपास मजे में घूमता-फिरता । जब कभी वह घूमकर आता, तो अपनी चोंच में कुछ लकड़ियाँ ले आता उन्हें उल्लुओं के राजा अरिमर्दन के किले के आसपास बिखरा देता । इस तरह उसने ढेर सारी लकड़ियाँ आसपास इकट्ठी कर लीं ।
कुछ दिनों बाद उसने कौओं के राजा मेघवर्ण को गुप्त संदेश भेजा, जल्दी ही मेघवर्ण कौओं के दल-बल के साथ वहाँ आ गया । सभी कौओं ने अपनी चोंच में जलती हुई लकड़ियाँ पकड़ी हुई थीं । आते ही उन्होंने उल्लुओं के राजा अरिमर्दन के किले में आग लगा दी । उसी समय आसपास पड़ी हुई लकड़ियों में भी आग लग गई । उल्लुओं के पास बचकर भागने का कोई रास्ता तो था ही नहीं । जो उल्लू बचने के लिए किले से बाहर निकलते, उन्हें कौए मिलकर मार डालते ।
देखते ही देखते अरिमर्दन और उल्लुओं की पूरी सेना खत्म हो गई । अपनी नासमझी से उसने खुद ही अपने विनाश को आमंत्रित कर लिया । उसके मंत्रियों ने भी कोई खास समझदारी नहीं दिखाई । उसके मंत्रियों में अकेला रक्ताक्ष ही सबसे अधिक समझदार था, पर वह पहले ही उसे छोड़कर जा चुका था ।
अब मेघवर्ण ने अपने सैनिकों के साथ फिर से अपने किले पर कब्जा कर लिया । सब कौए स्थिरजीवी का जय-जयकार कर रहे थे । क्योंकि आखिर उसी की चाल से ही इतने शक्तिशाली उल्लुओं पर उन्होंने विजय पा ली थी । अब मेघवर्ण और सभी कौए फिर से हँसी-खुशी अपना जीवन गुजारने लगे ।