एक जुलाहे के बेटे और एक बढ़ई की अच्छी दोस्ती थी । दोनों अपने-अपने ढंग से दुनिया में जीने और कुछ नया करने का सपना देखते थे । उनमें आपस में बड़ा प्रेम था । और वे हमेशा नई-नई बातें सीखते थे ।
जुलाहे का दोस्त बढ़ई कोई मामूली बढ़ई नहीं था । वह रथकार था और अपने क्षेत्र में पूरा कलाकार था । उसके मन में नई-नई कल्पनाएँ आतीं और वह लकड़ी के ऐसे अनोखे यंत्र बनाता कि देखते वाले दाँतों तले ऊँगली दबाकर रह जाते । उसके बनाए रथ और अन्य वाहनों की दूर-दूर तक माँग थी, इसलिए उसके दोस्त कहते, ‘यंत्र विज्ञान में ऐसा चमत्कार तो कोई नहीं कर सकता ।’
एक दिन की बात, दोनों मित्र राजमार्ग पर घूमने जा रहे थे । तभी हाथी पर बैठी राजकुमारी चंद्रमुखी वहाँ से गुजरी । उसके आगे-पीछे भी दर्जनों सखियाँ थीं जो अलग-अलग सवारियों पर विराजमान थीं । हाथी पर गुजरती राजकुमारी चंद्रमुखी को देख, जुलाहे की आँखें उठी की उठी रह गई । वह पलक झपकाना तक भूल गया । उसने मन ही मन तय कर लिया, ‘मैं विवाह करूँगा तो राजकुमारी चंद्रमुखी से ही ।’
पर भला यह क्या इतना आसान था?
जुलाहा घर आया तो उसका चेहरा उदासी से भरा हुआ था । कुछ दिनों तक तो उसने किसी से बात तक नहीं की । फिर अपने मित्र रथकार के बहुत पूछने पर जुलाहे ने अपना दुख बताया । फिर कहा, “यह तो ऐसा दुख है जिसका कोई इलाज ही नहीं है । अब तो जीवन भर मुझ घुट-घुटकर मरना होगा ।”
इस पर रथकार ने उसे धिक्कारते हुए कहा, ‘’ छि:! यह तुम क्या बात कर रहे हो । भला दुनिया का कौन सा ऐसा काम है जो असंभव है? जरा होशियारी से काम लो और मन पक्का कर लो, तो दुनिया का कोई काम नहीं है जो पूरा न हो ।”
फिर रथकार ने आगे कहा, “देखो, मैं तुम्हारे लिए एक अनोखा गरुड़ बनाऊँगा । तुम उस पर बैठकर विष्णु जी का रूप धारण करके राजकुमारी के पास जाना । वह तो तुम्हें देखकर एकदम निहाल हो उठेगी ।”
और सचमुच रथकार ने जो कहा था, उसे पूरा कर दिखाया । झटपट उसने लकड़ी का ऐसा चमत्कारी गरुड़ बनाया जो देखने में एकदम असली गरुड़ जैसा लगता था । उसे हवा में उड़ते देखकर लगता था कि यह नकली तो हो ही नहीं सकता । फिर रथकार ने जुलाहे के लिए नकली हाथ भी बना दिए जिनमें शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करके वह विष्णु रूप बना सकता था । अगले दिन आधी रात के समय जब सारी दुनिया सोई हुई थी, जुलाहे ने विष्णु रूप धारण करके गरुड़ पर सवारी की और झटपट जा पहुँचा राजकुमारी चंद्रमुखी के कक्ष में । राजकुमारी चंद्रमुखी ने विष्णु रूपधारी जुलाहे को देखा, तो चमत्कृत हो उठी ।
जुलाहा बोला, “मैं साक्षात विष्णु हूँ और तुमसे विवाह करना चाहता हूँ ।”
सुनकर चंद्रमुखी तो आनंद से विभोर हो गई । दोनों देर तक बातें करते रहे । विष्णु बने जुलाहे की बातें सुनकर राजकुमारी बार-बार कहती, “आपकी बातों में अनोखा रस है । उन्हें सुनकर मुझ पर जादू सा हो जाता है ।”
