niyat
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एक बार एक व्यापारी शहर से एक कीमती हीरा खरीदकर लौट रहा था। एक चोर को उसकी भनक लग गई और वह व्यापारी के पीछे लग गया। रास्ते में बारिश होने लगी। व्यापारी एक सराय में रुका, चोर ने भी सराय मालिक से वहीं रुकने की विनती की। कमरा एक ही था। सराय मालिक ने दोनों को वहीं ठहरा दिया। कुछ देर बाद चोर बोला कि मैं जरा नहा.धोकर आता हूँ।

कुछ देर बाद जब वह लौटा तो उसने कहा कि अब तुम तरोताजा हो आओ, फिर कुछ भोजन करते हैं। व्यापारी वहाँ से गया तो चोर ने तुरंत उसके सारे सामान की तलाशी ले डाली। लेकिन उसे हीरा कहीं नहीं मिला। चोर बहुत निराश हुआ। थोड़ी देर में व्यापारी लौटा तो उसने उसे अपना परिचय दिया और बोला कि मैं एक चोर हूँ और तुम्हारा हीरा चुराने के लिए तुम्हारे पीछे लगा था।

मैंने तुम्हारा सारा सामान खंगाल लिया, लेकिन मुझे हीरा नहीं मिला। जबकि मेरी खबर पक्की थी कि हीरा तुम्हारे पास है। तुमने हीरा कहां छिपाया। इस पर व्यापारी ने उसका थैला उठाकर उलट दिया और हीरा उठाकर बोला कि इसे मैंने तुम्हारे सामान में छिपाया था। क्योंकि मुझे यह तो मालूम नहीं था कि तुम एक चोर हो, लेकिन यह मालूम था कि अगर तुम्हारे दिल में बेईमानी आ गई तो तुम मेरे सारे सामान की तलाशी जरूर लोगे और यह बात सोच भी नहीं पाओगे कि जो चीज तुम्हें चाहिए वह तुम्हारे खुद के थैले में हो सकती है।।

सारः हममें से अधिकतर अपने निकट की चीजों को नहीं देख पाते।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)