nazariya
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एक बार एक साधु अपने लिए एक उचित ठिकाने की तलाश में भटक रहा था। वह एक गाँव में पहुँचा और वहाँ के मुखिया से पूछा कि क्या उसके गाँव के लोग अच्छे और मैत्रीपूर्ण हैं। मुखिया ने उससे प्रतिप्रश्न किया कि वह अभी तक जिस गाँव में था, वहाँ के लोग कैसे हैं।

अगर अच्छे होते तो मुझे गाँव छोड़कर क्यों भटकना पड़ता। मुखिया ने उसे विनम्रता से समझाया कि इस गाँव के लोग भी आपके सानिध्य के योग्य नहीं हैं। उचित होगा कि आप दूसरा कोई गाँव खोज लें। तभी वहाँ एक और मुसाफिर पहुँचा और बोला कि मैं आपके गाँव में कुछ दिनों के लिए रुकना चाहता हूँ। क्या आप मुझे यहाँ के लोगों के बारे में कुछ बताएंगे? मुखिया ने उससे भी वही प्रश्न पूछा जो उसने साधु से पूछा था।

मुसाफिर ने जवाब दिया कि वह जिस गाँव से आया है, वहाँ के लोग इतने अच्छे थे कि उन्हें छोड़कर आने का उसका मन ही नहीं होता था। लेकिन, उसे घूमने का शौक है। मुखिया ने उससे कहा कि मित्र, तब तो तुम्हें इस गाँव में भी बहुत संतोष होगा।क्योंकि यहाँ के लोग भी बहुत मिलनसार और आतिथ्य में कुशल हैं। इस पर साधु बहुत कुपित हुआ, बोला कि अभी तो आपने मुझसे कहा था कि यहाँ के लोग अच्छे नहीं हैं। इस पर मुखिया ने उसे समझाया कि लोग कहीं के भी अच्छे या बुरे नहीं होते। यह हमारा नजरिया होता है जिसके आधार पर हम लोगों का आकलन करते हैं। यदि आपको पिछले गाँव के लोगों से शिकायत है तो इस गाँव के लोग भी आपको संतुष्ट नहीं कर सकते।

सारः सकारात्मक सोच हमें अपने आसपास के परिवेश में आनंदपूर्वक रहने में सक्षम बनाती है।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)