Women Hindi Poem: तुम कहते हो—
नारी ही शक्ति है,
माँ दुर्गा की प्रतिमूर्ति है,
तो फिर क्यों वही शक्ति
सड़क पर चलते हुए काँपती है?
क्यों वह अपने ही वतन में
सुरक्षित नहीं है?
तुम दीप जलाते हो,
मंदिर सजाते हो,
घंटियाँ बजाते हो,
पर उसी देवी की बेटी
अंधेरी गलियों में अकेली हो तो—
क्यों तुम्हारी आँखों में श्रद्धा नहीं,
वासना उमड़ती है?
तुम उपवास रखते हो,
भक्ति का आडंबर करते हो,
पर यदि स्त्री अकेली है
तो उसे अपनी शिकार-भूमि समझते हो—
क्यों?
क्या यही है तुम्हारी आस्था?
क्या यही है तुम्हारा धर्म?
तुम कहते हो—
“नारी सम्मान हमारी परंपरा है”
तो फिर क्यों विवाहिता हो या अविवाहिता,
हर स्त्री तुम्हारी दृष्टि से बचती फिरती है?
क्यों उसे अपने वस्त्रों में
लिपटकर भी असुरक्षा घेरती है?
ओ साधकों!
यदि नवरात्रि की पूजा सच में करनी है,
तो देवी के मंदिर में नहीं—
स्त्री के हृदय में करो।
उसे भय से मुक्त करो।
उसकी आँखों से आँसू नहीं
आत्मविश्वास झरने दो।
वरना बताओ—
तुम्हारी आरती, तुम्हारा व्रत, तुम्हारा जप,
क्या सब ढोंग नहीं?
क्या सचमुच तुम देवी को पूजते हो
या केवल मूर्तियों को?