कुछ समय बाद राजकुमारी की सेविकाओं को भी पता चला कि कोई उससे मिलने आता है । उन्होंने रानी को यह बात बताई । रानी ने बेटी से पूछा, तो उसने कहा, “अम्माँ, साक्षात विष्णु मुझसे मिलने आते हैं ।”
सुनकर रानी को बड़ा अचंभा हुआ । उन्होंने राजा से कहा तो राजा भी हैरान हो उठे । लेकिन एक दिन दोनों ने गरुड़ पर सवार होकर आते हुए शंख, चक्र गदाधारी विष्णु को देखा, तो उन्हें यकीन हो गया कि साक्षात विष्णु ही उनकी बेटी से मिलने आते हैं । वे आनंद से भर उठे । इसके कुछ समय बाद की बात है, राज्य पर उनके शत्रु देशों ने मिलकर आक्रमण कर दिया । शत्रु की सेनाएँ आगे बढ़ती आ रही थीं । यहाँ तक कि अब सिर्फ किले तक ही राजा का शासन बचा था । उसे भी चारों तरफ से शत्रु सेना ने घेरा हुआ था । राजा बहुत परेशान थे । उन्होंने बेटी से कहा, “तुम विष्णु जी से क्यों नहीं कहती? वे हमारी ओर से लड़ेंगे तो शत्रु सेना उनके आगे टिक ही नहीं पाएगी ।”
उसी रात राजकुमारी ने विष्णु बने जुलाहे से सारी बात कही । जुलाहा समझ गया, अब तो मरना ही है । विष्णु का रूप धारण कर लेना एक बात है और विष्णु जैसे गुणों और शक्तियों को धारण करना एक बिल्कुल अलग बात है । फिर भी उसने सोचा कि सजा और राजकुमारी के विश्वास की रक्षा के लिए अब मुझे लड़ना ही होगा, फिर चाहे प्राण ही क्यों न चले जाएँ ।
उधर विष्णु जी को भी सारी बात पता चली । उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा, “कल जुलाहा शत्रु-सेना से लड़ने जाएगा और जाहिर है, वह मेरा वेश धारण करके ही जाएगा । यह भी तय है कि वह शत्रु-सेना के आगे टिक नहीं पाएगा और मारा जाएगा । पर इससे मेरी तो बड़ी बदनामी होगी कि भगवान विष्णु मनुष्यों की सेना से हार गए । तो अब मुझे कुछ न कुछ तो करना ही होगा । ‘’
आखिर भगवान विष्णु ने अपनी सारी शक्तियाँ विष्णु रूपधारी जुलाहे को दे दीं । इसीलिए जुलाहा जब लड़ने गया, तो उसे देखते ही शत्रु-सेना इस कदर भयभीत होकर भागी, जैसे वे चींटियां हों और उन्होंने किसी पहाड़ से भी भीषण बलशाली को देख लिया हो ।
जब विष्णु रूपधारी जुलाहा युद्ध के मैदान से लौटा तो राजा और रानी ही नहीं, पूरे राजधानी में सारे लोग उसके स्वागत के लिए उमड़ पड़े । लेकिन जुलाहे ने अब कुछ भी छिपाना उचित नहीं समझा । उसने साफ-साफ बता दिया, “मैंने विष्णु जी का रूप धारण किया था, मैं असली विष्णु नहीं हूँ ।”
पर राजा ने कहा, “तुम इतने वीर और योग्य हो, मेरे लिए तो यही सबसे बड़ी बात है । तुम्हें दामाद के रूप में पाकर मुझे बड़ी खुशी होगी ।” और बड़ी धूमधाम से जुलाहे का राजकुमारी चंद्रमुखी के साथ विवाह हुआ ।
अब जुलाहे की खुशी का ठिकाना न था । कुछ समय बाद वह अपने मित्र रथकार बढ़ई से मिलने गया, तो उसने हँसते हुए कहा, “मित्र, मैंने कहा था न कि होशियारी से काम लो तो कोई भी काम असंभव नहीं होता । देखो, मेरी बात साबित हो गई न!”
जुलाहा बोला, “हाँ ।” और वह भी खुशी से भरकर हँस पड़ा ।
