विवेकशील ज्ञान को विकसित करें: Rational Knowledge
Rational Knowledge

Rational Knowledge: रामराज्य लाने के लिए आज संसार में प्रत्येक आवश्यक वस्तु हमारे पास है। केवल मनुष्य का स्वार्थ इसे असंभव बनाता है। मनुष्य के अदूरदर्शी निजी स्वार्थ ने अनावश्यक अपार दुख को जन्म दिया है।

दुख ईश्वर का काम नहीं है, बल्कि शैतान की माया की शक्ति अर्थात् भ्रम का कार्य है। यह शक्ति अज्ञान को उत्पन्न करती है, जो लोगों को उनके कार्यों के परिणाम के प्रति अंधा बना देता है, जो उन्हें गलत काम करने के लिए प्रेरित करता है और इस प्रकार उनके लिए कष्ट उत्पन्न करता है। बुराई से बचने का केवल एक ही रास्ता है कि बुरा क्या है इसे जानने के लिए विवेकशील ज्ञान को विकसित करना और फिर उस बुराई को न करने का प्रण करना। कोई अनुचित कार्य दूसरे अनुचित कार्य से लड़कर सही कार्य नहीं बनता। मनुष्य का वास्तविक शत्रु अज्ञान है। इसे इस पृथ्वी से अवश्य बाहर निकालना चाहिए।

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रामराज्य लाने के लिए आज संसार में प्रत्येक आवश्यक वस्तु हमारे पास है। केवल मनुष्य का स्वार्थ इसे असंभव बनाता है। मनुष्य के अदूरदर्शी निजी स्वार्थ ने अनावश्यक अपार दुख को जन्म दिया है। धन, जो जरूरतमंद लोगों को भोजन और कपड़ा दे सकता है उसके बजाय विनाश के लिए उपयोग किया जाता है। संसार की कठिनाइयों का मूल कारण यही स्वार्थ है जो अज्ञान से उत्पन्न होता है। प्रत्येक व्यक्ति सोचता है कि वह ठीक कर रहा है, परंतु जब वह केवल अपने स्वार्थ को संतुष्ट करना चाहता है, तो वह कार्य कारण के कर्म सिद्धांत को गतिमान कर देता है, जो निश्चित रूप से उसके अपने और दूसरों के सुख को नष्ट कर देगा।
जितना अधिक मैं मनुष्य के अज्ञान द्वारा संसार की विपदाओं को उत्पन्न होते देखता हूं, उतना ही अधिक मैं अनुभव करता हूं कि यदि हर गली पर सोने की परत भी बिछा दी जो, तो भी चिरस्थायी सुख नहीं मिल सकता। प्रसन्नता दूसरों को खुशी देने में और निजी स्वार्थ को छोड़कर दूसरों को सुख देने में निहित है। यदि प्रत्येक व्यक्ति ऐसा करें, तो सभी प्रसन्न रहेंगे और सभी का भला होगा।

जीसस का यही अभिप्राय था जब उन्होंने कहा दूसरों से अपने प्रति जैसा व्यवहार चाहते हैं आप भी उनके प्रति वैसा ही व्यवहार करें।
सभी धर्मों और सभी राष्ट्रों के एक संघ का होना आवश्यक है। परन्तु ऐसा संघ केवल तभी होगा जब प्रत्येक ऐसा ध्यान करे जो ईश्वर के साथ सीधा संपर्क कराता है। उनके साथ संपर्क ही समाधान है। जब कोई ईश-अनुभूति पा लेता है, तो वह दूसरों को अपने से अलग नहीं समझता। जब तक ऐसा ज्ञान नहीं आता, केवल कुछ लोगों को ही नहीं, बल्कि सभी को, ऐसा ज्ञान प्राप्त नहीं होता, तब तक इस पृथ्वी पर दुखों से मुक्ति नहीं मिल पाएगी। यहां अमेरिका में भी स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है, दुख अभी भी प्रचुर मात्रा में है। हममें से प्रत्येक का यह उत्तरदायित्व है कि अपने देश और सभी मनुष्यों के लिए शान्ति और सुख लाएं। व्यक्ति को, केवल अपने राष्ट्र का ही नहीं वरन सभी देशों का, अपने परिवार का ही नहीं बल्कि समस्त मानव जाति का ध्यान रखना चाहिए। सामान्य व्यक्ति की रुचि केवल अपने तक और उसके अपने आसपास के लोगों तक ही सीमित रहती है, परन्तु सच्चा ईश्वर भक्त स्वयं को पूरे संसार के साथ अभिन्न समझता है। यह न समझें कि आपकी आध्यात्मीकृत चेतना का योगदान कम है। आपकी भागीदारी बहुत महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
ईश्वर को जानने के लिए आपको उन जैसा बनना होगा। अनेक पाप करने पर भी, उन्हें भुला देने पर भी और यहां तक कि उनके प्रति अधिक उदासीनता रखने पर भी, वे हमें स्नेहपूर्वक जीवन देते हैं और इस संसार में जीवन को सहारा देने के लिए सब कुछ देते हैं। ईश्वर से बड़ा कुछ नहीं है, उनके प्रति उपेक्षा सबसे बड़ा पाप है।