एक बार की बात है, पक्षियों ने सोचा हमारे राजा गरुड़ तो हर समय भगवान विष्णु की सेवा में ही लीन रहते हैं । इसलिए हमें दूसरा राजा भी चुन लेना चाहिए जो समय-समय पर हमारी चिंता और देखभाल करता रहे ।
बगुला बोला, “हाँ यह बात तो ठीक है । जिस राजा के होने से प्रजा को कोई लाभ नहीं होता, उसके होने से तो न होना ही ज्यादा अच्छा है ।”
हंस ने भी यही बात कही ।
अब प्रश्न उठा कि राजा बनाया किसे जाए? इस पर सब सोच-विचार करने लगे ।
बगुला बोला, “उल्लू बड़ा बहादुर है । वह संकट में हम सबकी रक्षा कर सकता है । इसलिए मेरा खयाल है कि उसी को हमें राजा बनाना चाहिए । ‘’ सुनकर सभी भौचक्के रह गए । उल्लू भी राजा बन सकता है, यह तो किसी ने कभी सोचा ही नहीं था ।
बाज ने उल्लू की बात का समर्थन किया । चमगादड़ तो उल्लू की तरह निशाचर था ही । उसने भी उल्लू की बढ़-चढ़कर तारीफ करते हुए कहा, “इससे बढ़कर बढ़िया राजा और भला कौन हो सकता है?”
हंसों ने सोचा, यह तो ऐसा ही है जैसे कोई पहाड़ पर चढ़ाई करने चले और उलटा खाई में जा गिरे । बाकी पक्षी भी यही सोच रहे थे । मोर, चकवा, कोयल, तोता सभी बड़े उदास थे । पर यह सोचकर चुप थे कि अब भला विरोध करके कौन दुश्मनी मोल ले? अगर हम यह कहेंगे कि उल्लू को राजा बनाना ठीक नहीं है, तो भला उसके आक्रमण से भला हमें कौन बचाएगा? आखिर सभी ने हाँ में हाँ मिला दी और जोर-शोर से उल्लू के राज्याभिषेक की तैयारी होने लगी । इसके लिए तरह-तरह के फल, फूल और वनस्पतियां ही नहीं, एक सौ आठ पवित्र तीर्थों का जल लाया गया, ताकि सुंदर और भव्य ढंग से उल्लू का राज्याभिषेक किया जाए ।
अभी यह सब चल ही रहा था कि इतने में एक कौआ वहाँ से गुजरा । उसने पक्षियों की विशाल भीड़ देखी तो हैरान रह गया । उसकी समझ में नहीं आया कि इतने अधिक पक्षी यहां क्यों इकट्ठे हुए हैं? आखिर बात क्या है? असल में बात यह थी कि कौए को उसके कटु वचनों के कारण किसी ने पक्षियों की उस विशाल सभा में बुलाया नहीं था । उसके पूछने पर पक्षियों ने बताया, “गरुड़ जी की व्यस्तता के कारण पक्षियों ने उल्लू को अपना राजा चुना है, ताकि उनकी अनुपस्थिति में वह काम-काज करता रहे ।”
सुनकर कौआ ठठाकर हँसा । बोला, “अरे, तुम लोग यह क्या बेवकूफी कर रहे हो? राजा बनाने के लिए इस क्रूर और अभिमानी के अलावा क्या तुम्हें कोई और नहीं मिला? मोर, तोता, मैना, कोयल, चक्रवाक जैसे पक्षियों के होते हुए इस छू और आलसी को तुम अपना राजा क्यों बना रहे हो? जरा इसकी शक्ल तो देखो । हर समय गुस्से के मारे इसका मुँह टेढ़ा रहता है । फिर जब गुस्से में हो तो किसी की खैर नहीं । वैसे भी यह दिन भर तो आलसियों की तरह सोता रहता है और रात में लुटेरों और अपराधियों की तरह बाहर निकलता है । तब जो कोई इसे मिले, उसे मार डालता है । भला ऐसे निकृष्ट और अपराधी को राजा बनाकर तुम्हें क्या मिलेगा?”
सुनकर वहाँ एकदम सन्नाटा छा गया । बहुत से पक्षी वही बात सोच रहे थे जो कौए ने कही थी । उन्हें लगा, कौए ने उन्हीं की बात कह दी । पर फिर भी वे बोलने से डर रहे थे ।
उन्हें चुप देखकर कौए ने कहा, “और फिर क्या तुमने अच्छी तरह सोच लिया कि क्या गरुड़ जी इस बात से नाराज नहीं होंगे कि उनके होते हुए तुमने एक दूसरा राजा चुन लिया? ठीक है, वे भले ही हर वक्त खुद नहीं आ सकते, पर उनका नाम ही बड़ा है । उनकी महिमा और भी बड़ी है । बड़े लोगों के सब काम तो उनके नाम और महिमा से ही हो जाते हैं । उन्हें हर जगह खुद उपस्थित नहीं होना होता । उनके होते हुए उल्लू जैसे निकृष्ट प्राणी को सजा बनाना तो खुद गरुड़ जी का अपमान करना होगा । अगर वे गुस्से में इसके लिए तुम्हें सजा देने के लिए आ गए तो बताओ भला क्या होगा?”
सुनकर बगुला सबसे अधिक डरा क्योंकि उसी ने उल्लू को राजा बनाने की बात कही थी । इसी तरह बाज भी डर गया । उसने बगुले की बात का समर्थन करते हुए कहा था कि उल्लू अच्छा राजा साबित होगा । वे दोनों धीरे से उस सभा से निकल गए । उनकी देखा-देखी एक-एक कर सभी पक्षी निकलते चले गए ।
उल्लू अपने चापलूसों और थोड़े से सेवकों से घिरा हुआ बैठा था और राजपाट के सपने देख रहा था । वे सभी उल्लू को स्नान कराकर अच्छे वस्त्र पहना रहे थे । उससे मीठी-मीठी बातें और हास-परिहास कर रहे थे । पर जब उल्लू ने देखा कि एक-एक करके सभी पक्षी वहाँ से चले गए और धीरे-धीरे पूरा पंडाल ही खाली हो गया, तो उसे बड़ी हैरानी हुई । उसकी समझ में नहीं आया कि यह बात क्या है? तब कृकालिका ने उसे बताया कि कैसे उसके राज्याभिषेक की तैयारियों के बीच अचानक एक कौए ने आकर पूरी बात बिगाड़ दी और पक्षी डरकर अपने-अपने घर चले गए ।
अब तो उल्लू गुस्से से भरकर आगबबूला हो गया । कौए से बोला, “अरे भई कौए, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो तुमने आकर मेरे राजपाट में विघ्न डाल दिया । अब चाहे जो भी हो, मैं तुम्हें छोड़ेगा नहीं । समझ लो, अब हमेशा हमेशा के लिए तुम मेरे दुश्मन हो गए हो और मैं तुम्हें कभी चैन नहीं लेने दूँगा ।”
सुनकर कौआ बड़ा पछताया । सोचने लगा, “भला मुझे सभा में इतने तीखे और कठोर वचन कहने की क्या जरूरत थी? अपने कठोर वचनों से मैंने खामखा उल्लू को नाराज कर लिया । भले ही मेरी बातों में सच्चाई थी, पर कठोर सत्य कहना भी कई बार उलटा ही पड़ जाता है । हाय-हाय, मैंने यह गलती क्यों की?”
सोचता हुआ दुखी कौआ चुपचाप वहाँ से उड़ गया । लेकिन तब से कौओं और उल्लुओं की दुश्मनी चली आई है और आज तक वह खत्म नहीं हुई ।